साधु सती और सूरमा कबहु न फेरे पीठ मीनिंग Sadhu Sati Aur Surama Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
साधु सती और सूरमा, कबहु न फेरे पीठ |तीनों निकासी बाहुरे, तिनका मुख नहीं दीठ ||
Sadhu Sati Aur Surama, Kabahu Na Phere Peeth,
Teenon Nikasi Bahure, Tinaka Mukh Nahi Deeth.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में संत कबीर दास जी सन्देश देते हैं कि साधु, सती और सूरमा तीनों ही अपने लक्ष्य के प्रति अत्यंत दृढ़ निश्चयी होते हैं, समर्पित होते हैं। ये तीनों ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कभी पीछे नहीं हटते हैं। इस दोहे में "कबहु न फेरे पीठ" का अर्थ है कि ये तीनों ही अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकते हैं, आगे बढ़ने पर पुनः पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं। वे जानते हैं कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्हें दृढ़ निश्चयी रहना होगा। इसलिए, वे कभी भी अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटते हैं।
इस दोहे में "तीनों निकासी बाहुरे, तिनका मुख नहीं दीठ" का अर्थ है कि ये तीनों ही एक बार अपने लक्ष्य की ओर निकल पड़े तो पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं, लोग पुनः इनको उद्देश विहीन नहीं देखते हैं, ये अपने लक्ष्य को पूर्ण करके ही मानते हैं। वे जानते हैं कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्हें अडिग रहना होगा। इसलिए, वे कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं। इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चयी होना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
इस दोहे में "तीनों निकासी बाहुरे, तिनका मुख नहीं दीठ" का अर्थ है कि ये तीनों ही एक बार अपने लक्ष्य की ओर निकल पड़े तो पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं, लोग पुनः इनको उद्देश विहीन नहीं देखते हैं, ये अपने लक्ष्य को पूर्ण करके ही मानते हैं। वे जानते हैं कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्हें अडिग रहना होगा। इसलिए, वे कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं। इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चयी होना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।