ये मेरी अर्जी है मैं वैसी बन जाऊँ लिरिक्स Ye Meri Arji Hai Bhajan Lyrics
ये मेरी अर्जी है मैं वैसी बन जाऊँ लिरिक्स Ye Meri Arji Hai Bhajan Lyrics : Chitra Vichitra Maharaj
ये मेरी अर्जी हैमैं वैसी बन जाऊँ
मैंने कब कहा,
की मुझे दुनिया का माल दे,
लगी है फास दिल में निकाल दे,
मुझ गरीब का तो श्याम,
इतना सवाल है,
जो कुछ समझ में आए,
मेरी झोली में डाल दे।
मेरी नज़रों ने वो अदा देखी है,
लुट गए हम जिस पर, वो छटा देखि है.
आके क्या बैठे इस प्रांगण में हम तो,
लगता है मुद्दतों के बाद हम मरीजों ने,
कोई दवा देखी है.
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है।
लफ्ज़ों का टोटा है,
लफ्जो का टोटा है,
जिक्र प्यारे का,
अश्को से होता है,
ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है।
छम छम छम बारिश है,
छम छम छम बारिश है,
माहि घर आजा,
हर बून्द सिफारिश है,
ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है।
वो इतना प्यारा है,
वो इतना प्यारा है,
चाँद कहे उससे,
तू चाँद हमारा है,
ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है।
जग रोक ना पाएगा,
जग रोक ना पाएगा,
मीरा नाचेगी,
जब श्याम बुलाएगा,
ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है।
मेरा माहि गबरू है,
मेरा माहि गबरू है,
उसकी खुशबु से,
खुशबु में खुशबु है,
ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है,
ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है।
यह मेरी अर्ज़ी है मैं वैसी बन जाऊ जो तेरी मर्ज़ी हैं #बाबा श्री चित्र - विचित्र जी महाराज़ #Saawariya
श्रीकृष्ण के गुणों का वर्णन हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों और भक्ति ग्रंथों में किया गया है और वे भगवान के दिव्य गुणों को स्थापित करने वाले माने जाते हैं। यह गुण भगवान के अद्भुत और परिपूर्ण स्वरूप का वर्णन करते हैं और भक्तों के लिए उनके गुणों की महत्ता को दर्शाते हैं।
इन गुणों के माध्यम से, भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य और परिपूर्ण स्वरूप और उनके भक्तों के प्रति उनकी अत्यधिक प्रेम और करुणा को प्रकट किया गया है। इन गुणों का अध्ययन और उनका अनुसरण भक्ति मार्ग के अनुयायियों के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
भगवान श्रीकृष्ण के इन गुणों का अध्ययन और उनके भक्ति मार्ग पर चलने के लिए निरंतर प्रयास करने से भक्ति और साधना में सफलता प्राप्त हो सकती है। यह गुण भगवान के अद्वितीय महिमा और दिव्यता को व्यक्त करते हैं और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करते हैं। ये गुण भगवान के दिव्य स्वरूप को और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा और सहानुभूति को दर्शाते हैं। यह गुण उनके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को प्रकट करते हैं और उनके भक्तों को मार्गदर्शन करते हैं कि कैसे उन्हें भगवान के साथ संबंध बनाने चाहिए।
भक्तिरसामृतसिन्धु में वर्णित कृष्ण के 64 गुणों में से कुछ का उल्लेख अन्य हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है। उदाहरण के लिए, महाभारत में कृष्ण को एक अद्भुत भाषाविद्, सत्यवादी और मधुर भाषी के रूप में वर्णित किया गया है। भागवत पुराण में कृष्ण को एक नित्य युवा, तेजवान और बलवान भगवान के रूप में वर्णित किया गया है।
इन गुणों के माध्यम से, भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य और परिपूर्ण स्वरूप और उनके भक्तों के प्रति उनकी अत्यधिक प्रेम और करुणा को प्रकट किया गया है। इन गुणों का अध्ययन और उनका अनुसरण भक्ति मार्ग के अनुयायियों के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
भगवान श्रीकृष्ण के इन गुणों का अध्ययन और उनके भक्ति मार्ग पर चलने के लिए निरंतर प्रयास करने से भक्ति और साधना में सफलता प्राप्त हो सकती है। यह गुण भगवान के अद्वितीय महिमा और दिव्यता को व्यक्त करते हैं और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करते हैं। ये गुण भगवान के दिव्य स्वरूप को और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा और सहानुभूति को दर्शाते हैं। यह गुण उनके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को प्रकट करते हैं और उनके भक्तों को मार्गदर्शन करते हैं कि कैसे उन्हें भगवान के साथ संबंध बनाने चाहिए।
- धर्मिक ग्रंथों में भगवान के गुणों का उल्लेख किया गया है और ये गुण भगवान के दिव्य स्वरूप की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को दर्शाते हैं जो उन्हें जगह-जगह विश्वासयोग्य और प्रिय बनाते हैं। भक्तिरसामृतसिन्धु जैसे ग्रंथ इस धार्मिक गुरुता को बढ़ावा देते हैं और भक्तों को उनके आदर्शों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। सम्पूर्ण शरीर का सुन्दर स्वरूप
- समस्त शुभ गुणों से अंकित
- अतिव रूचिर
- तेजवान
- बलवान
- नित्य युवा
- अद्भुत भाषाविद्
- सत्यवादी
- मधुर भाषी
- वाक् पटु
- सुपण्डित
- अत्यधिक बुद्धिमान्
- प्रतिभावान्
- अत्यन्त क्षमाशील
- दयालु
- कृपालु
- उदार
- विनीत
- शान्त
- तेजस्वी
- धैर्यवान
- साहसी
- निर्भय
- सर्वगुणसम्पन्न
- सर्वेश्वर
- सर्वज्ञ
- सर्वशक्तिमान
- अनादि
- अनन्त
- अविनाशी
- पूर्ण
- ब्रह्माण्डनायक
- जगदीश्वर
- पुरुषोत्तम
- देवकीनंदन
- वासुदेव
- मधुसूदन
- गोविन्द
- नन्दकिशोर
- कृष्ण
भक्तिरसामृतसिन्धु में वर्णित कृष्ण के 64 गुणों में से कुछ का उल्लेख अन्य हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है। उदाहरण के लिए, महाभारत में कृष्ण को एक अद्भुत भाषाविद्, सत्यवादी और मधुर भाषी के रूप में वर्णित किया गया है। भागवत पुराण में कृष्ण को एक नित्य युवा, तेजवान और बलवान भगवान के रूप में वर्णित किया गया है।