भगवान श्री कृष्ण जी का नाम "कृष्ण" क्यों है और इसका अर्थ Krishna Meaning in Hindi
श्री कृष्ण के नाम का अर्थ "काला", "सांवला" है. उन्हें यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि वे जन्म से ही श्याम रंग के थे. उनके पिता वासुदेव और माता देवकी उन्हें कंस के क्रोध से बचाने के लिए गोकुल में छिपाकर रखते थे. कृष्ण गोकुल में गोप गोपियों के साथ गायों को चराते थे, माखन चोरी करते थे और अपने दोस्तों के साथ खेलते थे. कृष्ण और कृष्णा दो अलग-अलग नाम नहीं हैं, बल्कि वे एक ही नाम के दो रूप हैं. कृष्ण का अर्थ है "काला" और कृष्णा का अर्थ भी "काला" है. हालांकि, कृष्णा का उपयोग आमतौर पर महिलाओं के लिए किया जाता है, जबकि कृष्ण का उपयोग पुरुषों के लिए किया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कृष्णा को अक्सर भगवान कृष्ण की पत्नी राधा के साथ जोड़ा जाता है. राधा एक महिला थीं, इसलिए कृष्णा का उपयोग उनके लिए किया जाता है.
श्री कृष्ण के नामकरण की कथा
एक दिन, कुल पुरोहित गर्गाचार्य गोकुल आए. वे श्री कृष्ण और बलराम के नामकरण के लिए आए थे. बलराम के नामकरण के बाद गर्गाचार्य (महर्षि गर्ग) ने श्री कृष्ण जी का नाम रखा. श्री कृष्ण जी का तेजस्वी, दिव्य और करुणामयी रूप देख ऋषि गर्ग आश्चर्यचकित हो गए और बहुत हर्षित होकर बोले कि इस बालक का नाम कृष्ण होगा. महर्षि ने कारण बताते हुए कहा कि इस अवतार में इस दिव्य बालक का वर्ण काला है, कुछ सांवला है, इसलिए भगवान् श्री कृष्णा जी का नाम कृष्ण रखा गया. . बलराम का नाम उन्होंने बलराम रखा क्योंकि वे बहुत बलशाली थे. श्री कृष्ण और बलराम के नामकरण समारोह में सभी लोग शामिल हुए. वे सभी श्री कृष्ण और बलराम के लिए बहुत खुश थे. वे जानते थे कि वे एक दिन महान व्यक्ति बनेंगे.
श्री कृष्ण जी के नाम की महिमा
कृषिरुत्कृष्टवचनो णश्च सद्भक्तिवाचकः।
अश्चापि दातृवचनः कृष्णं तेन विदुर्बुधाः॥३२॥
कृषिश्च परमानन्दे णश्च तद्दास्यकर्मणि।
तयोर्दाता च यो देवस्तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३३॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३२-३३
अश्चापि दातृवचनः कृष्णं तेन विदुर्बुधाः॥३२॥
कृषिश्च परमानन्दे णश्च तद्दास्यकर्मणि।
तयोर्दाता च यो देवस्तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३३॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३२-३३
राधा जी कृष्ण जी के नाम की महिमा के बारे में कहती हैं की ‘कृषि’ उत्कृष्टवाची, ‘ण’ सद्भक्तिवाचक और ‘अ’ दातृवाचक है; और यही कारण है की ज्ञानीजन इनको कृष्ण कहते हैं. श्री कृष्ण ही दाता हैं.
कोटिजन्मार्जिते पापे कृषिःक्लेशे च वर्तते।
भक्तानां णश्च निर्वाणे तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३४ ॥
सहस्रनाम्ना: दिव्यानां त्रिरावृत्त्या चयत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य तत्फलं लभते नरः॥३५॥
कृष्णनाम्नः परं नाम न भूतं न भविष्यति।
सर्वेभ्यश्च परं नाम कृष्णेति वैदिका विदुः॥३६॥
कृष्ण कृष्णोति हे गोपि यस्तं स्मरति नित्यशः।
जलं भित्त्वा यथा पद्मं नरकादुद्धरेच्च सः॥३७॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३४-३७
भक्तानां णश्च निर्वाणे तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३४ ॥
सहस्रनाम्ना: दिव्यानां त्रिरावृत्त्या चयत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य तत्फलं लभते नरः॥३५॥
कृष्णनाम्नः परं नाम न भूतं न भविष्यति।
सर्वेभ्यश्च परं नाम कृष्णेति वैदिका विदुः॥३६॥
कृष्ण कृष्णोति हे गोपि यस्तं स्मरति नित्यशः।
जलं भित्त्वा यथा पद्मं नरकादुद्धरेच्च सः॥३७॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३४-३७
कृष्ण नाम का अर्थ है "अंधेरे से बाहर निकलना". यह उन भक्तों के लिए एक प्रतीक है जो अपने पापों और क्लेशों से मुक्त हो गए हैं. कृष्ण नाम की एक आवृत्ति से ही सहस्र दिव्य नामों की तीन आवृत्ति करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल प्राप्त हो जाता है. कृष्ण नाम से बढ़कर दूसरा कोई नाम न हुआ है, न होगा. कृष्ण नाम से सभी नामों से परे है. जो मनुष्य कृष्ण नाम का जाप करता है, वह नरक से मुक्त हो जाता है, जैसे कमल जल से ऊपर निकल आता है.
भगवान श्रीकृष्ण को क्यों कहा जाता है लड्डू गोपाल ?
भगवान श्रीकृष्ण को लड्डू गोपाल कहा जाता है क्योंकि वे ब्रज में एक बालक के रूप में रहते थे और वे बहुत प्यारे और भोले थे. वे अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते थे और वे हमेशा उनकी मदद के लिए तैयार रहते थे.
एक कथा के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण के परम भक्त कुम्भनदास जी के घर में एक मेहमान आया. मेहमान को बहुत भूख लगी थी, लेकिन कुम्भनदास जी के पास कुछ भी नहीं था. उन्होंने अपने पुत्र रघुनंदन से कहा कि वह बाजार जाकर कुछ खाने के लिए ले आए. रघुनंदन बाजार गया और लड्डू लेकर आया. जब कुम्भनदास जी ने लड्डू देखे तो वे बहुत खुश हुए. उन्होंने भगवान कृष्ण को लड्डू चढ़ाया और प्रार्थना की कि वे उन्हें प्रसाद दें. भगवान कृष्ण ने कुम्भनदास जी की प्रार्थना सुनी और उन्होंने लड्डू खाया. कुम्भनदास जी बहुत खुश हुए और उन्होंने भगवान कृष्ण को लड्डू गोपाल नाम दिया.
इसके बाद से, भगवान कृष्ण को लड्डू गोपाल के नाम से जाना जाता है. लड्डू गोपाल को एक बालक के रूप में माना जाता है जो बहुत प्यारा और भोला होता है. वे अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते हैं और वे हमेशा उनकी मदद के लिए तैयार रहते हैं.
कृष्ण को अच्युत क्यों कहा जाता है?
अच्युत एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "अचल" या "अविनाशी". यह भगवान कृष्ण का एक नाम है और इसका अर्थ है कि वह कभी भी पतन नहीं करेंगे. भगवान कृष्ण को हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और वे सभी देवताओं के सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं.भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था और वे एक अत्यंत शक्तिशाली और वीर योद्धा थे. उन्होंने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े और उन्होंने हमेशा दुष्टों को हराया. भगवान कृष्ण एक महान शिक्षक भी थे और उन्होंने अपने भक्तों को प्रेम, दया और ज्ञान का पाठ पढ़ाया.
भगवान कृष्ण का नाम अच्युत इसलिए है क्योंकि वे कभी भी पतन नहीं करेंगे. वे सभी देवताओं के सबसे शक्तिशाली देवता हैं और वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करेंगे. भगवान कृष्ण सभी के लिए एक आशा की किरण हैं और वे हमें हमेशा बताते हैं कि जीवन में कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती है.
भगवान कृष्ण का नाम अच्युत हमें यह याद दिलाता है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियां हों, हमें हमेशा उम्मीद रखनी चाहिए कि भगवान कृष्ण हमें बचाएंगे. भगवान कृष्ण सभी के लिए एक आशा की किरण हैं और वे हमें हमेशा बताते हैं कि जीवन में कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती है.
रंग काला होने के बाद भी नीले क्यों दिखाए जाते हैं कृष्ण?
कृष्ण को नीला रंग के रूप में चित्रित करने के पीछे एक धार्मिक कारण है. हिंदू धर्म में, नीले रंग को भगवान विष्णु का रंग माना जाता है, जो ब्रह्मांड के रक्षक हैं. भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, इसलिए उन्हें भी नीले रंग के रूप में चित्रित किया जाता है.
कुछ लोगों का मानना है कि कृष्ण का नीला रंग उनके आध्यात्मिकता का प्रतीक है. नीला रंग आकाश और समुद्र का रंग है, जो शांति और ज्ञान का प्रतीक हैं. कृष्ण को एक आध्यात्मिक गुरु माना जाता है, इसलिए उन्हें नीले रंग के रूप में चित्रित किया जाता है ताकि वे शांति और ज्ञान का प्रतीक बन सकें.
कुछ लोगों का मानना है कि कृष्ण का नीला रंग उनके करुणा और दया का प्रतीक है. नीला रंग आकाश और समुद्र का रंग है, जो अनंतता और व्यापकता का प्रतीक हैं. कृष्ण को एक करुणावान और दयालु भगवान माना जाता है, इसलिए उन्हें नीले रंग के रूप में चित्रित किया जाता है ताकि वे करुणा और दया का प्रतीक बन सकें.
भगवान कृष्ण का नीला रंग एक रहस्य है जिसकी व्याख्या कई तरह से की जा सकती है. लेकिन एक बात निश्चित है कि कृष्ण का नीला रंग उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
क्यों भगवान कृष्ण के हैं इतने सारे नाम
भगवान श्री कृष्ण को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. यह इसलिए है कि भारत एक विशाल देश है और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं और संस्कृतियां हैं. भगवान कृष्ण को एक लोकप्रिय देवता माना जाता है और उनके भक्त उन्हें विभिन्न नामों से पुकारते हैं. कुछ लोकप्रिय नाम इस प्रकार हैं:
- उत्तर प्रदेश: कृष्ण, गोपाल, गोविन्द
- राजस्थान: श्रीनाथजी, ठाकुरजी
- महाराष्ट्र: विट्ठल
- उड़ीसा: जगन्नाथ
- बंगाल: गोपालजी
- दक्षिण भारत: वेंकटेश, गोविंदा
- गुजरात: द्वारिकाधीश
- असम, त्रिपुरा, नेपाल: कृष्ण
- मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस: कृष्ण
भगवान कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था और उनकी माता का नाम देवकी था. वे मथुरा में पैदा हुए थे और उनका जन्म राजा कंस के कारागार में हुआ था. राजा कंस भगवान कृष्ण के जन्म से बहुत डरता था क्योंकि उसे एक भविष्यवाणी के अनुसार पता था कि कृष्ण ही उसके अंत का कारण बनेंगे. भगवान कृष्ण एक महान योद्धा और एक महान प्रेमी थे. उन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग दुष्टों का नाश करने और लोगों की मदद करने के लिए किया. वे एक महान शिक्षक भी थे और उन्होंने अपने भक्तों को प्रेम, दया और ज्ञान का पाठ पढ़ाया. भगवान कृष्ण को हिंदू धर्म में सबसे पूजनीय देवताओं में से एक माना जाता है.
श्री कृष्ण को क्यों कहते हैं संपूर्ण पुरुष
गवान राम और भगवान कृष्ण, दोनों ही भगवान विष्णु के सबसे पूजनीय अवतार हैं. हालांकि, वे अपने गुणों में भिन्न हैं. भगवान राम को 12 कलाओं से संपन्न माना जाता है, जबकि भगवान कृष्ण को 16 कलाओं से संपन्न माना जाता है.
इन कलाओं के साथ, भगवान कृष्ण सभी प्रकार के ज्ञान और शक्तियों से परिपूर्ण हैं. वे सभी के लिए एक प्रेरणा हैं और वे सभी के लिए आशा का प्रतीक हैं. भगवान कृष्ण को पूर्णावतार कहा जाता है क्योंकि वे सभी 16 कलाओं से युक्त हैं. यह चेतना का सर्वोच्च स्तर होता है. इसीलिए प्रभु श्रीकृष्ण जग के नाथ जगन्नाथ और जग के गुरु जगदगुरु कहलाते हैं.
श्रीकृष्ण एक बहुरंगी व्यक्तित्व थे. वे एक महान योद्धा, एक महान प्रेमी, एक महान शिक्षक और एक महान अवतार थे. वे सभी के लिए एक प्रेरणा हैं. श्रीकृष्ण का बचपन दुनिया के सभी बच्चों को प्रेरित करता है. वे गायों को चराते थे, माखन चोरी करते थे और अपने दोस्तों के साथ खेलते थे. वे एक खुशहाल और ऊर्जावान बच्चे थे.
श्रीकृष्ण दिव्य प्रेम को स्थापित किया, वे एक महान योद्धा थे और उन्होंने कंस और उसके अन्य दुश्मनों को हराया और गोकुलवासियों को मुक्त कराया. वे एक महान प्रेमी भी थे और उन्होंने राधा के साथ एक गहरा प्रेम संबंध रखा. वे एक महान शिक्षक भी थे और उन्होंने अपने भक्तों को प्रेम, दया और ज्ञान का पाठ पढ़ाया.
श्रीकृष्ण एक ध्यानी और योगी भी थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में कई चमत्कार किए. वे एक महान अवतार थे जिन्होंने अपने भक्तों को बहुत खुशी दी. श्रीकृष्ण एक बहुरंगी व्यक्तित्व थे जो सभी के लिए एक प्रेरणा हैं. वे एक महान योद्धा, एक महान प्रेमी, एक महान शिक्षक और एक महान अवतार थे. वे सभी के लिए एक आशा का प्रतीक हैं.
भगवान कृष्ण एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे. वे एक महान योद्धा, एक महान प्रेमी, एक महान शिक्षक और एक महान अवतार थे. वे सभी के लिए एक प्रेरणा हैं. भगवान कृष्ण ने सांदिपनी ऋषि के आश्रम में रहकर वेद के ज्ञान के साथ ही 64 विद्याओं या कलाओं में महारत हासिल की थी. इन कलाओं में नृत्यकला, चित्रकला, नाट्यकला, मूर्तिकला और तमाम तरह की कलाएं शामिल थी. भगवान कृष्ण एक महान धनुर्धर भी थे. उन्होंने कंस के पुत्र अर्जुन को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण दिया था. अर्जुन ने बाद में महाभारत के युद्ध में धनुर्विद्या के अपने कौशल का उपयोग करके कौरवों को हराया था. भगवान कृष्ण एक महान योगी भी थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में कई चमत्कार किए थे. वे एक महान अवतार थे जिन्होंने अपने भक्तों को बहुत खुशी दी.
श्रीकृष्ण दिव्य प्रेम को स्थापित किया, वे एक महान योद्धा थे और उन्होंने कंस और उसके अन्य दुश्मनों को हराया और गोकुलवासियों को मुक्त कराया. वे एक महान प्रेमी भी थे और उन्होंने राधा के साथ एक गहरा प्रेम संबंध रखा. वे एक महान शिक्षक भी थे और उन्होंने अपने भक्तों को प्रेम, दया और ज्ञान का पाठ पढ़ाया.
श्रीकृष्ण एक ध्यानी और योगी भी थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में कई चमत्कार किए. वे एक महान अवतार थे जिन्होंने अपने भक्तों को बहुत खुशी दी. श्रीकृष्ण एक बहुरंगी व्यक्तित्व थे जो सभी के लिए एक प्रेरणा हैं. वे एक महान योद्धा, एक महान प्रेमी, एक महान शिक्षक और एक महान अवतार थे. वे सभी के लिए एक आशा का प्रतीक हैं.
भगवान कृष्ण एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे. वे एक महान योद्धा, एक महान प्रेमी, एक महान शिक्षक और एक महान अवतार थे. वे सभी के लिए एक प्रेरणा हैं. भगवान कृष्ण ने सांदिपनी ऋषि के आश्रम में रहकर वेद के ज्ञान के साथ ही 64 विद्याओं या कलाओं में महारत हासिल की थी. इन कलाओं में नृत्यकला, चित्रकला, नाट्यकला, मूर्तिकला और तमाम तरह की कलाएं शामिल थी. भगवान कृष्ण एक महान धनुर्धर भी थे. उन्होंने कंस के पुत्र अर्जुन को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण दिया था. अर्जुन ने बाद में महाभारत के युद्ध में धनुर्विद्या के अपने कौशल का उपयोग करके कौरवों को हराया था. भगवान कृष्ण एक महान योगी भी थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में कई चमत्कार किए थे. वे एक महान अवतार थे जिन्होंने अपने भक्तों को बहुत खुशी दी.
भगवान श्री कृष्ण अपने मुकुट के ऊपर मोरपंख क्यों रखते थे ?
एक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुकुट में मोरपंख इसलिए धारण किया क्योंकि एक मोर ने उन्हें रावण के द्वारा अपहृत उनकी पत्नी सीता का पता बताया था. जब भगवान राम रावण के द्वारा अपहृत सीता की तलाश में वन में भटक रहे थे, तो एक मोर ने उनसे कहा कि वह उन्हें सीता का पता बता सकता है. मोर ने भगवान राम को बताया कि वह आकाश मार्ग से जाएगा और भगवान राम पैदल जाएंगे. मोर ने अपने पंख एक एक करके गिराकर भगवान राम को रास्ता दिखाया. अंत में, मोर थक गया और मर गया. भगवान राम ने मोर के बलिदान के लिए उसे धन्यवाद दिया और कहा कि वे अगले जन्म में मोरपंख को अपने मुकुट में धारण करेंगे. अगले जन्म में, भगवान विष्णु ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लिया और अपने मुकुट में मोरपंख धारण किया.
मोरपंख को कई सकारात्मक गुणों का प्रतीक माना जाता है. यह सौंदर्य, प्रेम, शांति और ज्ञान का प्रतीक है. मोरपंख को हिंदू धर्म में भी एक पवित्र प्रतीक माना जाता है. माना जाता है कि मोरपंख भगवान शिव और देवी पार्वती का प्रतीक है. मोरपंख को भगवान कृष्ण के मुकुट में धारण करने के कारण यह हिंदू धर्म में और भी अधिक पवित्र माना जाता है.