
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
संत न छांड़ै संतई जे कोटिक मिलें असंत मीनिंग Sant Na Chhode Santai Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit
संत न छांड़ै संतई, जे कोटिक मिलें असंत ।कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर इस दोहे में संतों की स्थिरता और दृढ़ता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि संत किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य और संयम नहीं खोते हैं। संत अपना संतत्व नहीं छोड़ते हैं भले ही उनको असंख्य असंत व्यक्तियों में मध्य रहना हो. संत किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य और संयम नहीं खोते हैं, वे धैर्यशाली होते हैं। वे हमेशा सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलते हैं। चन्दन के वृक्ष पर कितने ही साँप आ बैठें, तो भी वह शीतलता को नहीं छोड़ता। कबीर कहते हैं कि चन्दन का वृक्ष अपनी शीतलता को इसलिए नहीं छोड़ देता है क्योंकि उसपर सांप (बुराई का प्रतीक) लिपटे हैं भले ही उस पर कितने ही साँप आ बैठें, लेकिन वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |