हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना,
अपने भक्तों से यूं मुंह ना मोड़ना।
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना,
अपने भक्तों से यूं मुंह ना मोड़ना।
तेरी कृपा बरसती है, तब आती मस्ती है,
बिन तेरे बाबा श्याम, मेरी क्या हस्ती है।
पिछले समय को कैसे भूलूं बाबा,
उलझा था मैं तो झंझटों में बाबा।
मुझे याद है वह भी दिन, दर-बदर भटकते थे,
दो रोटी के बदले मुझे ताने मिलते थे।
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना,
अपने बच्चों से तुम मुंह ना मोड़ना।
जो भी तेरे दर पर आता, वह तो जीत जाता है,
कृपा तेरी पाकर बाबा, फिर अभिमान भी आता है।
प्रेमी को प्रेमी से तुम यूं ना तोड़ना,
अपने बच्चों से यूं मुंह ना मोड़ना।
तेरी कृपा से अब तो मौज है बाबा,
दुनिया के सारे सुख तेरे चरणों में बाबा।
दुख में भी साथ तू, सुख में भी साथ तू,
रोशन की यह अर्जी, देना हरदम साथ तू।
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना,
अपने भक्तों से तुम मुंह ना मोड़ना।
अपने भक्तों से यूं मुंह ना मोड़ना।
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना,
अपने भक्तों से यूं मुंह ना मोड़ना।
तेरी कृपा बरसती है, तब आती मस्ती है,
बिन तेरे बाबा श्याम, मेरी क्या हस्ती है।
पिछले समय को कैसे भूलूं बाबा,
उलझा था मैं तो झंझटों में बाबा।
मुझे याद है वह भी दिन, दर-बदर भटकते थे,
दो रोटी के बदले मुझे ताने मिलते थे।
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना,
अपने बच्चों से तुम मुंह ना मोड़ना।
जो भी तेरे दर पर आता, वह तो जीत जाता है,
कृपा तेरी पाकर बाबा, फिर अभिमान भी आता है।
प्रेमी को प्रेमी से तुम यूं ना तोड़ना,
अपने बच्चों से यूं मुंह ना मोड़ना।
तेरी कृपा से अब तो मौज है बाबा,
दुनिया के सारे सुख तेरे चरणों में बाबा।
दुख में भी साथ तू, सुख में भी साथ तू,
रोशन की यह अर्जी, देना हरदम साथ तू।
हारूं या जीतूं ना मुझको छोड़ना,
अपने भक्तों से तुम मुंह ना मोड़ना।
@Anuragsitapur @khatushyamkebhajan
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सुन्दर भजन में उस गहरे विश्वास का चित्रण मिलता है जिसमें इंसान अपने जीवन की हर परिस्थिति में श्याम को ही अपना सहारा मानता है। जीत हो या हार, सुख हो या दुख – मन यही चाहता है कि श्याम अपनी कृपा-दृष्टि से कभी दूर न हों। भक्त जानता है कि उसकी हैसियत, उसकी पहचान सब कुछ श्याम की कृपा पर टिकी है।
बीते संघर्ष भुलाए नहीं जाते। भूख-प्यास और तानों से भरे दिन आज भी स्मृति में हैं। वही दिन हैं जिन्होंने यह अनुभूति दी कि श्याम की शरण के बिना जीवन दिशाहीन हो जाता है। कठिनाइयों से उठाकर जिसने संभाला है, वही सच्चा पालनहार है।
श्याम के दर पर आने वाला खाली हाथ नहीं लौटता, लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी है कि कृपा मिलने पर अभिमान न जगे। प्रेम का बंधन अहंकार से कमजोर न हो, इसलिए विनती यही है कि अपने बच्चों से दूरी न हो।
आज सुख और समृद्धि का अनुभव भी उनके चरणों से जुड़ा हुआ है। संसार की सारी मौज-मस्ती तभी टिकती है जब वह कृपा निरंतर बनी रहे। यही कारण है कि मन हर पल अर्जी करता है – चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, चाहे भाग्य पलटे या समय बदल जाए, श्याम से जुड़ाव कभी न टूटे।
बीते संघर्ष भुलाए नहीं जाते। भूख-प्यास और तानों से भरे दिन आज भी स्मृति में हैं। वही दिन हैं जिन्होंने यह अनुभूति दी कि श्याम की शरण के बिना जीवन दिशाहीन हो जाता है। कठिनाइयों से उठाकर जिसने संभाला है, वही सच्चा पालनहार है।
श्याम के दर पर आने वाला खाली हाथ नहीं लौटता, लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी है कि कृपा मिलने पर अभिमान न जगे। प्रेम का बंधन अहंकार से कमजोर न हो, इसलिए विनती यही है कि अपने बच्चों से दूरी न हो।
आज सुख और समृद्धि का अनुभव भी उनके चरणों से जुड़ा हुआ है। संसार की सारी मौज-मस्ती तभी टिकती है जब वह कृपा निरंतर बनी रहे। यही कारण है कि मन हर पल अर्जी करता है – चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, चाहे भाग्य पलटे या समय बदल जाए, श्याम से जुड़ाव कभी न टूटे।
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Admin - Saroj Jangir
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