संत न छांड़ै संतई जे कोटिक मिलें असंत मीनिंग Sant Na Chhode Santai Meaning

संत न छांड़ै संतई जे कोटिक मिलें असंत मीनिंग Sant Na Chhode Santai Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit

संत न छांड़ै संतई, जे कोटिक मिलें असंत ।
चंदन भुवंगा बैठिया, तउ सीतलता न तजंत ॥
Sant Na Chhode Santai, Je Kotik Mile Asant.
Chandan Buvanga Baithiya Tau Shetalta Na Tajant.
 
संत न छांड़ै संतई जे कोटिक मिलें असंत मीनिंग Sant Na Chhode Santai Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

कबीर इस दोहे में संतों की स्थिरता और दृढ़ता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि संत किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य और संयम नहीं खोते हैं। संत अपना संतत्व नहीं छोड़ते हैं भले ही उनको असंख्य असंत व्यक्तियों में मध्य रहना हो. संत किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य और संयम नहीं खोते हैं, वे धैर्यशाली होते हैं। वे हमेशा सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलते हैं। चन्दन के वृक्ष पर कितने ही साँप आ बैठें, तो भी वह शीतलता को नहीं छोड़ता। कबीर कहते हैं कि चन्दन का वृक्ष अपनी शीतलता को इसलिए नहीं छोड़ देता है क्योंकि उसपर सांप (बुराई का प्रतीक) लिपटे हैं भले ही उस पर कितने ही साँप आ बैठें, लेकिन वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता है।

कबीर का दोहा हमें यह उपदेश देता है कि हमें संतों की तरह बनना चाहिए। हमें किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य और संयम नहीं खोना चाहिए। हमें हमेशा सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए। कबीर का यह दोहा हमें संतों की स्थिरता और दृढ़ता के बारे में सोचने में मदद कर सकता है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमें किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य और संयम नहीं खोना चाहिए। हमें हमेशा सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए।

अतः इस दोहे का भाव है की संतजन अपने आदर्शों और सत्य के मार्ग का अनुसरण करते हैं, भले ही वो कैसे भी लोगों के मध्य रहे. ऐसे ही हमें इस दोहे से सिक्षा लेनी चाहिए की भले ही हम पर कितनी भी विपदा आये, कैसा भी वातावरण हो, कैसे भी लोगों के मध्य हम रहें, इश्वर की भक्ति को बिना किसी से प्रभावित होकर सूक्ष्म रूप से, चित्त में पूर्ण लगन से करनी चाहिए. बुरे लोगों से प्रभावित होकर हमें अपने लक्ष्य से विमुख नहीं होना चाहिए और अपने संत तत्व को धारण करके हरी के नाम का सुमिरन करते रहना चाहिए.

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