मेरे मन नू सतगुरु जी समझा दयो

मेरे मन नू सतगुरु जी समझा दयो


मेरे मन नूं सतगुरु जी समझा दयो
ऐ मेरे आखें नईयों लगदा
मैनूं अपने ही रंग विच रंग दयो
ऐ मेरे आखें नईयों लगदा

नाम नहीं जपदा, विषयां च फसदा
गुरु घर कोलों ऐ तां दूर-दूर पजदा
ऐनूं अपने ही चरणां विच ला लयो
ऐ मेरे आखें नईयों लगदा

हर वेले चुगलियां, निंदया ही करदा
ज्ञान दियां पोथियां नूं कदे विणा पढदा
ऐनूं नाम वाला जाम पिला दयो
ऐ मेरे आखें नईयों लगदा

चंचल मन मेरा उड़ उड़ जावदा
सतगुरु दे नाल कदे प्रीत नईयों पावदा
ऐनूं प्रेम वाली गली चों लंघा दयो

मेरे मन नूं सतगुरु जी समझा दयो
ऐ मेरे आखें नईयों लगदा
मैनूं अपने ही रंग विच रंग दयो
ऐ मेरे आखें नईयों लगदा


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सतगुरु से चंचल मन को समझाने और उनके प्रेम के रंग में रंगने की प्रार्थना की जाती है, क्योंकि कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मन सतगुरु के नाम का जाप छोड़कर विषय-वासना में फंस जाता है और उनके दर से दूर भागता है। सतगुरु से मन को उनके चरणों में स्थिर करने की विनती की जाती है। मन निंदा-चुगली में डूबा रहता है और ज्ञान की पुस्तकों को पढ़ने से कतराता है। सतगुरु से नाम का जाम पिलाकर सही मार्ग पर लाने की गुहार लगाई जाती है। चंचल मन इधर-उधर भटकता है और सतगुरु के साथ प्रेम की डोर नहीं जुड़ पाती। सतगुरु से प्रेम की गली में ले जाने की प्रार्थना की जाती है। यह भजन मन की बेचैनी, सतगुरु की शरण में जाने की तीव्र इच्छा और उनकी कृपा से मन को शुद्ध कर सत्य मार्ग पर चलने की भावना को व्यक्त करता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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