Durga Saptashati keelakam Lyrics Meaning Translation

The specific importance and hymns of the Durga Saptashati are called as Durga Saptashati keelakam or Devi Keelak Stotram. Durga Saptashati Keelakam is a set of Thirty-Two Mantras which are chanted before start reciting the Durga Saptashati path or Chandi path. Such mantras are said to help eliminate the barriers, acquire success and prevent the negative energies from affecting the devotee during the reading of the scripture. A part of the Durga Saptashati, the Keelakam includes the selected portion of the scripture which is regarded to be the pith of the whole Matri Vidyaa. It is considered that while chanting these mantras one actually brings the blessings of the Goddess to oneself and also creates a shield around oneself. Keelakam is also an integral part of Durga Saptashati and is chanted before the devoted starts reading it daily. 

Durga Saptashati keelakam Lyrics Meaning Translation

Durga Saptshati Keelkam Lyrics 

॥ अथ कीलकम् ॥
ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहासरस्वती देवता,श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे॥1॥
सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम्।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः॥2॥
सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति॥3॥
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्॥4॥
समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्॥5॥
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम्॥6॥
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः॥7॥
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥8॥
यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः॥9॥
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्॥10॥
ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः॥11॥
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम्॥12॥
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्॥13॥
ऐश्‍वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानिःपरो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः॥14॥
॥ इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
 

Translation / Meaning of Durga Saptashati keelakam (Devi Keelak Stotram)  in English

अथ कीलकम् - Now the Kila (a type of mantra or ritual)
ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहासरस्वती देवता,श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
The Kila mantra, with Shiva as the Rishi (seer), Anushtup chandas (a specific meter of Sanskrit verse), Mahasaraswati as the deity, and for the purpose of pleasing the divine mother of the universe, the SaptaShati (a set of 700 verses in the Devi Mahatmyam) is to be recited with this Kila.

ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥ - Om, salutations to Chandika (another name for the goddess Durga)
मार्कण्डेय उवाच - Markandeya said:
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे॥

Om, salutations to the half-moon (Lord Shiva) who possesses the pure knowledge and divine vision of the three Vedas, and who is the cause of attaining ultimate well-being.

सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम्।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः

Know that this is the Kila of all mantras. By constantly reciting it with dedication, one attains peace and well-being. 

सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि।
All objects, including those achieved through various methods of worship, are attainable through this hymn of praise.
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति॥
By just reciting this hymn of praise, the Goddess bestows success.
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
There is no need for mantras or medicines there, nor is anything else required.
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्॥
All achievements, including the attainment of mystical powers, can be obtained without reciting any other hymn, merely by reciting this hymn of praise.
 
समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
sama-grāṇy-api siddhyanti loka-śaṅkām-imāṃ haraḥ।
Even the most difficult problems of the world are solved by Lord Shiva.
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्॥
kṛtvā nimantryām-āsa sarvam-evam-idam śubham॥5॥
After reciting this auspicious stotra, Lord Shiva granted all the boons.
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।
stotraṃ vai caṇḍikāyāstu tacca guptaṃ cakāra saḥ।
This stotra was offered to Devi Chandika, and Lord Shiva kept it hidden.
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम्॥
samāptir-na ca puṇyasya tāṃ yathāvanniy-antraṇām॥6॥
There is no limit to the blessings that one receives by reciting this stotra with devotion.
 
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः।
sopi kṣemamavāpnoti sarvamevaṃ na saṃśayaḥ।
He too attains safety without a doubt in this way, all of it.
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः॥
kṛṣṇāyāṃ vā caturdaśyāmaṣṭamyāṃ vā samāhitaḥ॥7॥
Being concentrated during the 14th or 8th day of the dark fortnight, or on the day of Krishna Janmashtami.
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
dadāti pratigṛhṇāti nānyatha eṣā prasīdati।
This mantra yields success only when one gives and receives gifts in its name.
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥
itthaṃ rūpeṇa kīlena mahādevena kīlitam॥8॥
In this way, by the nail of Mahadeva, it is embedded.
यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
yo niṣkīlāṃ vidhāya enāṃ nityaṃ japati saṃsphuṭam।
The person who chants this mantra every day, after implanting it with a nail, becomes perfect.
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः॥
sa siddhaḥ sa gaṇaḥ so'pi gandharvo jāyate naraḥ॥9॥
That person becomes accomplished, as do his companions, and he is reborn as a Gandharva.
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
na caivāpyaṭatastasya bhayaṃ kvāpīha jāyate।
His safety is not threatened, not even when he falls.
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्॥
nāpamṛtyuvaśaṃ yāti m
Meaning: One who regularly chants the hymn and meditates on the goddess without any doubt, attains peace and protection. Whether on the fourteenth night of the dark fortnight of the month of Bhadrapada or on the eighth night, the goddess blesses and bestows boons. By reciting this hymn with devotion, one can attain siddhis and become a part of the ganas of Lord Shiva. The hymn has been sanctified by being engraved on a spike by Lord Mahadeva himself. One who regularly chants this hymn with concentration and devotion attains the state of being a siddha or a gandharva and is not affected by fear or death. Even after death, such a person attains liberation from the cycle of birth and death.
 
ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
One who starts without knowing (what to do) will perish; therefore, one should start only after knowing what to do.
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः॥
Therefore, wise men, knowing this, start only after becoming accomplished (in knowledge), and then this (worship) is started.
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।
Whatever good fortune, etc. that is seen in one's family,
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम्॥
all of that (good fortune) should be prayed for by him (the worshipper) with the grace (of the Goddess), by reciting this (stotra).
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
Gradually, through the repetition of this stotra, wealth is attained by the wise men.
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्॥
Therefore, (wealth) comes entirely (to the wise men) through this (worship), and is thus started.
ऐश्‍वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
By the grace of the Goddess, prosperity, good fortune, health, and wealth are obtained.
शत्रुहानिःपरो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः॥
She who destroys the enemies (of her devotees) and grants liberation, is praised by all.
॥ इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Thus ends the complete hymn of Devi Kilaka Stotram.
 

Durga Saptashati keelakam Translation / Meaning in Hindi

मार्कण्डेय उवाच - मार्कण्डेय कहते हैं।
ॐ नमश्चण्डिकायै - ओम्, चण्डिका के नाम से स्तुति करते हैं ।
अथ कीलकम् - अब कीलकमन्त्र (श्रीकीलकमन्त्र) का उच्चारण करते हैं।
ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः - इस श्रीकीलकमन्त्र के ऋषि भगवान शिव हैं।
अनुष्टुप् छन्दः - इस मन्त्र का छंद अनुष्टुप् है।
श्रीमहासरस्वती देवता - इस मन्त्र की देवता श्रीमहासरस्वती हैं।
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं - इस मन्त्र के उच्चारण से जगदम्बा (दुर्गा माता) को प्रसन्न करने के लिए।
सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन - सप्तशती (दुर्गा सप्तशती) के पाठ से संबंधित होने के कारण।
जपे विनियोगः - इस मन्त्र का जप करते समय विनियोग करते हैं।

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे॥1॥
विशुद्धज्ञानदेहाय - जो शुद्ध ज्ञान के देह धारण करते हैं।
त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे - जो तीनों वेदों को जानने वाले और दिव्य नेत्र धारण करने वाले हैं।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय - श्रेयस (उत्तम लाभ) प्राप्ति के लिए।
नमः सोमार्धधारिणे - सोमार्धधारी को मेरा नमन। सोमार्धधारी का अर्थ है जो अपने शरीर के आधार पर अर्धचन्द्र धारण करते हैं।
इस मंत्र का संक्षिप्त अर्थ है - जो शुद्ध ज्ञान के देह धारण करते हैं, तीनों वेदों को जानते हैं और दिव्य नेत्र धारण करते हैं, उनके लिए श्रेयस (उत्तम लाभ) प्राप्ति का सम्भव होता है। हे सोमार्धधारी, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
 
सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम्।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः॥

सर्वमेतत् विजानीयात् - सब इस विशिष्ट मंत्र की जानकारी ले।
मन्त्राणामभिकीलकम् - इस मंत्र को अधिक से अधिक जानना।
सः अपि क्षेमम् अवाप्नोति - जो इस मंत्र को सतत जपता है, वह भी आरोग्य और सुख की प्राप्ति करता है।
सततं जाप्यतत्परः - जो सदैव इस मंत्र के जप में लगे रहते हैं, वे उसमें लगे रहते हैं।
इस मंत्र अर्थ है - सभी इस विशिष्ट मंत्र की जानकारी ले, इसे अधिक से अधिक जानें। जो इस मंत्र को सतत जपता है, वह भी आरोग्य और सुख की प्राप्ति करता है। जो सदैव इस मंत्र के जप में लगे रहते हैं, वे उसमें लगे रहते हैं।
यह मंत्र सभी को अधिक से अधिक जानना चाहिए। जो इस मंत्र को सतत जपता है, उसे आरोग्य और सुख की प्राप्ति होती है। जो सदैव इस मंत्र के जप में लगे रहते हैं, वे उसमें लगे रहते हैं।
 
सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति॥3॥

सभी वस्तुएं जैसे उत्तम लाभ आदि सब सिद्ध हो जाती हैं। इसलिए देवी को स्तुति करने वाले सिर्फ स्तोत्र से ही सिद्धि प्राप्त होती है।॥
 
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्॥4॥

न तत्र मन्त्र होता है, न औषधि होती है, न कुछ अन्य विधि होती है। उच्चाटन आदि सभी सिद्ध हो जाते हैं, बस स्तुति करने से ही सब सिद्ध हो जाता है।॥4॥
 
समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्॥

समस्त लोग इस शंकामोचन मंत्र से सिद्ध हो जाते हैं, हे हरि! इस प्रकार सबको निमंत्रित करके सब कुछ शुभ हुआ।॥ The word "लोकशङ्कामिमां" can be translated as "this fear of the world" or "this fear among people".
 
 
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम्॥6॥

यह स्तोत्र चण्डिका के लिए है और उसने उसे गुप्त रखा है। इस पुण्य का समाप्ति नहीं हुआ और उसे अपनी इच्छानुसार नियंत्रित नहीं किया गया है।

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः॥7॥

सोऽपि क्षेममवाप्नोति - वह भी समस्त कल्याण प्राप्त करता है
सर्वमेवं न संशयः - इसमें कोई संशय नहीं है
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः - या तो चतुर्दशी तिथि में या अष्टमी तिथि में समाहित रहता है।
 
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥8॥

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति। - इस मंत्र के उच्चारण से वह व्यक्ति जो दान देता है और जो दान लेता है, उन दोनों को संतुष्टि मिलती है।
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥8॥ - इस रूप में, महादेव द्वारा जो अंगूठी पहनाई गई है, उसे इस मंत्र के उच्चारण से कीला लगा दिया गया है। इससे उस अंगूठी को धारण करने वाले व्यक्ति की रक्षा होती है और उसे सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
 
यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः॥9॥

जो इन निष्कील जप माला को सदैव जपता है, वह सिद्ध, गण और गंधर्व रूप में मनुष्य के रूप में जन्म लेता है।
जो इस निष्कील जप माला को नित्य जपता है, वह सिद्ध, गण और गंधर्व रूप में मनुष्य के रूप में जन्म लेता है।

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्॥10॥

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते। - जो पुरुष निष्क्रिय रहकर यह जप करता है, उसे कभी भी डर नहीं लगता।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्॥10॥ - उसे मृत्यु का वश नहीं होता है और वह मरने के बाद मोक्ष को प्राप्त होता है।
जो पुरुष निष्क्रिय रहकर इस मन्त्र को नित्य जपता है, उसे कभी भी डर नहीं लगता और मृत्यु का वश नहीं होता है, वह मरने के बाद मोक्ष को प्राप्त होता है।

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः॥

ज्ञात्वा प्रारम्भ करना चाहिए, क्योंकि न करने वाला विनष्ट हो जाता है। इसलिए बुद्धिमान इस ज्ञान को जानकर ही कार्य शुरू करता है।
कोई भी कार्य शुरू करने से पहले उसकी पूर्ण जानकारी लेना चाहिए और फिर ही उसे शुरू करना चाहिए। अगर कोई बिना जानकारी के कार्य शुरू करता है तो वह विनाश को जाता है। बुद्धिमान लोग इस ज्ञान को जानकर ही कार्य शुरू करते हैं।

सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम्॥12॥

जो भी सौभाग्यादि कुछ भी दृश्यमान होता है, उस सबको भगवान की कृपा से जाप किया जाना चाहिए।
इस श्लोक में बताया गया है कि जब हमें सौभाग्य या कुछ अन्य भी अच्छा दिखाई देता है, तो हमें उसे भगवान की कृपा से जाप करना चाहिए ताकि हमारी जिंदगी में और भी अधिक सौभाग्य आए और हमें आनंद भी मिले।

शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्॥13॥

शनैः इस स्तोत्र का जप करते हुए उत्तम धन आदि की प्राप्ति होती है। इससे समस्त संपत्ति प्राप्त होती है, इसलिए इससे ही प्रारंभ करना चाहिए।
इस स्तोत्र का शांति से जप करने से उत्तम धन आदि की प्राप्ति होती है। इससे समस्त संपत्ति प्राप्त होती है और इससे ही प्रारंभ करना चाहिए।

ऐश्‍वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानिःपरो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः॥
॥ इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य और सम्पदा के प्रसाद से शत्रुओं का नाश और मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए इस देवी की कीलक स्तोत्र को जनों द्वारा स्तुति की जानी चाहिए।

दुर्गा सप्तशती की कीलक श्लोकों का मूल उद्देश्य दुर्गा माता की कृपा और आशीर्वाद से सौभाग्य, धन, स्वास्थ्य और मोक्ष जैसी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए जप की विधि बताना है। इसके अलावा, यह श्लोक जीवन को सकारात्मक बनाने और रक्षा के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस श्लोकों के जप से व्यक्ति भक्ति और उन्नति प्राप्त करता है और दुर्गा माता की कृपा से उनके समस्त संकट दूर होते हैं।



Devi Keelakam | Kilak Stotram |Durga Saptashati Stotram || Durga Stotra |Madhvi Madhukar Jha

 
Q: What is meant by Durga Saptashati keelakam?
A: Durga saptashati keelakam is a hymn or stotra which forms part of Durga Saptashati which is an appendix to the Markandeya Purana. It comprises of 15 verses and is meant to be chanted for praying to goddess and get prosperity, protection and good health.

Q: What is its importance – Durga Saptashati keelakam?
A: Durga Saptashati keelakam is accepted as one of the powerful hymns which would help one to tide over problems in life. People have faith that their family will be protected and they shall be blessed with wealth if they chant this mantra whole heartedly. It is also believed to ‘rub the sparks’ of the person and assists him/her in attaining his/her soul evolution.

Q: What all sounds is Durga Saptashati keelakam chanted with?
A: Durga Saptashati keelakam is recited in the style of the hymns and mantras of Hindu religion as other ones. In any case, it is suggested that the hymn should be chanted with a clean mind and a full concentration of the self while the best time is at dawn or at dusk. Before chanting the hymn one can also do a simple puja or offering to the goddess.

Q: Can anybody here chant Durga Saptashati keelakam?
A: Of course everyone he can chant Durga Saptashati keelakam irrespective of sex, caste or creed. The hymn is said to help anyone who recites it, given that, the individual is genuine in his or her approach.

Q: That is what the benefits of chanting Durga Saptashati keelakam are?
A: Despite its multiple advantages, chanting Durga Saptashati keelakam is regarded to help in fighting the negative energies and the evil spirits roaming around to harm people as well as protect them from diseases and other related ailments which only imply good health, success in any given endeavours and other important aspects as part of spiritual life. The hymn is also stated to have the ability to improve one’s mental health and emotions of happiness and order the life of a person.
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