जो आनन्द संत फकीर करे भजन
जो आनन्द संत फकीर करे भजन
(संत मिलन को जाईए,
तज माया अभिमान,
ज्यो-ज्यो पग आगे धरे,
कोटी यज्ञ समान॥)
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में,
सुख-दुख में समता साधे,
कुछ खोफ़ ना हो जागीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
हर रंग में सेवक रूप रहे,
अमृत का जल जैसे कूप रहे,
सत्कर्म करे और चुप रहे,
भले ना छाँव रहे या धूप रहे,
निःसकाम बने जग में विसरे,
रहे वो धीर गंभीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
जग तारण कारण देह धरे,
सत्सेवा करे जग पाप हरे,
जिज्ञासु के घट में ज्ञान भरे,
संतवाणी सदा मुख से उचरे,
संडलीपु को बंसकर रंग में रहे,
रहे वो सदा शूरवीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
सदबोध जगत में आई कहे,
सत्य मार्ग को दिखलाइ कहे,
गुरु ज्ञान से पद ये गाए कहे,
सार शब्द समझाए कहे,
मरजीव बने सो मोज़ करे,
रहे वो अलमस्त फकीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
तज माया अभिमान,
ज्यो-ज्यो पग आगे धरे,
कोटी यज्ञ समान॥)
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में,
सुख-दुख में समता साधे,
कुछ खोफ़ ना हो जागीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
हर रंग में सेवक रूप रहे,
अमृत का जल जैसे कूप रहे,
सत्कर्म करे और चुप रहे,
भले ना छाँव रहे या धूप रहे,
निःसकाम बने जग में विसरे,
रहे वो धीर गंभीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
जग तारण कारण देह धरे,
सत्सेवा करे जग पाप हरे,
जिज्ञासु के घट में ज्ञान भरे,
संतवाणी सदा मुख से उचरे,
संडलीपु को बंसकर रंग में रहे,
रहे वो सदा शूरवीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
सदबोध जगत में आई कहे,
सत्य मार्ग को दिखलाइ कहे,
गुरु ज्ञान से पद ये गाए कहे,
सार शब्द समझाए कहे,
मरजीव बने सो मोज़ करे,
रहे वो अलमस्त फकीरी में,
जो आनंद संत फकीर करे,
वो आनंद ना ही अमीरी में...
Prakash Mali की आवाज में ये भजन जरूर सुने - आनंद संत फकीरी में | सुन कर दिल खुश हो जाएगा आपका
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संतों के मिलन के लिए माया और अभिमान छोड़कर जाना चाहिए, क्योंकि हर कदम पर कोटि यज्ञों का पुण्य मिलता है। संत-फकीर जो आनंद पाते हैं, वह धन-दौलत में नहीं। वे सुख-दुख में समभाव रखते हैं, और जागीर का कोई भय उन्हें नहीं सताता। हर रंग में वे सेवक बने रहते हैं, अमृत-जल जैसे निर्मल, सत्कर्म करते हैं, चाहे छाँव हो या धूप, और निष्काम होकर धीर-गंभीर बने रहते हैं। संसार के उद्धार के लिए देह धारी, सत्सेवा से पाप हरते हैं, जिज्ञासु के हृदय में ज्ञान भरते हैं, और संतवाणी सदा मुख से बोलते हैं।
छह रिपुओं को वश में कर शूरवीर की तरह रहते हैं। सत्य का बोध जगाकर, सतमार्ग दिखाते हैं, गुरु-ज्ञान से सत्-शब्द समझाते हैं। जो जीव मरजीव बन जाता है, वह मस्ती में डूब जाता है। यह भजन संतों की संगति, उनके निष्काम जीवन, सत्य-मार्ग और ज्ञान से मुक्ति, और फकीरी के आनंद की भावना को व्यक्त करता है।
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Author - Saroj Jangir
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