काइथि कागद काढ़ियां तब लेखैं वार न पार मीनिंग Kaithi Kagad Kadhiya Meaning, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )
काइथि कागद काढ़ियां, तब लेखैं वार न पार।जब लग साँस सरीर मैं, तब लग राम सँभार॥
Kaithi Kagad Kadhiya, Tab Lekhe Vaar Naa Paar,
Jab Lag Saans Sarir Main, Tab Lag Ram Sanbhaar.
काइथि कागद काढ़ियां : कायस्थ जब तुम्हारे कर्मों के हिसाब का कागज निकाल कर देखेगा, तब वार और पार नहीं होगा.
तब लेखैं वार न पार : तब वार और पार नहीं होगा.एक रोज जीवात्मा के कर्मों का हिसाब किताब होना है, अतः सद्कर्म करके व्यक्ति को मानव जीवन के उद्देश्य को सफल करना चाहिए.
जब लग साँस सरीर मैं : जब तक शरीर में सांस हैं.
तब लग राम सँभार : तब तक राम रूपी पूंजी को संभाल कर रखो.
तब लेखैं वार न पार : तब वार और पार नहीं होगा.एक रोज जीवात्मा के कर्मों का हिसाब किताब होना है, अतः सद्कर्म करके व्यक्ति को मानव जीवन के उद्देश्य को सफल करना चाहिए.
जब लग साँस सरीर मैं : जब तक शरीर में सांस हैं.
तब लग राम सँभार : तब तक राम रूपी पूंजी को संभाल कर रखो.
कबीर
साहेब की वाणी है की जब तक सांस चल रही हैं, इश्वर के नाम का संभाल करो.
एक रोज जब चित्रगुप्त (कायस्थ) के द्वारा तुम्हारे कर्मों का हिसाब किया
जाना होगा तब तुम्हारे कर्मों का कोई हिसाब नहीं मिलेगा, कोई आर और पार
नहीं मिलेगा. अतः जब तक शरीर में साँसे शेष हैं, मानव जीवन है तब तक इश्वर
की कृपा को, हरी के नाम को संभाल कर रखो. सम्पूर्ण जीवन में जो भी हम कर्म
करते हैं, भले ही वे अच्छे हों या बुरे हों, उनका हिसाब किताब एक रोज किया
जाना है, अतः हमें सदा ही श्रेष्ठ कर्म ही करने चाहिए.