सातुड़ी कजली तीज (भादवा तीज) की कहानी Satudi Kajli Teej ki kahani

सातुड़ी कजली तीज (भादवा तीज) की कहानीSatudi Kajli Teej ki kahani

 
सातुड़ी कजली तीज (भादवा तीज) की कहानी Satudi Kajli Teej ki kahani

एक समय की बात है एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पांगला था, यानी कि वह अपने पैरों से चल नहीं सकता था, पिंगल था। उस बेटे में एक चारित्रिक कमी थी की वह रोज एक वेश्या के पास जाता था। लेकिन उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी और वह अपने पति के प्रति पूर्ण समर्पित थी। वह अपने पति को कंधे पर बिठाकर वेश्या के पास ले जाया करती थी। उसकी पत्नी जेठानियों के घर में छोटा मोटा काम करके अपना गुजर बसर करती थी।

भाद्रपद के महीने में तीज माता का त्योहार आया और सभी ने तीज माता की पूजा करने के लिए सातु बनाएं। गरीब होने के कारण छोटी बहु ने एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वह सत्तू पासने लगी, उसका पति उससे बोला की मुझे वेश्या के पास छोड़कर आ। उसका पति वेश्या के पास पंहुचकर अपनी पत्नी को वापस जाने के लिए कह देता था लेकिन इस बार उसने अपनी पत्नी को वापस घर जाने के लिए नहीं कहा, वह भूल गया था.

उस अपाहिज व्यक्ति की पत्नी पतिव्रता थी इसलिए वह बाहर बैठ कर अपने पति का इन्तजार करने लगी. तभी तेज बरसात आ जाती है और पानी के बहाव में तेजी आई और नदी की भाँती पानी बहने लगा. उस नदी के पानी से एक आवाज आती है की "आवतारी जावतारी, दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय।"
 
बाहर बैठी अपंग व्यक्ति की पत्नी ने पानी में देखा तो एक दूध से भरा हुआ दोना तैरता हुआ उसकी तरफ आता देखा। उसने उस दोने से दूध को चार बार पिया और उस दोने के चार टुकड़े करके चारों दिशाओं में फेंक दिए। 

उस रोज तीज माता की कृपा होती है और वह वेश्या अपना सारा धन उस स्त्री के विकलांग के पति को देकर चली गई। उसके पति ने सारा धन इकठ्ठा किया और अपने घर पर आकर से बोला की दरवाजा खोलो। लेकिन उसकी पत्नी दरवाजा खोलने से मना कर देती है और कहती है की मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी। उसके पति ने कहा की वह अब वेश्या के यहाँ कभी वापस नहीं जाएगा और दोनों ही मिलकर सातु पोसेंगे।

उसकी पत्नी को अपने पति की बातों पर विश्वास नहीं हुआ और उसने अपने पति से कहा की तुम वादा करो की तुम दुबारा उस वेश्या के पास नहीं जाओगे, तभी मैं दरवाजा खोलूंगी। 

अपने पति के वादा करने के बाद उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और उसने देखा की उसका पति बहुत सारा धन लेकर दरवाजे पर खड़ा था। उसके विकलांग पति ने सारा धन अपनी पत्नी की दिया और दोनों ने साथ मिलकर सातु पासा।

अब उसके पास भी धन था तो वह अपनी जेठानी के काम करने नहीं गई तो जेठानी का लड़का उसे काम पर बुलाने आया। लेकिन उसने कहा की उसकी मनोकामना तीज माता ने पूरी कर दी है इसलिए वह आज से काम करने नहीं जायेगी। लडके ने जाकर घर पर बताया की चाची आज से काम करने नहीं आयेगी क्योंकि तीज माता ने उसे बहुत सारा धन दिया है और वह तो बहुत सारा गहना पहन के बैठी है। 

तीज माता से हाथ जोड़कर प्रार्थना है की हे तीज माता जैसे आप इस पति पत्नी पर प्रसन्न हुई थी वैसे ही सभी पर प्रसन्न होना और सभी को सुखी रखना और सभी के दुखों को दूर करना। 

सातुड़ी तीज की कहानी - २ (Satudi Teej Kahani/Katha)

एक समय की बात है, एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसके पास धन दौलत नहीं थी, और वह बहुत गरीब था। (Budhi Teej Ki Kahani)

एक दिन, भाद्रपद महीने की कजली तीज आई और इस तीज पर ब्राह्मण की पत्नी ने तीज माता का व्रत किया। उसने अपने पति से कहा, "आज मेरा तीज माता का व्रत है। कहीं से चने का सातु लेकर आओ।"

ब्राह्मण को पता था कि उसके पास सातु खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। वह बहुत परेशान था। उसने अपनी पत्नी से कहा, "मैं सातु कहाँ से लाऊं? मेरे पास पैसे नहीं हैं।"

ब्राह्मण की पत्नी बहुत क्रोधित हो गई  उसने कहा, "चाहे चोरी करो, चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ।"

इस पर ब्राह्मण ने चोरी का इरादा किया और रात को, ब्राह्मण घर से निकल गया। वह साहूकार की दुकान में घुसा और वहाँ से चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो का सातु बना लिया और वहा से जाने लगा। 

दूकान में चोरी और सातु बनाने की आवाज को सुनकर नौकर जाग गए और वे चोर चोर चिल्लाने लगे। साहूकार भी भाग कर आया और उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया और चोरी के बारे में पूछने लगा।

इस पर ब्राह्मण ने कहा की उसे माफ़ कर दें वह चोर नहीं है, वह तो एक गरीब ब्राह्मण है और तीज का सातु बनाने के लिए उसने चोरी की है। उसने बस सवा किलो का ही सातु बनाया है। 

साहूकार ने जब उसकी तलाशी ली तो उसके पास से और कुछ भी नहीं मिला तो उसने ब्राह्मण से कहा की आज से तुम्हारी स्त्री मेरी बहन है और उसने उस गरीब ब्राह्मण को सातु , गहने , रूपये , मेहंदी , लच्छा और बहुत सारा धन देकर कहा की अब वह अपनी पत्नी के पास चला जाए। (Satudi Kajali Teej Ki Kahani)

हे तीज माता ऐसे ही हम सब पर भी आप अपनी कृपा बनाए रखें और सभी को खुश रखें.
 

कजली तीज पूजन विधि Kajari Teej Puja Vidhi

कजली तीज पूजन विधि के लिए आपको निम्न सामग्री की आवश्यकता होगी -

सामग्री:
  • एक थाली
  • मोली
  • अक्षत
  • बिंदी
  • मेहंदी
  • पुष्प
  • रोली
  • पताशे
  • इत्र
  • दीपक
  • धूप
  • गुड़
  • नीम की टहनी
  • कच्चा दूध
  • नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सातु
पूजन विधि:-
  • पहले, एक थाली में पूजा की सभी सामग्री रख लें।
  • फिर, मिट्टी और गोबर से दीवार के पास एक तालाब बना लें। तालाब के किनारे घी और गुड़ से पाल बांधें और उसके पास नीम की टहनी लगाएं। तालाब में कच्चा दूध और पानी डालें।
  • सबसे पहले, भगवान गणेश जी की पूजा करें। उन्हें मोली, अक्षत, धूप, पुष्प, इत्र, गुड़, पताशे अर्पित करें।
  • फिर, नीमड़ी माता जी की पूजा शुरू करें। उन्हें जल और रोली से छींटे दें। फिर अनामिका उंगली से नीमड़ी माता के पीछे की दीवार पर मेहंदी और रोली की 13 बिंदिया लगाएं। साथ ही काजल की 13 बिंदिया भी लगाएं।
  • नीमड़ी माता जी को मोली चढ़ाएं और उनके बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र भी अर्पित करें।
  • फिर, आपने माता जी को जो भी चीजें अर्पित की हैं, उनके प्रतिबिंब तालाब/ तलाई के दूध और जल में देखें। इसके बाद गहनों और साड़ी के पल्ले आदि का प्रतिबिंब भी देखें।

पूजा के बाद
  • नीमड़ी माता जी की आरती करें।
  • प्रसाद बांटें।
  • सातु, नींबू, ककड़ी, केला, सेब आदि का सेवन करें।

सातुड़ी तीज की पूजा के लाभ:


  • कजली तीज की पूजा करने से माता जी की कृपा प्राप्त होती है।
  • इससे सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है।
  • यह पूजा महिलाओं के लिए विशेष रूप से लाभदायक होती है।
 

कजली तीज पर चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि

सामग्री:

  • चांदी की अंगूठी
  • गेंहू के दाने
  • रोली
  • अक्षत
  • मौली
  • गुड़
  • धूप

विधि:
  • चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए, चांदी की अंगूठी, गेंहू के दाने, रोली, अक्षत, मौली और गुड़ एक थाली में रखें।
  • चंद्रमा की पूजा करते हुए, उन्हें रोली, अक्षत, मौली, गुड़ अर्पित करें।
  • धूप जलाकर उन्हें धूप अर्पित करें।
  • चांदी की अंगूठी और गेंहू के दाने को हाथ में लेकर, अपने स्थान पर खड़े होकर चंद्रमा की परिक्रमा करें।
कजरी तीज की मुख्य बातें -

  • कजरी तीज के दिन माता नीमड़ी की पूजा होती है।
  • नीमड़ी माता की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • नीमड़ी माता को नीम की लकड़ी के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
कजरी तीज एक प्रमुख भारतीय त्योहार है, जो उत्तर भारत में विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।

माता नीमड़ी


माता नीमड़ी एक लोकप्रिय हिंदू देवी हैं, जिन्हें संतान सुख की देवी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि माता नीमड़ी की पूजा करने से निःसंतान दंपतियों को संतान प्राप्त होती है। माता नीमड़ी को नीम की लकड़ी के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।

 कजरी तीज पर माता नीमड़ी की पूजा शाम को की जाती है। पूजा के लिए घर में एक छोटा सा मंदिर बनाया जाता है, जिसमें माता नीमड़ी की प्रतिमा या तस्वीर रखी जाती है। पूजा में माता नीमड़ी को रोली, अक्षत, फूल, धूप, दीप, प्रसाद आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजा के बाद माता नीमड़ी की आरती की जाती है। मान्यता के अनुसार नीम की डाली की नीमड़ी माता के रूप में पूजा की जाती है। नीमड़ी माता एक लोक देवी हैं, जिन्हें संतान सुख की देवी के रूप में पूजा जाता है। नीम की डाली को नीमड़ी माता के प्रतीक के रूप में इसलिए पूजा जाता है क्योंकि नीम एक पवित्र वृक्ष माना जाता है। नीम की लकड़ी में कई औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।

नीमड़ी माता की पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा चली आ रही है। कहा जाता है कि एक समय एक दंपति था, जो बहुत समय से निःसंतान था। दंपति ने कई उपाय किए, लेकिन उन्हें संतान प्राप्त नहीं हुई। एक दिन, दंपति एक नीम के पेड़ के नीचे बैठा था। तभी, एक देवी ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि वे नीम की डाली की पूजा करें, तो उन्हें संतान प्राप्त होगी। दंपति ने देवी की आज्ञा का पालन किया और नीम की डाली की पूजा की। कुछ समय बाद, दंपति को एक पुत्र हुआ।

नीमड़ी माता की पूजा से संतान की सुरक्षा होती है। माना जाता है कि जो माता नीमड़ी की पूजा करता है, उसकी संतान हमेशा स्वस्थ और सुरक्षित रहती है।

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