आसा जीवै जग मरै लोग मरे मरि जाइ मीनिंग कबीर के दोहे

आसा जीवै जग मरै लोग मरे मरि जाइ मीनिंग Aasha Jive Jag Mare Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Bhavarth)

आसा जीवै जग मरै, लोग मरे मरि जाइ।
सोइ मूबे धन संचते, सो उबरे जे खाइ॥
Aasha Jeeve Jag Mare, Log Mare Mari Jaai,
Soi Mube Dhan Sanchte, So Ubare Je Khaai.

आसा जीवै जग मरै : आशा सदैव जीवित रहती है, कभी मरती नहीं है.
जग मरै : जग सदा ही जन्म लेता है और मरता है.
लोग मरे मरि जाइ : लोग मरते रहते हैं.
सोइ मूबे धन संचते : जो धन संचय करते हैं, वे मरते हैं.
मूबे/मुवे-मरते हैं.
सोइ-वही, जो धन संचय करते हैं.
सो उबरे जे खाइ : जो इसका सेवन करके इसे समाप्त कर देते हैं, वे बचते हैं.
उबरे : उबर जाते हैं, बच जाते हैं.
आशा और तृष्णा, जो लालच है वह कभी मरता नहीं है, जीव ही जन्म लेता है और मर जाता है, माया कभी नहीं मरती है. माया सदा बनी रहती है. जीव जन्म लेता है और मर जाता है. जो व्यक्ति भक्ति मार्ग पर अग्रसर नहीं होते हैं वे मरते रहते हैं. उनका पतन होता है. जो व्यक्ति माया से चित्त को नहीं जोड़ते हैं वे माया के प्रकोप से बच सकते हैं. इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति माया से अपने हृदय को लगाकर माया का संग्रह करता है वह कभी उबर नहीं पाता है. वह माया में ही उलझ कर रह जाता है.
इस साखी का मूल भाव है की व्यक्ति माया के प्रभाव को समझे. यदि वह माया के संग्रह में लगा रहता है तो अवश्य ही वह व्याकुल रहता है. वह जन्म लेता है, माया के भ्रम जाल में पड़ता है और मर जाता है. यह चक्र अनवरत चलता रहता है. लेकिन यदि वह माया के प्रभाव को समझ जाए और इससे दूर रहे तो अवश्य

ही भक्ति मार्ग पर अग्रसर होता है और अपने जीवन को आवागमन के चक्र से मुक्त कर लेता है. प्रस्तुत साखी में विरोधाभाष अलंकार की व्यंजना हुई है.
प्रस्तुत साखी में प्रमुख सन्देश है की -
-माया सदा ही बनी रहती है, वह ना तो जन्म लेती है और नाही मरती है.
-माया के भरम जाल को जीवात्मा को समझना चाहिए.
-व्यक्ति/जीवात्मा जन्म लेती है और मर जाती है क्योंकि वे माया के फांस में लिप्त रहते हैं.
-धन संचय प्रवृति में जीवात्मा हरी के सुमिरण से विमुख हो जाता है.
-जिन्होंने माया के प्रभाव को समझ कर समाप्त किया है, वे माया से मुक्त हो गये हैं. 
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