अनुक्ता ये भक्ताः प्रभुचरण संसक्तहृदयाः, अनिर्दिष्टाः वीराः अधिसमरमुद्ध्वस्तरि पवः।
समाजोद्धर्तारः सुहितकर विज्ञान निपुणाः, नमस्तेभ्यो भूयात्सकल सुजनेभ्यः प्रतिदिनम्।
इदमेकात्मता स्तोत्रं श्रद्धया यः सदा पठेत्, स राष्ट्रधर्म निष्ठावानखंडं भारतं स्मरेत्। भारत माता की जय।
एकात्मता स्त्रोत्र/ मंत्र महान भारतीय संस्कृति के विविध आयामों को सुन्दर तरीके से चित्रण करता है। इसका प्रारंभ ‘ॐ नमः सच्चिदानंद रूपाय परमात्मने’ से होता है, जो सर्वोच्च सत्य, चेतना और आनंद के रूप में परमात्मा की उपासना का प्रतीक है। यह स्त्रोत्र प्रकृति, पंचभूत, ग्रह-नक्षत्र, दिशा और काल के मंगलमय होने की मंगल कामना है। इस मंत्र में भारत माता की वंदना की गई है, जिसे हिमालय की किरीटिनी और ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ्यां कहा गया है।
इस स्त्रोत्र में भारत की पवित्र नदियों, प्राचीन नगरों, वेदों, पुराणों, उपनिषदों, महाकाव्यों और दर्शन शास्त्रों का स्मरण किया गया है। यह भारतीय ज्ञान के विशाल भंडार को प्रकट करता है। इसके अलावा, इसमें अनेक महान व्यक्तित्वों का उल्लेख है जिन्होंने धर्म, दर्शन, विज्ञान, कला, साहित्य और इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इस स्त्रोत्र का पाठ करने वाला व्यक्ति राष्ट्रधर्म के प्रति निष्ठावान होता है और अखंड भारत की स्मृति को जीवंत रखता है।
एकात्मता मंत्र एक संस्कृत मंत्र है जिसका वाचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में किया जाता है। इस मंत्र का मूल भाव यह है कि प्रभु एक ही है, उसको लोग अलग-अलग नामों से जानते हैं।