संसारी से प्रीतड़ी सरै न एको काम हिंदी मीनिंग Sansari Se Pritadali Meaning : kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एको काम |दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम ||
Sansari Se Pritadi, Sare Na Eko Kaam,
Duvidha Me Dono Gaye, Maya Mili Na Raam.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में कबीरदास जी सांसारिक क्रियाओं की नश्वरता के बारे में बताते हुए कहते हैं की संसार के लोगों से, सांसारिक बन्धनों में बंधने से कोई भी काम सिद्ध नहीं होने वाला है, एक भी कार्य पूर्ण नहीं होने वाला है। संसारी लोगों से प्रेम करने से न तो भौतिक संपत्ति हासिल होती है, न आध्यात्मिक। ऐसा इसलिए है क्योंकि संसारी लोग भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं और उन्हें ईश्वर के प्रति कोई लगाव नहीं होता। ऐसे लोगों से प्रेम करने से व्यक्ति भी उनके मोहजाल में फंस जाता है और उसे अपने आध्यात्मिक लक्ष्य से भटक जाना पड़ता है। संसार में ही मस्त रहने वाले लोगों को सदा ही दुविधा अपना शिकार बनाती हैं क्योंकि वे भक्ति से विमुख हो जाते हैं और ऐसे में उनको माया और राम दोनों ही नहीं मिल पाते हैं.
अतः हमें चाहिये की हम संसार की नश्वरता को समझे और इश्वर की भक्ति में अपना समय लगाये, इश्वर की भक्ति के अभाव में हमें ना तो भक्ति मिलती है और नाही इस जीवन का उद्देश्य ही पूर्ण हो पाता है.
कबीरदास जी कहते हैं कि संसारी लोगों से प्रेम करने से व्यक्ति दुविधा में फंस जाता है। वह न तो संसार में पूरी तरह से रम पाता है, न ही ईश्वर में, वह सदा ही एक दुविधा से ग्रस्त रहता है। ऐसे में उसका जीवन बेकार हो जाता है। इसलिए कबीरदास जी कहते हैं कि संसार से निराश होकर अखंड वैराग्ये करो। अर्थात्, संसार के मोहजाल से मुक्त होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाओ।
इस दोहे का सार यह है कि संसारी लोगों से प्रेम करने से व्यक्ति को कोई लाभ नहीं होता। इससे वह केवल भ्रमित होता है और उसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं रह जाता। इसलिए संसार से निराश होकर ईश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए।
इस दोहे का आधुनिक संदर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि कबीरदास जी के समय में था। आज भी लोग संसारी लोगों से प्रेम और मेल-जोल रखने के चक्कर में अपने आध्यात्मिक विकास से दूर हो जाते हैं। वे भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं और ईश्वर को भूल जाते हैं। ऐसे में इस दोहे का संदेश हमें यह याद दिलाता है कि हमें संसार के मोहजाल से मुक्त होकर ईश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए। संसार में हम एक तरह से मेहमान की भाँती हैं और एक रोज इसे छोड़कर हमें चले जाना है.
इस दोहे का सार यह है कि संसारी लोगों से प्रेम करने से व्यक्ति को कोई लाभ नहीं होता। इससे वह केवल भ्रमित होता है और उसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं रह जाता। इसलिए संसार से निराश होकर ईश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए।
इस दोहे का आधुनिक संदर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि कबीरदास जी के समय में था। आज भी लोग संसारी लोगों से प्रेम और मेल-जोल रखने के चक्कर में अपने आध्यात्मिक विकास से दूर हो जाते हैं। वे भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं और ईश्वर को भूल जाते हैं। ऐसे में इस दोहे का संदेश हमें यह याद दिलाता है कि हमें संसार के मोहजाल से मुक्त होकर ईश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए। संसार में हम एक तरह से मेहमान की भाँती हैं और एक रोज इसे छोड़कर हमें चले जाना है.
कबीरदास जी इस दोहे में हमें संसार की भौतिकतावादी, मोह माया से सावधान करते हैं. वे कहते हैं कि संसारी लोगों से प्रेम करने से न तो भौतिक संपत्ति हासिल होती है, न आध्यात्मिक। ऐसा इसलिए है क्योंकि संसारी लोग भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं और उन्हें ईश्वर के प्रति कोई लगाव नहीं होता। ऐसे लोगों से प्रेम करने से व्यक्ति भी उनके मोहजाल में फंस जाता है और उसे अपने आध्यात्मिक लक्ष्य से भटक जाना पड़ता है। हमें तो सच्चे गुरु के सानिध्य में रहना चाहिए और गुरु के आदेशों के प्रति सम्पूर्ण समर्पित होकर इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए.