चालीसा में शिव की महिमा, गुण और लीलाओं का वर्णन है। इसमें शिव को महाकल, नीलकंठ, गंगाधर, त्रिनेत्र और भोलेनाथ जैसे नामों से पूजा की गई है। शिव चालीसा में शिव की भक्ति, पूजा और आराधना का महत्व बताया गया है। यह गान शिव भक्तों को ध्यान, ध्यान, धारणा और ध्यान की आवश्यकता की गहराई को समझाता है और उन्हें अपने मन, शब्द और कार्य में एकाग्र रहने की प्रेरणा देता है।.
शिव की चालीसा
दोहा जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान, कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान। चौपाई जय गिरिजा पति दीन दयाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला, भाल चन्द्रमा सोहत नीके, कानन कुण्डल नागफनी के।
अंग गौर शिर गंग बहाये, मुण्डमाल तन क्षार लगाए, वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे, छवि को देखि नाग मन मोहे।
मैना मातु की हवे दुलारी, बाम अंग सोहत छवि न्यारी, कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रुन क्षयकारी।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे, सागर मध्य कमल हैं जैसे, कार्तिक श्याम और गणराऊ, या छवि को कहि जात न काऊ।
देवन जबहीं जाय पुकारा, तब ही दुख प्रभु आप निवारा, किया उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।
तुरत षडानन आप पठायउ, लवनिमेष महँ मारि गिरायउ, आप जलंधर असुर संहारा, सुयश तुम्हार विदित संसारा।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई,
सबहिं कृपा कर लीन बचाई, किया तपहिं भागीरथ भारी, पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।
पूर्ण करो जगदीश। मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान, स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।
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शिव चालीसा मीनिंग
जय गणेश गिरिजा सुवन - हे गणेश और गिरिजा (पार्वती) के पुत्र, तुम्हें नमस्कार करता हूँ। मंगल मूल सुजान - तुम जन्म से ही मंगलमय हो और ज्ञानी हो। कहत अयोध्यादास तुम - अयोध्या के बासी तुमसे कहते हैं, देहु अभय वरदान - हे देव, हमें अभय (निर्भयता) और वरदान दें। जय गिरिजा पति दीन दयाला - हे गिरिजा के पति, दीनबन्धु (गरीबों के दोस्त) और दयालु (करुणामय) हैं। सदा करत सन्तन प्रतिपाला - वे सदा ही सन्तान का पालन करते हैं। भाल चन्द्रमा सोहत नीके - उनके मस्तक पर चंद्रमा शोभीत है। कानन कुण्डल नागफनी के - उनके कान में कुंडल और नागफनी जैसे आभूषण हैं।
अंग गौर शिर गंग बहाये - शिव जी के शरीर पर गौर (गोरा) रंग है और उनके शिरे से गंगा नदी बहती है। मुण्डमाल तन क्षार लगाए - उनके शरीर पर मुण्डमाल (माला) है और उनके शरीर पर धूलि (क्षार) लगी है। वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे - उनके ऊपर बाघ की चमड़ी से बने हुए वस्त्र सजा हुआ है और वे बहुत सुहाते हैं। छवि को देखि नाग मन मोहे - उनकी छवि देखकर नाग (सर्प) जैसे मन मोहित हो जाते हैं।
मैना मातु की हवे दुलारी - भगवान शिव माता धन्य हैं। बाम अंग सोहत छवि न्यारी - उनके बांएं हाथ का अंग (भाग) सुंदर छवि हैं। कर त्रिशूल सोहत छवि भारी - उनके हाथ में त्रिशूल है, जिसकी छवि भारी और प्रभावशाली है। करत सदा शत्रुन क्षयकारी - उनके त्रिशूल द्वारा सदा शत्रुओं का नाश करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे - भगवान शिव के वाहन नन्दि और गणेश उनके पास सुंदरता से सोते हैं, यहां इसका वर्णन कैसे करूं। सागर मध्य कमल हैं जैसे - उनकी छवि धरती के मध्य में स्थित समुद्र के बीच कमल की तरह है, जैसे सुंदरता का परिचय कराऊं। कार्तिक श्याम और गणराऊ - भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय (कार्तिक) और गणराज गणेश, जिनकी छवि को किसी को भी न कहा जा सके, क्योंकि वे अत्यन्त आकर्षक और सुंदर हैं। देवन जबहीं जाय पुकारा - जब देवता आपको पुकारते हैं, तब ही दुख प्रभु आप निवारा - तब आप दुख को हर लेते हैं और उन्हें शांति प्रदान करते हैं, किया उपद्रव तारक भारी - जब तारकासुर जैसे दुष्ट राक्षस ने बहुत अत्याचार किया. देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी - तब सभी देवता आपकी शरण में आए और आपसे सहायता मांगते हैं।
तुरत षडानन आप पठायउ - तुरंत आप षडानन को बुलाते हैं, लवनिमेष महँ मारि गिरायउ - मिनटों में आप लवनिमेष (काल) को मार गिराते हैं, आप जलंधर असुर संहारा - आप जलंधर राक्षस का संहार करते हैं, सुयश तुम्हार विदित संसारा - आपकी महिमा संसार में विदित (विख्यात) है। त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई - जब त्रिपुरासुर नामक राक्षस के साथ युद्ध हुआ, सबहिं कृपा कर लीन बचाई - आपने सभी पर अपनी कृपा बनाये रखकर सभी को उनके अत्याचार से बचा लिया. किया तपहिं भागीरथ भारी - भागीरथ ने कठोर तपस्या की. पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी - जिस प्रकार आपने पूर्व में दी हुई प्रतिज्ञा को पूरा किया, वैसे ही आप पूर्ण हैं।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं - आपके जैसा दाता और दयालु कोई नहीं है, सेवक स्तुति करत सदाहीं - आपके सेवक हमेशा आपकी स्तुति करते रहते हैं, वेद माहि महिमा तुम गाई - वेदों में आपकी महिमा गाई गई है, अकथ अनादि भेद नहिं पाई - आपके अकथ्य और अनादि भेद को कोई नहीं पा सकता है। प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला - जब समुद्र मंथन किया गया था और ज्वाला उत्पन्न हुई थी, जरत सुरासुर भए विहाला - जब जरासुर नामक एक राक्षस बहुत विह्वल हो गया था, कीन्ही दया तहं करी सहाई - तब आपने उस पर दया की और सहायता की, नीलकण्ठ तब नाम कहाई - उस समय आपको नीलकण्ठ नाम से पुकारा गया था। पूजन रामचंद्र जब कीन्हा - जब भगवान राम ने आपकी पूजा की, जीत के लंक विभीषण दीन्हा - जब आपने लंका के राजा विभीषण को जीतने के उपरान्त दे दिया.
एक कमल प्रभु राखेउ जोई - जो प्रभु ने एक कमल (हृदय) में रखा है और उसकी पूजा की गई है, कमल नयन पूजन चहं सोई - जो प्रभु के नयन (आंखें) को पूजनीय माना गया है, कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर - जब प्रभु ने कठिन भक्ति को देखा, जो भक्ति आपके लिए समर्पित थी, भए प्रसन्न दिए इच्छित वर - तब प्रभु खुश हो गए और उस भक्ति का वर दिया। जय जय जय अनन्त अविनाशी - हे अनन्त और अविनाशी शंकर, तुम्हें जय हो! करत कृपा सब के घटवासी - तुम सभी के हृदय में निवास करते हैं और सभी पर अपनी कृपा बरसाते हैं, दुष्ट सकल नित मोहि सतावै - सभी दुष्ट लोग मेरा सताते रहते हैं, भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै - मैं भटकता रहता हूँ और मेरो कल्याण नहीं होता। त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो - हे नाथ, मेरी मदद करो और मुझे बचा लो! यही अवसर मोहि आन उबारो - यही समय है मेरी सहायता करने का, मुझे उबार दो! ले त्रिशूल शत्रुन को मारो - अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं को मार डालो! संकट से मोहि आन उबारो - मेरी संकट से मुझे बचा लो! मात-पिता, भ्राता सब होई - मेरी माता, मेरे पिता, मेरे भ्राता सब हैं, संकट में पूछत नहीं कोई - जब मैं संकट में होता हूँ, तब कोई नहीं पूछता, स्वामी एक है आस तुम्हारी - तुम्हारी आशा है मेरे एक स्वामी पर, आय हरहु मम संकट भारी - आओ और मेरे संकट को हर लो। धन निर्धन को देत सदा हीं - तुम सदा धन और निर्धन को देते हो, जो कोई जांचे सो फल पाहीं - जो भक्त तुम्हें जांचते हैं, उसको तुम फल प्रदान करते हो, अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी - तुम्हारी स्तुति करने के लिए कोई विधि नहीं है, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी - हे नाथ, हमारी चूकों को क्षमा करो।
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