श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम संस्कृत में रचित है। यह स्तोत्र ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड (अध्याय 44/20-36) में उल्लेखित है। श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम का पाठ देवी मंगल चंडिका से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस स्तोत्रम का दस लाख बार पाठ करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
चंडिका या रं-चंडिका (चण्डिका) देवी महात्म्य (संस्कृत: देवीमहात्म्यम, देवीमाहात्म्यम्) की सर्वोच्च देवी हैं, जिन्हें दुर्गा सप्तशती में चामुंडा या दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। चंडिका को महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का संयोजन बताया गया है। बाद में मूर्ति रहस्य में उन्हें अठारह भुजाओं वाली महालक्ष्मी (अष्टादशा भुजा महालक्ष्मी) के रूप में वर्णित किया गया है, जो हथियार धारण करती हैं।
सरल हिंदी में, श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम एक भक्ति स्तोत्र है जो देवी मंगल चंडिका की स्तुति करता है। यह स्तोत्र भक्त को देवी मंगल चंडिका के आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करता है, जो सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं।
श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् हिंदी मीनिंग Shri Mangal Chandika Stotram Hindi Meaning
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये,देवी मङ्गलचण्डिके,
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं,
चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः।
पूज्यः कल्पतरुश्चैव,
भक्तानां सर्वकामदः,
दशलक्षजपेनैव,
मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम्।
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स,
विष्णुः सर्वकामदः,
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन्,
वेदोक्तं सर्व सम्मतम्।
देवीं षोडशवर्षीयां,
शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्,
सर्वरूपगुणाढ्यां च,
कोमलाङ्गीं मनोहराम्।
श्वेतचम्पकवर्णाभां,
चन्द्रकोटिसमप्रभाम्,
वन्हिशुद्धांशुकाधानां,
रत्नभूषणभूषिताम्।
बिभ्रतीं कबरीभारं,
मल्लिकामाल्यभूषितम्,
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां,
शरत्पद्मनिभाननाम्।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां,
सुनीलोल्पललोचनाम्,
जगद्धात्रीं च दात्रीं च,
सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम्।
संसारसागरे घोरे,
पोतरुपां वरां भजे,
देव्याश्च ध्यानमित्येवं,
स्तवनं श्रूयतां मुने,
प्रयतः संकटग्रस्तो,
येन तुष्टाव शंकरः।
शंकर उवाच लिरिक्स
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि,
मङ्गलचण्डिके,
हारिके विपदां,
राशेर्हर्षमङ्गलकारिके।
हर्षमङ्गलदक्षे च,
हर्षमङ्गलचण्डिके,
शुभे मङ्गलदक्षे च,
शुभमङ्गलचण्डिके।
मङ्गले मङ्गलार्हे च,
सर्व मङ्गलमङ्गले,
सतां मन्गलदे देवि,
सर्वेषां मन्गलालये।
पूज्या मङ्गलवारे च,
मङ्गलाभीष्टदैवते,
पूज्ये मङ्गलभूपस्य,
मनुवंशस्य संततम्।
मङ्गलाधिष्टातृदेवि,
मङ्गलानां च मङ्गले,
संसार मङ्गलाधारे,
मोक्षमङ्गलदायिनि।
सारे च मङ्गलाधारे,
पारे च सर्वकर्मणाम्,
प्रतिमङ्गलवारे च,
पूज्ये च मङ्गलप्रदे।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च,
स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम्,
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां,
कृत्वा गतः शिवः।
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं,
यः श्रुणोति समाहितः,
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न,
भवेत् तदमङ्गलम्
मंगल चंडिका स्तोत्रम का हिंदी अर्थ/अनुवाद
देवीं षोड्शवष यां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्।
सर्वरुपगुणाढ्यां च कोमलांगीं मनोहराम्॥
श्वेतचम्पकवर्णाभा चन्द्रकोटि-समप्रभाम्।
वह्निशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम्॥
बिभ्रतीं कवरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम्।
विम्बोष्ठीं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्॥
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोत्पललोचनाम्।
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसम्पदाम्॥
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे॥
देव्याश्च द्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः॥
मंगला चण्डिका की रूप-सौंदर्य और गुणों का वर्णन हैं कि भगवती मंगला चण्डिका सदा सोलह वर्ष की ही जान पड़ती हैं। वे सम्पूर्ण रूप-गुण से सम्पन्न, कोमलांगी और मनोहारिणी हैं। उनका गौरवर्ण श्वेत चम्पा के समान है और उनकी मनोहर कान्ति करोड़ों चन्द्रमाओं के समान है। वे अग्नि-शुद्ध दिव्य वस्त्र धारण किये हैं और रत्नमय आभूषणों से विभूषित हैं। उनके केशपाश मल्लिका पुष्पों से समलंकृत हैं। उनके लाल ओठ बिम्बसदृश हैं, उनके दन्त-पंक्ति सुन्दर हैं और उनका मुख शरत्काल के प्रफुल्ल कमल की भाँति शोभायमान है। उनके प्रसन्न वदनारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही है। उनके दोनों नेत्र सुन्दर खिले हुए नीलकमल के समान मनोहर हैं। वे सबको सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करने वाली हैं और घोर संसार-सागर से उबारने में जहाज का काम करती हैं। कवि कहते हैं कि वे सदा उनका भजन करते हैं।
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके।
हारिके विपदां राशेर्हर्ष-मंगल-कारिके॥
हर्ष मंगल दक्षे चहर्ष-मंगल-चण्डिके।
शुभे मंगल-दक्षे च शुभ-मंगल-चण्डिके॥
मंगले मंगलार्हे चसर्व-मंगल-मंगले।
सतां मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये॥
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट-दैवते।
पूज्ये मंगल-भूपस्य मनुवंशस्य संततम्॥
मंगलाधिष्ठातृदेविमंगलानां च मंगले।
संसार-मंगलाधारे मोक्ष –मंगल -दायिनी॥
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूज्ये च मंगलप्रदे॥
स्तोत्रेणानेनशम्भुश्चस्तुत्वा मंगलचण्डिकाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः॥
देव्याश्च मंगल-स्तोत्रं यं श्रृणोति समाहितः।
तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत्तदमंगलम्॥
हे जगन्माता भगवती मंगलचण्डिके,
मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।
तुम सम्पूर्ण विपत्तियों का नाश करने वाली हो,
और आनंद तथा मंगल प्रदान करने वाली हो।
हे हर्ष-मंगल-चण्डिके, जो खुले हाथों से आनंद और मंगल प्रदान करती हो,
तुम शुभा, मंगलदक्षा, शुभमंगल-चण्डिका, मंगला, मंगला तथा सर्व-मंगल-मंगला कहलाती हो।
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके।
हे जगन्माता भगवती मंगलचण्डिके,
मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।
भक्त मंगल चण्डिका देवी से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं। वे उन्हें जगन्माता कहते हैं क्योंकि वे संपूर्ण जगत की रक्षा करती हैं।
हारिके विपदां राशेर्हर्ष-मंगल-कारिके॥
तुम सम्पूर्ण विपत्तियों का विध्वंस करने वाली हो,
और आनंद तथा मंगल प्रदान करने वाली हो।
भक्त देवी के दो प्रमुख गुणों की प्रशंसा करते हैं। वे उसे विपत्तियों का नाश करने वाली और आनंद तथा मंगल प्रदान करने वाली कहते हैं।
हर्ष-मंगल-दक्षे चहर्ष-मंगल-चण्डिके।
हे हर्ष-मंगल-चण्डिके, जो खुले हाथों से आनंद और मंगल प्रदान करती हो,
भक्त देवी के आनंद और मंगल प्रदान करने वाले स्वभाव की प्रशंसा करते हैं। वे उसे हर्ष-मंगल-चण्डिके कहते हैं, जिसका अर्थ है "खुले हाथों से आनंद और मंगल प्रदान करने वाली देवी"।
शुभे मंगल-दक्षे च शुभ-मंगल-चण्डिके॥
तुम शुभा, मंगलदक्षा, शुभमंगल-चण्डिका, मंगला, मंगला तथा सर्व-मंगल-मंगला कहलाती हो। भक्त देवी के विभिन्न नामों का उल्लेख करते हैं। ये सभी नाम उनके मंगलमय और दयालु स्वभाव को दर्शाते हैं।
मंगले मंगलार्हे च सर्व-मंगल-मंगले।
सतां मंगलदे देवी सर्वेषां मंगलालये॥
हे देवी! तुम मंगल का निवास और मंगल का कारण हो। तुम साधु-पुरुषों को भी मंगल प्रदान करती हो। तुम सभी के लिए मंगल का आश्रय हो। इस श्लोक में देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। देवी दुर्गा को मंगल की देवी कहा गया है। मंगल का अर्थ है शुभ, कल्याणकारी और सौभाग्यदायी। इस श्लोक में कहा गया है कि देवी दुर्गा मंगल का निवास और मंगल का कारण हैं। अर्थात वे स्वयं मंगल हैं और वे मंगल का प्रवाह करती हैं। वे साधु-पुरुषों को भी मंगल प्रदान करती हैं। अर्थात वे सभी के लिए मंगलकारी हैं। वे सभी के लिए मंगल का आश्रय हैं। अर्थात वे सभी के लिए शुभ और कल्याण का कारण हैं।
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट-दैवते।
पूज्ये मंगल-भूपस्य मनुवंशस्य संततम्॥
हे देवी! तुम मंगलग्रह की इष्ट-देवी हो। मंगलवार के दिन तुम्हारी पूजा होनी चाहिए। तुम मनुवंश के राजा मंगल की पूजनीया देवी हो। देवी दुर्गा को मंगलग्रह की इष्ट-देवी कहा गया है। इसलिए मंगलवार के दिन उनकी पूजा करनी चाहिए। वे मनुवंश के राजा मंगल की पूजनीया देवी हैं। अर्थात वे मनुवंश के सभी लोगों के लिए पूजनीय हैं।
मंगलाधिष्ठातृदेविमंगलानां च मंगले।
संसार-मंगलाधारे मोक्ष –मंगल -दायिनी॥
हे देवी, तुम मंगल की अधिष्ठात्री हो और सभी मंगलों की मंगल हो।
तुम संसार की मंगलधारा हो और मोक्ष की मंगलदायिनी हो। देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। देवी दुर्गा को मंगल की देवी कहा गया है। मंगल का अर्थ है शुभ, कल्याणकारी और सौभाग्यदायी। इस श्लोक में कहा गया है कि देवी दुर्गा मंगल की अधिष्ठात्री हैं। अर्थात वे मंगल का मूल हैं और वे मंगल का प्रवाह करती हैं। वे सभी मंगलों की मंगल हैं। अर्थात वे सभी मंगलों का कल्याण करती हैं। वे संसार की मंगलधारा हैं। अर्थात वे संसार में मंगल का प्रवाह करती हैं। वे मोक्ष की मंगलदायिनी हैं। अर्थात वे मोक्ष प्रदान करती हैं।
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूज्ये च मंगलप्रदे॥
स्तोत्रेणानेनशम्भुश्चस्तुत्वा मंगलचण्डिकाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः॥
देव्याश्च मंगल-स्तोत्रं यं श्रृणोति समाहितः।
तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत्तदमंगलम्॥
मंगलवार के दिन सुपूजित होने पर मंगलमय सुख प्रदान करने वाली देवि! तुम संसार की सारभूता मंगलधारा तथा समस्त कर्मों से परे हो। इस श्लोक में, भगवान शिव देवी मंगलचण्डिका की महिमा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि देवी मंगलमय सुख प्रदान करती हैं और वे संसार में मंगल का प्रवाह करती हैं। वे समस्त कर्मों से परे हैं, अर्थात वे किसी भी कर्म के बंधन में नहीं हैं। भगवान शिव ने इस श्लोक में देवी मंगलचण्डिका की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि वे मंगल की अधिष्ठात्री हैं, सभी मंगलों की मंगल हैं, संसार की मंगलधारा हैं और मोक्ष की मंगलदायिनी हैं। उन्होंने कहा कि जो कोई इस स्तोत्र का श्रवण करता है, उसे सदा मंगल प्राप्त होता है।
Mangal Chandika Stotram
मंगलचण्डिका देवी दुर्गा का ही एक रूप हैं। दुर्गा देवी को शक्ति की देवी कहा जाता है। वे सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने वाली हैं। मंगलचण्डिका देवी भी अपने भक्तों को कल्याण प्रदान करती हैं। मंगलचण्डिका देवी स्त्रियों की इष्टदेवी हैं। वे स्त्रियों को सुख, समृद्धि और कल्याण प्रदान करती हैं। स्त्रियाँ मंगलचण्डिका देवी की पूजा करके अपने जीवन में मंगल प्राप्त कर सकती हैं। इस प्रकार, मंगलचण्डिका देवी एक ऐसी देवी हैं जो कल्याण करने में दक्ष हैं और स्त्रियों की इष्टदेवी हैं।
जो व्यक्ति नियमित रूप से मंगल चण्डिका स्तोत्र का जाप करता है, उसे धन, व्यापार, आवास आदि से संबंधित कोई समस्या नहीं होती है। जो व्यक्ति विवाह में समस्याओं का सामना कर रहा है, ऐसा कहा जाता है कि नियमित रूप से मंगल चण्डिका स्तोत्र का जाप करने से वैवाहिक परेशानियां दूर रहती हैं। मंगल चण्डिका स्तोत्र का पाठ करने से मांगलिक दोष से संबंधित विवाह और कार्य संबंधी बाधाएं दूर होती हैं। सरल हिंदी में, मंगल चण्डिका स्तोत्र एक बहुत ही पवित्र स्तोत्र है जो माता चण्डिका की पूजा के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र सभी मनोकामनाएं पूरी करता है और विवाह और कार्य संबंधी बाधाएं दूर करता है।
Author - Saroj Jangir
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