श्री कालभैरव अष्टक भगवान कालभैरव को समर्पित है। यह एक दिव्य स्तोत्र है जो भगवान कालभैरव के विकराल और भयंकर स्वरूप की स्तुति करता है। भगवान कालभैरव का रूप उग्र और प्रचंड है, लेकिन वे बहुत ही भोले और सरल स्वभाव के हैं। वे अपने भक्तों से प्रेम करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
काल भैरव अष्टकम मीनिंग लिरिक्स Kaal Bhairav Ashtakama Lyrics Meaning
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं,व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्,
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं,
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्,
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं,
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ,
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं,
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्,
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं,
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्,
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं,
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्,
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं,
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्,
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं,
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्,
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं,
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्,
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं,
प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्।
ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥
हे काल भैरव, जिनके पवित्र चरणों की सेवा देवराज इंद्र भगवान सदा करते हैं, जिन्होंने शिरोभूषण के रुप में चंद्र और सांप (सर्प) को धारण किया है, जो दिगंबर जी के वेश में हैं और नारद भगवान आदि योगिगों का समूह जिनकी पूजा, वंदना करते हैं, उन काशी के नाथ कालभैरव जी को मैं भजता हूं।
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥
यह श्री काल भैरव अष्टकम का दूसरा श्लोक है। इस श्लोक में, भक्त भगवान कालभैरव की प्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान कालभैरव सूर्य के समान प्रकाशमान हैं, जो भवसागर से भक्तों को बचाते हैं। उनका कंठ नीला है, जो ज्ञान और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। वे तीन नेत्रों वाले हैं, जो ब्रह्मांड की तीन अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे काल के भी काल हैं, जो मृत्यु को भी पराजित कर सकते हैं। उनका त्रिशूल तीन लोकों को धारण करता है, जो ब्रह्मांड की तीन प्रमुख शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। वे अविनाशी हैं, जो अनंत जीवन का प्रतीक हैं।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान कालभैरव एक शक्तिशाली और दयालु देवता हैं। वे भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से बचाते हैं और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष प्रदान करते हैं।
"भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं" - भगवान कालभैरव सूर्य के समान प्रकाशमान हैं, जो भवसागर से भक्तों को बचाते हैं।
"नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम" - उनका कंठ नीला है, जो ज्ञान और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। वे तीन नेत्रों वाले हैं, जो ब्रह्मांड की तीन अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
"कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं" - वे काल के भी काल हैं, जो मृत्यु को भी पराजित कर सकते हैं। उनका त्रिशूल तीन लोकों को धारण करता है, जो ब्रह्मांड की तीन प्रमुख शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है।
"काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे" - वे अविनाशी हैं, जो अनंत जीवन का प्रतीक हैं। उस काशी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूं।
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥
मैं काशी के नाथ कालभैरव को नमन करता हूं, जो अपने दोनों हाथों में त्रिशूल, फंदा, कुल्हाड़ी और दंड धारण करते हैं। वे सृष्टि के सृजन के कारण हैं, उनका रंग सांवला है, वे आदिदेव हैं, और वे सांसारिक रोगों से परे हैं। वे शक्तिशाली हैं और उन्हें विचित्र तांडव नृत्य पसंद है।
"शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं" - भगवान कालभैरव अपने दोनों हाथों में त्रिशूल, फंदा, कुल्हाड़ी और दंड धारण करते हैं। त्रिशूल सृष्टि के निर्माण, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है। फंदा बांधने और छोड़ने की क्षमता का प्रतीक है। कुल्हाड़ी अज्ञानता और भ्रम को काटने की शक्ति का प्रतीक है। दंड अधिकार और स्थिरता का प्रतीक है।
"श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम" - भगवान कालभैरव का रंग सांवला है। वे आदिदेव हैं, जो सभी समय और स्थान से परे हैं। वे सभी सृष्टि के स्रोत हैं। वे सांसारिक रोगों से परे हैं।
"भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं" - भगवान कालभैरव शक्तिशाली और दयालु हैं। वे अपने भक्तों की सभी हानि से रक्षा करते हैं। वे विचित्र तांडव नृत्य के प्रेमी हैं। यह नृत्य उनकी लौकिक ऊर्जा का एक प्रकटीकरण है। यह सृष्टि, संरक्षण और विनाश का नृत्य है।
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥
मैं काशी के नाथ कालभैरव को नमन करता हूं, जो अपने दोनों हाथों में त्रिशूल, फंदा, कुल्हाड़ी और दंड धारण करते हैं। वे सृष्टि के सृजन के कारण हैं, उनका रंग सांवला है, वे आदिदेव हैं, और वे सांसारिक रोगों से परे हैं। वे शक्तिशाली हैं और उन्हें विचित्र तांडव नृत्य पसंद है।
"शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं" - भगवान कालभैरव अपने दोनों हाथों में त्रिशूल, फंदा, कुल्हाड़ी और दंड धारण करते हैं। त्रिशूल सृष्टि के निर्माण, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है। फंदा बांधने और छोड़ने की क्षमता का प्रतीक है। कुल्हाड़ी अज्ञानता और भ्रम को काटने की शक्ति का प्रतीक है। दंड अधिकार और स्थिरता का प्रतीक है।
"श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम" - भगवान कालभैरव का रंग सांवला है। वे आदिदेव हैं, जो सभी समय और स्थान से परे हैं। वे सभी सृष्टि के स्रोत हैं। वे सांसारिक रोगों से परे हैं।
"भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं" - भगवान कालभैरव शक्तिशाली और दयालु हैं। वे अपने भक्तों की सभी हानि से रक्षा करते हैं। वे विचित्र तांडव नृत्य के प्रेमी हैं। यह नृत्य उनकी लौकिक ऊर्जा का एक प्रकटीकरण है। यह सृष्टि, संरक्षण और विनाश का नृत्य है।
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥
मैं काशी के भगवान कालभैरव को नमन करता हूं, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की मुक्ति प्रदान करते हैं। उनका रूप सुंदर और शुभ है। वे अपने भक्तों के प्रति दयालु हैं और उन्हें सभी हानि से बचाते हैं। वे तीनों लोकों, भौतिक लोक, आध्यात्मिक लोक और कारण लोक में मौजूद हैं। उनकी कमर पर खनखनाहट वाली सोने की घंटियों की एक बेल्ट है। ये घंटियाँ ब्रह्मांड की ध्वनि का प्रतिनिधित्व करती हैं।
"भुक्तिमुक्तिदायकं" - भगवान कालभैरव भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की मुक्ति प्रदान करते हैं। भौतिक मुक्ति का अर्थ है सांसारिक सुखों की प्राप्ति, और आध्यात्मिक मुक्ति का अर्थ है मोक्ष।
"प्रशस्तचारुविग्रहं" - भगवान कालभैरव का रूप सुंदर और शुभ है। उनका चेहरा तेजस्वी है और उनके शरीर पर आभूषण हैं।
"भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम" - भगवान कालभैरव अपने भक्तों के प्रति दयालु हैं और उन्हें सभी हानि से बचाते हैं। वे सभी तीन लोकों, भौतिक लोक, आध्यात्मिक लोक और कारण लोक में मौजूद हैं।
"विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं" - भगवान कालभैरव की कमर पर खनखनाहट वाली सोने की घंटियों की एक बेल्ट है। ये घंटियाँ ब्रह्मांड की ध्वनि का प्रतिनिधित्व करती हैं।
"भुक्तिमुक्तिदायकं" - भगवान कालभैरव भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की मुक्ति प्रदान करते हैं। भौतिक मुक्ति का अर्थ है सांसारिक सुखों की प्राप्ति, और आध्यात्मिक मुक्ति का अर्थ है मोक्ष।
"प्रशस्तचारुविग्रहं" - भगवान कालभैरव का रूप सुंदर और शुभ है। उनका चेहरा तेजस्वी है और उनके शरीर पर आभूषण हैं।
"भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम" - भगवान कालभैरव अपने भक्तों के प्रति दयालु हैं और उन्हें सभी हानि से बचाते हैं। वे सभी तीन लोकों, भौतिक लोक, आध्यात्मिक लोक और कारण लोक में मौजूद हैं।
"विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं" - भगवान कालभैरव की कमर पर खनखनाहट वाली सोने की घंटियों की एक बेल्ट है। ये घंटियाँ ब्रह्मांड की ध्वनि का प्रतिनिधित्व करती हैं।
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥
जो धर्म की रक्षा करते हैं, अधर्म के मार्गों का नाश करते हैं, कर्म के बंधन से मुक्त करते हैं, और शर्म देने वाले हैं, मैं स्वर्ण सर्प से सुशोभित काशी के नाथ काल भैरव की पूजा करता हूँ। इस श्लोक में भक्त काल भैरव से प्रार्थना करता है कि वह उसे धर्म की राह पर चलने में मदद करे, अधर्म से दूर रहे, कर्म के बंधन से मुक्त हो, और शर्म से बच सके। वह काल भैरव को काशी का नाथ भी मानता है, और उनकी पूजा करता है।
धर्मसेतुपालकं - धर्म का अर्थ है "सत्य, न्याय, और कर्तव्य का मार्ग"। काल भैरव को धर्म का रक्षक कहा जाता है क्योंकि वह लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने में मदद करते हैं। त्वधर्ममार्गनाशकं - अधर्म का अर्थ है "अन्याय, अन्याय, और कर्तव्य के विरुद्ध"। काल भैरव को अधर्म के मार्गों के नाशक कहा जाता है क्योंकि वह लोगों को अधर्म से दूर रहने में मदद करते हैं। कर्मपाशमोचकं - कर्म का अर्थ है "कर्मों का संचय"। कर्म के बंधन से मुक्त होना का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होना। काल भैरव को कर्म के बंधन से मुक्त करने वाले कहा जाता है क्योंकि वह लोगों को मोक्ष की प्राप्ति में मदद करते हैं। विभुम - महान का अर्थ है "शक्तिशाली, प्रभावशाली, और आदरनीय"। काल भैरव को महान कहा जाता है क्योंकि वह सभी देवताओं और शक्तियों के स्वामी हैं।
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥
जो धर्म की रक्षा करते हैं, अधर्म के मार्गों का नाश करते हैं, कर्म के बंधन से मुक्त करते हैं, और शर्म देने वाले हैं, मैं स्वर्ण सर्प से सुशोभित काशी के नाथ काल भैरव की पूजा करता हूँ। इस श्लोक में भक्त काल भैरव से प्रार्थना करता है कि वह उसे धर्म की राह पर चलने में मदद करे, अधर्म से दूर रहे, कर्म के बंधन से मुक्त हो, और शर्म से बच सके। वह काल भैरव को काशी का नाथ भी मानता है, और उनकी पूजा करता है।
धर्मसेतुपालकं - धर्म का अर्थ है "सत्य, न्याय, और कर्तव्य का मार्ग"। काल भैरव को धर्म का रक्षक कहा जाता है क्योंकि वह लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने में मदद करते हैं। त्वधर्ममार्गनाशकं - अधर्म का अर्थ है "अन्याय, अन्याय, और कर्तव्य के विरुद्ध"। काल भैरव को अधर्म के मार्गों के नाशक कहा जाता है क्योंकि वह लोगों को अधर्म से दूर रहने में मदद करते हैं। कर्मपाशमोचकं - कर्म का अर्थ है "कर्मों का संचय"। कर्म के बंधन से मुक्त होना का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होना। काल भैरव को कर्म के बंधन से मुक्त करने वाले कहा जाता है क्योंकि वह लोगों को मोक्ष की प्राप्ति में मदद करते हैं। विभुम - महान का अर्थ है "शक्तिशाली, प्रभावशाली, और आदरनीय"। काल भैरव को महान कहा जाता है क्योंकि वह सभी देवताओं और शक्तियों के स्वामी हैं।
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥
इस श्लोक में भक्त काल भैरव की निम्नलिखित विशेषताओं की प्रशंसा करता है:
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं - जिनके दोनों पैर रत्नों से सुशोभित हैं।
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम - जो इष्ट देवता और परम पवित्र हैं।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं - जो अपने दांतों से मौत का भय दूर करते हैं।
भक्त काल भैरव से प्रार्थना करता है कि वह उसे अपने आशीर्वाद से धन्य करे, उसे मोक्ष की प्राप्ति में मदद करे, और उसे मृत्यु के भय से मुक्त करे।
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं-जिनके दोनों पैर रत्नों से सुशोभित हैं,
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम-जो इष्ट देवता और परम पवित्र हैं,
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं-जो अपने दांतों से मौत का भय दूर करते हैं,
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे-उन काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।
रत्नपादुका का अर्थ है "रत्नों से जड़ित जूते"। इस पद का अर्थ है कि काल भैरव के दोनों पैर रत्नों से सुशोभित हैं। यह उनकी शक्ति और धन का प्रतीक है।
नित्य का अर्थ है "हमेशा"। अद्वितीय का अर्थ है "अनूठा"। इष्ट का अर्थ है "प्रिय"। निरञ्जन का अर्थ है "पवित्र"। इस पद का अर्थ है कि काल भैरव हमेशा इष्ट देवता हैं, और वे परम पवित्र हैं।
मृत्युदर्प का अर्थ है "मृत्यु का भय"। नाश का अर्थ है "नष्ट करना"। कराळ का अर्थ है "भयानक"। दंष्ट्र का अर्थ है "दांत"। मोक्षण का अर्थ है "मुक्ति"। इस पद का अर्थ है कि काल भैरव अपने दांतों से मौत का भय दूर करते हैं।
यह श्लोक भक्त की काल भैरव के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति को दर्शाता है। वह काल भैरव को अपने इष्ट देवता मानता है, और वह उनकी शक्ति, धन, पवित्रता, और मृत्यु से मुक्ति देने की शक्ति की प्रशंसा करता है।
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं - जिनकी हंसी की ध्वनि से कमल से उत्पन्न ब्रह्मा की सभी कृतियों की गति रुक जाती है।
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम - जिसकी दृष्टि पड़ने से पापों का नाश हो जाता है।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं - जो अष्ट सिद्धियां प्रदान करते हैं।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे - मैं काशी के नाथ कालभैरव को भजता हूं।
भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥
जो भूतों और प्रेतों के स्वामी हैं, और जो अपने भक्तों को प्रसिद्धि और धन प्रदान करते हैं। जो काशी के निवासियों के पापों और पुण्यों को दूर करते हैं, और जो सत्य और नीति के मार्ग को जानते हैं। मैं काशी के नाथ कालभैरव को भजता हूं। भक्त काल भैरव को एक शक्तिशाली देवता मानता है, जो पापों से मुक्ति, मोक्ष, प्रसिद्धि, और सत्य और नीति का मार्ग प्रदान कर सकता है। वह काल भैरव को काशी का रक्षक भी मानता है।
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥
जो भूतों और प्रेतों के स्वामी हैं, और जो अपने भक्तों को प्रसिद्धि और धन प्रदान करते हैं। जो काशी के निवासियों के पापों और पुण्यों को दूर करते हैं, और जो सत्य और नीति के मार्ग को जानते हैं। मैं काशी के नाथ कालभैरव को भजता हूं। भक्त काल भैरव को एक शक्तिशाली देवता मानता है, जो पापों से मुक्ति, मोक्ष, प्रसिद्धि, और सत्य और नीति का मार्ग प्रदान कर सकता है। वह काल भैरव को काशी का रक्षक भी मानता है।
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम ॥९॥
ज्ञानमुक्तिसाधनं - काल भैरव अष्टकम का पाठ ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने का एक साधन है।
विचित्रपुण्यवर्धनम - यह पाठ पुण्य को बढ़ाता है।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं - यह पाठ शोक, मोह, दैन्य, लोभ, क्रोध, आदि का नाश करता है।
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम - जो इस पाठ का पाठ करते हैं, वे निश्चित रूप से काल भैरव के चरणों को प्राप्त करते हैं।
काल भैरव अष्टकम का पाठ करने से ज्ञान, मुक्ति, पुण्य, और काल भैरव के चरणों की प्राप्ति होती है।
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम ॥९॥
ज्ञानमुक्तिसाधनं - काल भैरव अष्टकम का पाठ ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने का एक साधन है।
विचित्रपुण्यवर्धनम - यह पाठ पुण्य को बढ़ाता है।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं - यह पाठ शोक, मोह, दैन्य, लोभ, क्रोध, आदि का नाश करता है।
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम - जो इस पाठ का पाठ करते हैं, वे निश्चित रूप से काल भैरव के चरणों को प्राप्त करते हैं।
काल भैरव अष्टकम का पाठ करने से ज्ञान, मुक्ति, पुण्य, और काल भैरव के चरणों की प्राप्ति होती है।
Kalabhairava Ashtakam with Lyrics
काल भैरव अष्टक एक भक्तिपूर्ण श्लोक है जो काल भैरव, भगवान शिव के एक भयंकर रूप की स्तुति करता है। यह श्लोक नौ श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में एक अलग विशेषता का वर्णन है जो काल भैरव को एक शक्तिशाली और दयालु देवता बनाती है।
पहले तीन श्लोकों में, भक्त काल भैरव की भयंकर उपस्थिति की प्रशंसा करते हैं। वे वर्णन करते हैं कि उनकी हंसी की ध्वनि से ब्रह्मांड का कंपन होता है, और उनकी दृष्टि से पापों का नाश होता है।
अगले दो श्लोकों में, भक्त काल भैरव की शक्ति और दया का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि वह अष्ट सिद्धियां प्रदान करते हैं, और वह अपने भक्तों को पापों से मुक्ति और मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।
अंतिम दो श्लोकों में, भक्त काल भैरव अष्टकम के पाठ के लाभों की चर्चा करते हैं। वे कहते हैं कि यह पाठ ज्ञान, मुक्ति, पुण्य, और काल भैरव के चरणों की प्राप्ति प्रदान करता है।
कुल मिलाकर, काल भैरव अष्टक एक शक्तिशाली भक्तिपूर्ण श्लोक है जो काल भैरव की महिमा का वर्णन करता है। यह श्लोक भक्तों को काल भैरव के प्रति अपनी भक्ति को व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
पहले तीन श्लोकों में, भक्त काल भैरव की भयंकर उपस्थिति की प्रशंसा करते हैं। वे वर्णन करते हैं कि उनकी हंसी की ध्वनि से ब्रह्मांड का कंपन होता है, और उनकी दृष्टि से पापों का नाश होता है।
अगले दो श्लोकों में, भक्त काल भैरव की शक्ति और दया का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि वह अष्ट सिद्धियां प्रदान करते हैं, और वह अपने भक्तों को पापों से मुक्ति और मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।
अंतिम दो श्लोकों में, भक्त काल भैरव अष्टकम के पाठ के लाभों की चर्चा करते हैं। वे कहते हैं कि यह पाठ ज्ञान, मुक्ति, पुण्य, और काल भैरव के चरणों की प्राप्ति प्रदान करता है।
कुल मिलाकर, काल भैरव अष्टक एक शक्तिशाली भक्तिपूर्ण श्लोक है जो काल भैरव की महिमा का वर्णन करता है। यह श्लोक भक्तों को काल भैरव के प्रति अपनी भक्ति को व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।