देषण के सब कोऊ भले जिसे सीत के मीनिंग

देषण के सब कोऊ भले जिसे सीत के कोट मीनिंग

देषण के सब कोऊ भले, जिसे सीत के कोट।
रवि के उदै न दीसहीं, बँधे न जल की पोट॥
Dekhan Ke Sab Kou Bhale, Jise seet ke kot,
Ravi Ke Ude Na Deesahi, Bandhe Na Jal Ki Pot.

देषण के सब कोऊ भले : देखने में सभी अच्छे और भले ही हैं.
जिसे सीत के कोट : जैसे कोहरे के बादल रूपी गढ़.
रवि के उदै न दीसहीं : सूर्य के उदय होने पर वे दीखते नहीं हैं.
बँधे न जल की पोट : जल की पोटली नहीं बंधती है.
देषण के : देखने में.
सब कोऊ : सभी.
भले : सुंदर दिखाई देते हैं.
जिसे : जैसे.
सीत के कोट : सर्दी के गढ़/कोहरे के बादलों से बना आभाषी किला.
कोट :
दुर्ग, किला.
रवि : सूर्य.
के उदै : के उदय होने पर.
न दीसहीं : दीखते नहीं है.
बँधे न : बंधती नहीं है.
जल की पोट : जल की पोटली.
पोट : पोटली.
पाखंडी साधू संतों और गुरु के प्रति कबीर साहेब की वाणी है की ये देखने में तो भले लगते हैं. लेकिन यह उस ओस/कोहरे/तुषार के किले, दुर्ग की भांति होते हैं जो दूर से सुंदर दिखाई देते हैं. इनका अस्तित्व तभी तक होता है जब तक की सूर्य का उदय नहीं होता है.
सूर्य के उदय होने के उपरान्त ये स्वतः ही सूर्य के तेज से गायब हो जाते हैं. वह जल जो किले के रूप में आभाषी था अब वह पिघल गया है और ऐसे जल को कोई पोटली में नहीं ब होते हैं. ऐसे ही बनावटी और ढोंगी साधू भी होते हैं. ये स्वंय को गुरु कहते हैं, साधू का स्वांग रचते हैं लेकिन ये साधू होते नहीं हैं. किसी तत्वज्ञानी के आने पर इनका भेद खुल जाता है. अतः ऐसे लोग जो ढोंगी हैं, भक्ति के प्रति पूर्ण रूप से निष्टा नहीं रखते हैं वे भक्ति को कभी भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे.
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