भक्ति जो सीढ़ी मुक्ति की चढ़ै भक्त हरषाय हिंदी मीनिंग Bhakti Jo Seedhi Mukti Ki Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
भक्ति जो सीढ़ी मुक्ति की, चढ़ै भक्त हरषाय |और न कोई चढ़ि सकै, निज मन समझो आय ||
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में संत कबीर साहेब ने भक्ति को मुक्ति का मार्ग बताया है, भक्ति ही मुक्ति का आधार है। साहेब की वाणी है की भक्ति ही वह सीढ़ी है, जो हमें मुक्ति के मार्ग तक ले जाती है, हरी नाम सुमिरन ही मुक्ति का मार्ग है। भक्तजन इस सीढ़ी पर चढ़कर मुक्ति प्राप्त करते हैं, अतः साधक को हरी के नाम का सुमिरन करना चाहिए। भक्ति रूपी सीधी पर चढ़कर ही व्यक्ति इश्वर की प्राप्ति कर सकता है. भक्ति का अर्थ है ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण, सत्य के मार्ग का अनुसरण करके माया से विमुख होना। जब कोई व्यक्ति ईश्वर के प्रति सच्चे मन से भक्ति करता है, तो वह ईश्वर के मार्ग पर चलने लगता है। वह अपने जीवन को ईश्वर के लिए समर्पित कर देता है और ऐसा करके वह भक्ति रूपी सीधी पर चढ़ने में सक्षम हो पाता है। भक्त के अतिरिक्त अन्य कोई भी इस सीधी पर नहीं चढ़ सकता है.
कबीरदास जी कहते हैं कि भक्ति मुक्ति की सीढ़ी है, इसलिए भक्तजन हर्षित होकर उस पर चढ़ते हैं। वे जानते हैं कि भक्ति ही उन्हें मुक्ति प्रदान करने का एकमात्र उपाय है। कबीरदास जी कहते हैं कि और कोई इस भक्ति सीढ़ी पर नहीं चढ़ सकता आशय है की भक्ति रूपी सीधी पर चढ़ने के लिए गुरु का सानिध्य भी आवश्यक है। इसका अर्थ है कि भक्ति केवल उसी व्यक्ति को प्राप्त होती है, जो सच्चे मन से भक्ति करता है। इस दोहे का संदेश यह है कि हमें भक्ति में निरंतर लगे रहना चाहिए। भक्ति ही हमें मुक्ति प्रदान कर सकती है।
"सत्य की खोज ही भक्ति है"। यह भी सत्य है। जब हम सत्य की खोज करते हैं, तो हम ईश्वर को प्राप्त करते हैं। ईश्वर ही सत्य है। इसलिए, सत्य की खोज ही भक्ति है। इस दोहे में कबीर साहेब भक्ति के महत्व और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि भक्ति मुक्ति की सीढ़ी है, इसलिए भक्तजन खुशी-खुशी उस पर चढ़ते हैं।
कबीरदास जी कहते हैं कि भक्ति मुक्ति की सीढ़ी है, इसलिए भक्तजन हर्षित होकर उस पर चढ़ते हैं। वे जानते हैं कि भक्ति ही उन्हें मुक्ति प्रदान करने का एकमात्र उपाय है। कबीरदास जी कहते हैं कि और कोई इस भक्ति सीढ़ी पर नहीं चढ़ सकता आशय है की भक्ति रूपी सीधी पर चढ़ने के लिए गुरु का सानिध्य भी आवश्यक है। इसका अर्थ है कि भक्ति केवल उसी व्यक्ति को प्राप्त होती है, जो सच्चे मन से भक्ति करता है। इस दोहे का संदेश यह है कि हमें भक्ति में निरंतर लगे रहना चाहिए। भक्ति ही हमें मुक्ति प्रदान कर सकती है।
"सत्य की खोज ही भक्ति है"। यह भी सत्य है। जब हम सत्य की खोज करते हैं, तो हम ईश्वर को प्राप्त करते हैं। ईश्वर ही सत्य है। इसलिए, सत्य की खोज ही भक्ति है। इस दोहे में कबीर साहेब भक्ति के महत्व और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि भक्ति मुक्ति की सीढ़ी है, इसलिए भक्तजन खुशी-खुशी उस पर चढ़ते हैं।
"भक्ति जो सीढ़ी मुक्ति की, चढ़ै भक्त हरषाय" - भक्ति मुक्ति की सीढ़ी है। भक्ति के माध्यम से ही मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है, जन्म मरण से मुक्त हो सकता है। भक्तजन भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने में सक्षम होते हैं. अतः हमें भक्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। हमें सत्य की खोज करनी चाहिए और हरी के नाम का सुमिरन करते हुए मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।