गुरु दर के पाँच नियम, गुरुमुख अपना ले तू, जन्मों से बिछड़ी रूह, मालिक से मिला ले तू, गुरुदर के पाँच नियम, गुरुमुख अपना ले तू, जन्मों से बिछड़ी रूह, मालिक से मिला ले तू।
श्री आरती और पूजा,
सुबह शाम जरूरी है, मालिक को रिझाये बिना, तेरी भक्ति अधूरी है, दुनिया के धंधों से, सुरती हटा ले तू।
तन मन और नम्रता से, निष्काम तू कर सेवा, गुरु कृपा से तुझको, मिले भक्ति का मेवा, भक्ति मुक्ति के दाता, सतगुरु को रिझाले तू।
खुल ज्ञान और चक्षु,
Satguru Bhajan Lyrics in Hindi
जाकर के सत्संग में, तन मन है रंग जाता, गुरु भक्ति के रंग में, संतो के संगत का, सदा लाभ उठाले तू।
निष्फल मन से करना, तू मालिक का सुमिरन, जब साफ है दिल दर्पण, कट जाये जन्म मरण, इस दुर्लभ नर तन को, अब लेके लगा ले तू।
सतगुरु के ध्यान में ही,
हरदम तेरा ध्यान रहे, हर पल तेरी जीवा पर, दास उनका नाम रहे, धुरधाम के संगी को, दिल में बसा ले तू।
गुरुदर के पाँच नियम, गुरुमुख अपना ले तू, जन्मों से बिछड़ी रूह, मालिक से मिला ले तू, गुरुदर के पाँच नियम, गुरुमुख अपना ले तू, जन्मों से बिछड़ी रूह, मालिक से मिला ले तू।
गुरु दर के पाँच नियम, गुरुमुख अपना ले तू, जन्मों से बिछड़ी रूह, मालिक से मिला ले तू, गुरुदर के पाँच नियम, गुरुमुख अपना ले तू, जन्मों से बिछड़ी रूह, मालिक से मिला ले तू।
शब्द "गुरु" एक संस्कृत शब्द है जो प्राचीन काल से उपयोग में लिया जाता है और इसका उपयोग हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म में एक आध्यात्मिक शिक्षक या मार्गदर्शक को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। गुरु उसे कहते हैं जो किसी विशेष विषय या दर्शन की गहरी समझ है और वह इस ज्ञान को दूसरों को प्रदान करने में सक्षम होता है। आधुनिक उपयोग में, "गुरु" शब्द का प्रयोग अक्सर किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेषज्ञ या प्राधिकरण को संदर्भित करने के लिए अधिक व्यापक रूप से किया जाता है, जो दूसरों को मार्गदर्शन और सलाह प्रदान करने में सक्षम होता है। उदाहरण के लिए, कोई वित्तीय गुरु, फिटनेस गुरु या तकनीकी गुरु का उल्लेख कर सकता है। "गुरु" शब्द किसी ऐसे व्यक्ति के लिए विश्वास, सम्मान और प्रशंसा की भावना को दर्शाता है जिसके पास किसी विशेष क्षेत्र में उच्च स्तर का ज्ञान और विशेषज्ञता है।
गुरुदर के पाँच नियम गुरुमुख अपना ले तू | जन्मों से बिछड़ी रूह मालिक से मिला ले तू
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