तोटक: द्वादशाक्षर विशिष्ट संस्कृत छन्द। नव-नीरद-सुन्दर-कान्ति-तनो, शुभ- दारब-विग्रह- रम्य हनो, अतिबेल-समाकुल महीवने, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। अर्थ: नये बादलों की तरह सुंदर, दीप्ति विशिष्ट हे शरीर वाले, हे मंगलमय काष्ठ मूर्ति, विशिष्ट सुन्दर गाल वाले, हे असीम परि व्याप्त, हे बसुधाधिप हे जगन्नाथ, मेरी भाँति दरिद्र में दया करो।
असिताचल- मंडन चक्रधर, कमलाधव माधव दीर्घकर, गरुड़ासन बत्सल भक्त-जने, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। अर्थ: हे नील पर्वत शोभन हे चक्रधर, हे लक्ष्मी के स्वामी, हे लक्ष्मी-बल्लभ, हे दीर्घबाहु हे गरुड़-बाहन,
हे भक्त-जन-स्नेही हे जगन्नाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो।
सुर-नायक चक्रित नेत्र- हरे, पुरु-चन्दन-चर्चित- नेत्रवरे, परिरक्षक वीक्षक दुःखि-जने, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। अर्थ हे देवाग्रणी हे गोल-आँख वाले हरि, हे पर्य्याप्त-चन्दन-लेपित-सुंदर-शरीर, हे दरिद्रों के सर्वथा रक्षक, और दर्शक जगन्नाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो।
जय दानव मर्दन नन्दत, विधि-शंकर-वासव-सुर-नूत, सतताकुल किल्विष संहरणे, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। अर्थ: हे दैत्यनाशक नन्दकुमार तुम्हारी जय हो, हे ब्रह्मा शिव-इन्द्रादिदेव के नमस्कृत, पाप नाश करने में हमेशा, व्याकुल हे जगन्नाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो।
श्रुति-संच-संस्तुत- नित्य-मुने, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। अर्थ: हे गले में लम्बित, मालाधारी श्रेष्ठ पुरुष, हे भक्त जयदेवोक्त, (गीतगोविन्द खंडुआ) वस्त्रधारी, वेद-संगृहीत स्तुतियों द्वारा, ऋषियों के नित्य आराध्य, हे जगन्नाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो।
भव-बन्धन-मोचन-भक्तरते, मुख दर्शन-खंडित-दुःखतते, प्रणतार्ति हरोज्ज्वल-नीलमणे, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। अर्थ: हे संसारिक बंधन के, मुक्तिदाता हे भक्तासक्त, श्रीमुख दर्शनमात्रे हे, दुख-दुर्गतियों के नाशक, हे प्रणतों के दुखहारक, हे उज्ज्वल-नीलमणितुल्य श्री, हे जगन्नाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो।
ससुभद्र सुभद्रक पार्थ- सखे,
घृत-वामन-विग्रह दैत्य-सखे, गणनाथ वपुर्धर जन्मदिन, जगदीश कृपां कुरु दीन जने। अर्थ: हे सुभद्रा के साथ वर्तमान, हे कल्याणकर हे अर्जुन-बंधु, राक्षस के यज्ञ में, हे वामन रूपधारी, जन्मदिन में हे गजानन, रूपधारी जगन्नाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो।
रथ-मण्डन-मण्डित-मन्द-गते, वर-हाटक-भूषण- कान्ति-तते, बहु-सेवक-सेवित सर्वदिने, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। अर्थ: सुंदर रथ पर विराजित, हे धीर-मंथर गामी, हे श्रेष्ठ स्वर्णालंकार, मंडित शोभाधारी हमेशा, बहु-सेवकों के द्वारा सेवित, हे जगनाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो।
नरसिंह बराह धराधिपते, जन-मानस हारक सर्व-गते, विनिवेदनकं कुल-पूर्व-मणे, जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। इति श्री पंडित कुलमणि, मिश्र-विरचितं, श्रीजगन्नाथ-तोटकाष्टकं संपूर्णम। अर्थ: हे नृसिंह हे बराह, हे बसुधाधिपति, हे भक्त जनों के हृदय-हारक, हे सर्वत्र विराजित, पंडित कुलमणि का, निवेदन ग्रहण करो, हे जगन्नाथ, मेरी तरह दरिद्र में दया करो। इस प्रकार, पंडित कुलमणि मिश्र, विरचित, श्री जगन्नाथ-तोटकाष्टक, समाप्त हुआ।
श्री जगन्नाथ तोटकाष्टकम् l Jagannath Stotram l Madhvi Madhukar