दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन। तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन। आदर मान महत्व, सत बालापन को नेहु। यह चारों तबहीं गए, जबहिं कहा कछु देहु। इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत। बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत। अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम। दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।
पूरा नाम मलूकदास खत्री, जन्म 1574 सन् (1631 संवत) में हुआ। उनका जन्म भूमिकड़ा इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी मृत्यु 1682 सन् (1739 संवत) में हुई। उनके अभिभावक कालाला सुंदरदास खत्री थे। मलूकदास खत्री कर्म-क्षेत्र में कवि और लेखक थे। उनकी मुख्य रचनाएं रत्नखान, ज्ञानबोध, भक्ति विवेक आदि थीं। उन्होंने अनेक ग्रंथों को फारसी, अवधी, अरबी, खड़ी बोली आदि भाषाओं में लिखा। वृंदावन में, मलूक पीठ क्षेत्र में, संत मलूकदास की जाग्रत समाधि स्थापित है।