नागपंचमी कथा कहानी महत्त्व पूजा विधि Nagpanchmi Katha Puja aur Mahatva

नागपंचमी कथा कहानी Nagpanchmi Puja Katha aur Mahatva

श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी ) हम नाग पंचमी को मनाते हैं। हमारे सनातन धर्म में नाग को बहुत ही शुभ और उच्च दर्जा दिया गया है।  शिव जी के गले में भी वासुकी नाग है और भगवान् विष्णु जी भी शेषनाग पर स्थापित हैं। समुद्र मंथन भी नाग देवता की मदद से ही पूर्ण हो पाया था। यही कारण है की नागों को हम शुभ मानकर इनकी पूजा करते हैं।   नागपंचमी की कथा के श्रवण से सर्प दोष दूर होता है और भगवान् शिव जी की कृपा भी प्राप्त होती है। नाग पंचमी (Naag Panchmi Katha) की कथा का उल्लेख "गरुड़ पुराण (Nag Panchmi in Garud Puran)" में है। ब्रह्माजी ने नागपंचमी के दिन नागों को जनमेजय के नाग यज्ञ से रक्षा का उपाय सुझाया था था। नागपंचमी के दिवस ही जरत्कारू के पुत्र आस्तिक मुनि ने नागों को भस्म होने से भी बचाया था, इसलिए नागपंचमी नागलोक का सर्वोच्च अवसर माना जाता है। 

उल्लखनीय है की जैन धर्म में भी नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। नागपंचमी के दिन एक नाग से महावीर जैन डस लिया था। इसके उपरान्त महावीर स्वामी जी नाग को उसके पूर्वजन्म के नामों से अवगत करवाया जिसके कारण से नाग ने लोगों को डसना छोड़ दिया। यही कारण है की जैन धाम में भी नागपंचमी को मनाया जाता है

नाग पंचमी की पूजा विधि Naag Panchmi Puja Vidh

नाग पंचमी की पूजा हम हमारे घर में कर सकते हैं। नाग पंचमी की पूजा करने के लिए आप बताई गई पूजा विधि का पालन अवश्य ही करें।
आपके घर में आप जहाँ भी शुद्ध स्थान पर नाग पंचमी की पूजा करना चाहते हैं वहां की अच्छे से सफाई कर लें। इसके उपरांत काजल से दीवार पर नाग देवता की आकृति को बना लें। उल्लेखनीय है की आप आटे या मिटटी से भी नाग बना सकते हैं लेकिन उनका फिर आपको विसर्जन करना होता है। आप चाहें तो सफ़ेद कागज़ को दीवार पर चिपका कर नाग की आकृति उस पर बना सकते हैं। आप नाग नागिन का जोड़ा बना सकते हैं या फिर पांच, सात नो नाग भी बना सकते हैं। प्रायः पांच नाग की आकृति बनाई जाती है। इसके उपरान्त शुद्ध जल को कलश में लेकर फूलों से पानी को उस पर छिड़क कर उसे शुद्ध करेंगे।
इसके उपरान्त सभी बनाए गए नागों का हल्दी से तिलक करें। इसके बाद रोली से तिलक करें। तिलक पूर्ण करने के उपरान्त देसी घी का एक दीपक नागों की आकृति के समक्ष प्रजव्लित करें। इसके साथ ही दीपक का भी पूजन करें।
दीपक का तिलक करने के उपरान्त वस्त्र समर्पित करने के लिए मोली (कलावा) को समर्पित करें (सामने रखें ) इसके उपरान्त पुष्प को समर्पित करें। भोग के लिए आप कच्चा दूध चढ़ाए। इसके उपरान्त मिठाई समर्पित करें। एक लोटा जल लेकर अपने दाए हाथ में भीगे हुए मोठ और बाजरे को लेकर कथा का श्रवण करें। मोठ बाजरा यदि ना हो तो आप पुष्प को अपने हाथ में ले सकते हैं। कहानी को आप खाली हाथ नहीं सुनें।
कथा के श्रवण के उपरान्त आप मोठ बाजरा या पुष्प को नाग देवता को समर्पित करें।
इसके उपरान्त आप दिए से नाग देवता की आरती करें। इसके उपरान्त भगवान शिव का ध्यान लगाकर उनसे अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए विनय करेंगे और पूजा में यदि कोई कमी रह गई हो तो क्षमा याचना करेंगे। इसके उपरान्त जल के लोटे को सूर्य देवता को अर्घ दे देना है।  

नागपंचमी की आरती Naag Panchmi Aarti (नाग आरती Naag Aarti)

ओम जय जय कुल देवा,
स्वामी कुल देवा,
श्री नाग स्वामी जी की आरती,
नाग स्वामी जी की आरती,
वांछित फल मेवा,
ओम जय जय कुल देवा।

पूर्ण प्रकाशी, मणिधर,
पाताले सी,
स्वामी पाताले वासी,
भक्त चरण में आते,
दर्शन के प्यासे,
ओम जय जय कुल देवा।

अहिधर छत्र मनोहर,
संकट संहारी,
स्वामी संकट संहारी,
रिद्धि सिद्धि कुल वर्धक,
भक्तन उपकारी,
ओम जय जय कुल देवा।

दोशी वंशधर सेवा,
भक्ति नित्य करते,
स्वामी भक्ति नित्य करते,
धन धान्य संपत,
इच्छित फल मिलते,
ओम जय जय कुल देवा।

सत्यपुर नगर में आपरो,
परचो है भारी,
स्वामी परचो है भारी,
सेवक पूजा भक्ति,
विपदा हर नारी,
ओम जय जय कुल देवा।

ओम जय जय कुल देवा,
स्वामी कुल देवा,
श्री नाग स्वामी जी की आरती,
नाग स्वामी जी की आरती,
वांछित फल मेवा,
ओम जय जय कुल देवा।

नागपंचमी की कथा (कहानी) Naagpanchmi Katha (Kahani) Hindi Me

एक गांव में एक साहूकार था। उसके सात बेटे और सात बहुएं थी। सातों बहुएं मिट्टी लाने के लिए गई। जब वे मिट्टी खोदने लगी तो मिट्टी से एक सांप निकला। सभी साँप को लकड़ी से मारने की कोशिश करने लगी। तभी छोटी बहू ने कहा कि इसे मत मारिए, इसे जाने दीजिए। छोटी बहू के पीहर नहीं था तो उसने सांप को अपना भाई बना लिया और कहा कि तुम यहीं बैठे रहो। सांप वहीं बैठा रहा, दूसरे दिन जब छोटी बहू उपले लाने के लिए गई तब सांप वहीं बैठा था। सांप ने उसको डसने की कोशिश की। तब छोटी बहू बोली भाई जी राम-राम तब साँप उसे पहचान गया।

सांप ने कहा कि तुमने भाई बोल दिया वरना मैं तुम्हें डस लेता। तब छोटी बहू ने कहा आप मुझे कैसे डस लेते मैंने आपको धर्म का भाई बनाया है। छोटी बहू ने अपने सांप भाई को आशीर्वाद दिया। खुश होकर सांप ने उसे एक आभूषण (नेवर) दिया। जब वह नेवर पहन कर घर आई तब सभी देवरानी और जेठानी बोले कि सांप देवता ने इसे डसा नहीं और नेवर आभूषण भी दिया है।

थोड़ी देर बाद सांप अपनी बहन को लेने आया और कहा कि मेरी बहन को मेरे साथ भेज दो। सभी देवरानी जेठानी बातें करने लग गई की अपने तो पीहर में भाई हैं फिर भी लेने के लिए नहीं आए। देवरानी के भाई नहीं है फिर भी इसके धर्म का भाई इसको लेने के लिए आ गया। फिर उन्होंने उसे मेहंदी लगा कर सांप के साथ भेज दिया। जब सांप और साहूकार की छोटी बहू आ रहे थे तो रास्ते में एक खून की नदी मिली। तब छोटी बहू ने कहा कि यह नदी में कैसे पार करूंगी ? तब भाई बोला कि तुम मेरी पूंछ पकड़ लो। जैसे ही छोटी बहू ने सांप की पूंछ पकड़ी खून की नदी दूध की नदी हो गई। जब वह पीहर आई तो सभी उसे बड़े ही लाड प्यार से रखने लगे।

एक दिन सांप की मां बोली कि मैं बाहर जा रही हूं तुम अपने भाइयों को दूध ठंडा करके पिला देना। छोटी बहू ने सांपों को गरम गरम दूध ही डाल दिया, जिससे कई सांप के फन जल गए और किसी की पूंछ जल गई। जब पड़ोसन ने यह बात सांप की मां को बताई। सब यह कहने लगे कि अब इसको इसके ससुराल भेज दो।
जब छोटी बहू ससुराल जाने लगी तो उसकी ताईयां और चाचियाँ कहने लगी कि बेटा तुझे बहुत ही प्यार से रखा है। तुम्हें 6 कमरों की चाबी तो दे दी, लेकिन सातवें कमरे की चाबी नहीं दी। छोटी बहू को गुस्सा आया और उसने अपने भाई को कहा कि तुमने सातवें कमरे की चाबी मुझे क्यों नहीं दी।
सांप ने कहा कि तुम अगर सातवें कमरे की चाबी लोगी तो तुम्हें पछताओगी। लेकिन वह जिद करने लगी और उसने जिद करके कमरे की चाबी  ले ली।

जब उसने सातवें कमरे का ताला खोला तो सामने एक बड़ा अजगर बैठा था। उसको देखते ही अजगर ने फुफकार मारी। छोटी बहू ने कहा पिताजी राम-राम।अजगर ने कहा कि तुमने मुझे पिताजी कह दिया वरना मैं तुम्हें डस लेता। नाग देवता अजगर ने उन्हें खुश होकर नौ करोड़ का हार दे दिया । बहुत सारा धन और नौ करोड़ का हार लेकर वह अपने ससुराल आ गई।

सभी ने उसके पास इतनी धन दौलत और इतना कीमती हार देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। दूसरे दिन सभी के बच्चे खेल रहे थे और अनाज बिखेर रहे थे। तभी छोटी बहू के बच्चों को उसकी ताई और चाची बोलने लगी कि तुम्हारे नाना मामा तो अजगर और सांप हैं। तुम उनसे सोने और चांदी के अनाज की बोरियां मंगवा कर उनको बिखेरा करो। जब सांप ने यह बात सुनी तो उसने सोने चांदी के अनाज की बोरियां लाकर रख दी।
 थोड़े दिनों बाद छोटी बहू के बच्चे झाड़ू को बिखेर रहे थे। 
 
साहूकार की बड़ी बहू बोली कि तुम अपने नाना मामा से सोने चांदी की झाड़ू मंगवा लो और उनको बिखेरो। साहुकार का पूरा घर सोने चांदी से भर गया। किसी ने राजा को जाकर चुगली कर दी और कहा कि साहूकार की छोटी बहू के पास नौ करोड़ का हार है। वह नौ करोड़ का हार तो रानी के गले में ही सुंदर लगता है। राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि  वे छोटी बहू से हार लेकर आए। राजा के लोग छोटी बहू से हार लेकर जाने लगे तो छोटी बहू का मन उदास हो गया। उसने कहा कि जब यह हार मैं पहनू तब तो यह हार नौ करोड़ का हार रहे और जब कोई दूसरा इसे पहने तो सांप बन जाए। और वैसा ही हुआ।

 जब रानी ने यह हार पहना तो उसके गले में सांप ही सांप हो गए। राजा ने छोटी बहू को बुलाया और कहा यह सब क्या है? छोटी बहू ने बताया कि उसके पीहर नहीं था। उस ने सांप को भाई बनाया है। उसी ने यह हार उपहार में दिया है। उसके अलावा कोई भी यह हार पहनता है तो वह हार सांप बन जाता है। राजा ने वह हार छोटी बहू को वापस दे दिया। छोटी बहू ने जब हार पहना तब हार बन गया।
राजा को विश्वास हो गया। उसने प्रसन्न होकर खूब धन दौलत देखकर छोटी बहू को विदा किया। यह सब देखकर देवरानी जेठानी जलने लगी।

उन्होंने अपने देवर को कहा कि छोटी बहू इतना सारा धन दौलत कहां से लाती है? छोटी बहू के पति ने उससे पूछा तो उसने बताया कि एक दिन हम मिट्टी लाने गए तब एक सांप निकला। सभी उसको मार रहे थे लेकिन उसने उसकी जान बचाई और उसे भाई बना लिया। 

वह सांप उसका भाई है। तभी सांप प्रकट होता है और कहता है कि जो भी मेरी बहन के चरित्र पर शक करेगा मैं उसे डस लूंगा। यह देखकर साहूकार के बेटे को अपनी पत्नी पर विश्वास हो जाता है।
वह सभी गांव वालों को कहता है कि नाग पंचमी के दिन सभी ठंडी रोटी खाए, कहानी सुने और सांप देवता की पूजा करें।
हे नाग देवता जैसा छोटी बहू को पीहर दिखाया वैसा सभी को दिखाएं, कहानी सुनते हुए, कहानी कहते हुए को और उसके सारे परिवार को दिखाएं। जय नाग देवता की ।
 
अतः इस प्रकार "नाग पंचमी / Nag Panchmi" की कहानी सम्पूर्ण होती है. नाग देवता और शिव जी की कृपा आप पर अवश्य ही बनी रहे.
नागपंचमी : हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी का व्रत करके कथा सुनने का विधान है।
नागपंचमी पर नाग पूजन के मंत्र :-
नाग पंचमी का प्रथम मंत्र :-
ॐ भुजंगेशाय विद्महे,
सर्पराजाय धीमहि,
तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।

नाग पंचमी का द्वितीय मन्त्र
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
नागपंचमी का तृतीय मंत्र :-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात: काले विशेषत:।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥
Naag Devata Mantra in Hindi नाग देवता के मन्त्र
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।’
नाग देवता के मंत्र Nag Devata Mantra Hindi

ओम नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय,
धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।
 

नाग देवता आरती | ॐ जय जय कुलदेवा | Aarti Nagdev
 
कुलवर्धक कुलदीपसं,
कुल रक्षक आधार,
श्री नाग स्वामी जी के चरण में,
नमन है बारम्बार।
विनय विवेकी सद्गुणी,
वंश वर्धकसार,
भक्तजनों को दीजिये,
आशीष देव जुहार,
पातालपति नागेश्वर,
श्री नागस्वामी जी शुभ नाम,
विघ्न हरे संपत करे,
देवे आनंद धाम,
नगर सत्यपुरे विराजता,
कुल रक्षक अभिराम,
सेवक श्रधा भावसु,
मन पामे विश्राम।

ओम जय जय कुलदेवा,
स्वामी जय जय कुलदेवा,
श्री नाग स्वामी जी आरती,
नाग स्वामी जी आरती,
वांछित फल मेवा,
ओम जय जय कुलदेवा।

पूर्ण प्रकाशी मणिधर,
पाताले वासी,
स्वामी पाताले वासी,
भक्त चरण में आते,
दर्शन के प्यासे,
ओम जय जय कुलदेवा।

अहिधर छत्र मनोहर,
संकट संहारी,
स्वामी, संकट संहारी,
रिद्धि सिद्धि कुल्वार्धक,
भक्तन उपकारी,
ओम जय जय कुलदेवा।

दोशी वंशधर सेवा,
भक्ति नित्य करते,
स्वामी भक्ति नित्य करते,
धन धान्य सम्पद,
इच्छित फल मिलते,
ओम जय जय कुल देवा।
ओम जय जय कुलदेवा।

सत्यपुर नगर में आपरो,
परचो है भारी,
स्वामी परचो है भारी,
सेवक पूजा भक्ति,
विपदा हरनारी,
ओम जय जय कुल देवा।

ओम जय जय कुलदेवा,
स्वामी जय जय कुलदेवा,
श्री नाग स्वामी जी आरती,
नाग स्वामी जी आरती,
वांछित फल मेवा,
ओम जय जय कुलदेवा।

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