माला पहरे मनमुषी बहुतैं फिरै अचेत मीनिंग Mala Pahre Manmukhi Kabir Dohe Meaning

माला पहरे मनमुषी बहुतैं फिरै अचेत मीनिंग Mala Pahre Manmukhi Kabir Dohe Meaning, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

माला पहरे मनमुषी, बहुतैं फिरै अचेत।
गाँगी रोले बहि गया, हरि सूँ नाँहीं हेत॥
Mala Pahre Manmukhi, Bahute Fire Achet,
Mangi Role Bahi Gaya, Hari Su Nahi Het.

माला पहरे मनमुषी : माला पहन कर यदि कोई मनमुखी बन जाए.
बहुतैं फिरै अचेत : बगैर चेतन के वह फिरता है.
गाँगी रोले बहि गया : गंगा की धारा में बह गया.
हरि सूँ नाँहीं हेत : हरी से हेत नहीं किया, प्रेम नहीं किया.
माला : काठ की माला.
पहरे : पहनते हैं.
मनमुषी : मन की अनुसार.
बहुतैं : बहुत से.
फिरै : फिरते हैं.
अचेत : गाफिल होकर, अचेत.
गाँगी रोले : गंगा के रोले से.
बहि गया : बह गया.
हरि : इश्वर.
सूँ : से.
नाँहीं : नहीं.
हेत : स्नेह, प्रेम.

माला को धारण करने वाले व्यक्ति पर जो आडम्बर की रचना करता है, उसके सबंध में कबीर साहेब की वाणी है की भले ही माला को धारण कर लिया जाए लेकिन यदि व्यक्ति मन के मुताबिक़ ही चलता है. ऐसे व्यक्ति अचेत हैं, चेतना को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं.
ऐसे लोग गंगा की धारा में ही बह चले हैं. भाव है की व्यक्ति को अपने मन के
मुताबिक़ नहीं चलना चाहिए. अतः साधक को चाहिए की वह अपने मन को नियंत्रण में रखे और हृदय से इश्वर की भक्ति करे. माला पहनने से कोई लाभ नहीं होने वाला है क्योंकि यह मात्र दिखावे की भक्ति है. साहेब ने एक स्थान पर कहा है की माला को मत फिराओ अपने मन को फिराओ, मन से इश्वर की भक्ति को करो.
 
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