माला पहरैं मनमुषी ताथैं कछु न होइ Mala Pahare Manmukhi Hindi Meaning Kabir Dohe

माला पहरैं मनमुषी ताथैं कछु न होइ Mala Pahare Manmukhi Hindi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

माला पहरैं मनमुषी, ताथैं कछु न होइ।
मन माला कौं फेरताँ, जुग उजियारा सोइ॥
Mala Pahre Manmukhi, Thathe Kachhu Na Hoi,
Man Mala Ko Ferta, Jug Ujiyara Soi.

माला पहरैं मनमुषी : माला पहनने के उपरान्त व्यक्ति मनमुखी होता है.
ताथैं कछु न होइ : इससे कुछ भी नहीं होता है.
मन माला कौं फेरताँ : मन की माला को फिराने से.
जुग उजियारा सोइ : सम्पूर्ण जगत में उजियाला हो जाता है.
माला : काठ की मनको की माला.
पहरैं : पहनते है.
मनमुषी : मन के अनुसार चलना.
ताथैं : उससे.
कछु न होइ : इससे कुछ भी नहीं होने वाला है.
मन माला : मन रूपी माला को.
फेरताँ : फिराने से.
जुग : युग में.
उजियारा सोइ : उजियाला हो उठता है.

यदि कोई व्यक्ति मन को केन्द्रित नहीं करता है, मन को नियंत्रित नहीं करता है तो उसकी माला (कंठी) धारण करने से कोई लाभ नहीं होता है. मन को यदि केन्द्रित कर
लिया जाए तो अवश्य ही स्वंय का ही नहीं अपितु जगत का कल्याण भी संभव हो पाता है.
मन को केन्द्रित करके सद्मार्ग पर चलने से अवश्य ही व्यक्ति को इश्वर की प्राप्ति होती है. मन की माला को फिराने से समस्त जगत आलोकित हो उठता है. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
 
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