मैं रोऊँ सब जगत को मोको रोवे न होय हिंदी मीनिंग Main Rou Sab Jagat Ko Meaning : Kabir Ke Dohe Bhavarth/Arth
मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय।
मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय॥
Main Rou Sab Jagat Ko, Moko Rove Na Hoy,
Moko Rove Sochna, Jo Shabad Boy Ki hoy.
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
कबीर साहेब कहते हैं की मैं समस्त जगत के प्रति सचेत होकर विलाप कर रहा हूँ, लेकिन मुझे रोने वाला कोई नहीं है, मेरे प्रति कोई खबर लेने वाला कोई नहीं है। संत शिरोमणि कबीर दास आगे कहते हैं कि मैं तो जग में सबके लिए रोता हूँ, चिंतित हूँ लेकिन मेरा संताप किसी को नहीं दीखता है. मेरी वेदना वही समझ सकता हैं जो मेरे शब्द समझता हैं, शब्द से आशय ज्ञान की वाणी से है। कबीर साहेब समस्त जगत के प्रति रोते हैं, चिंतित हैं और व्यथित हैं लेकिन कोई उनके लिए चिंतिंत नहीं है क्योंकि उनके लिए वही रो सकता है जो शब्द के मूल को समझे।
शब्द ही पूर्ण ब्रह्म है, जिसके विषय कोई भी चिंतित नहीं है। कबीर साहेब समस्त जगत के लिए विलाप करते हैं क्योंकि वे जानते हैं की जगत माया के भ्रम में फंस चूका है, उसका उद्देश्य माया को एकत्रित करना, उसपर नाज करना, मान सम्मान प्राप्त करना है। जबकि साहेब जानते हैं की माया स्थिर नहीं है, वह साथ चलने वाली नहीं है। जीवन का वास्तविक उद्देश्य तो हरी के नाम का सुमिरन है जिससे सभी विमुख हो चुके हैं। अतः कबीर साहेब पर कौन चिंतित हो, वही जो शब्द को समझे