हँसै न बोलै उनमनी चंचल मेहल्या मीनिंग Hanse Na Bole Unmani Meaning

हँसै न बोलै उनमनी चंचल मेहल्या मीनिंग Hanse Na Bole Unmani Meaning : Kabir Ke Dohe

हँसै न बोलै उनमनी चंचल मेहल्या मारि,
कहै कबीर भीतरि भिद्या, सतगुरु कै हथियार॥

Hanse Na Bole Unmani Chanchal Mehlya Mari,
Kahe Kabir Bhitari Bhidya Satguru Ke Hathiyari.
 
हँसै न बोलै उनमनी चंचल मेहल्या मीनिंग Hanse Na Bole Unmani Meaning

हिंदी अर्थ / भावार्थ : कबीर साहेब इस दोहे में सन्देश देते हैं की सतगुरु साहेब ने शब्द ज्ञान बाण चलाया है जो जीवात्मा को अंदर तक भेद गया है, आर पार हो गया है। हंस/जीवात्मा अब बोलती नहीं है और वह उनमनी (गुमसुम) हो गई है। उसकी चंचलता को सतगुरु के ज्ञान रूपी बाण ने मार दिया है, अब वह स्थिर है। सतगुरु के पास ही वह हथियार है जो अंदर तक भेद गया है। 
 
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि सतगुरु के शब्द रूपी बाणों शरीर को भीतर तक बेध दिया है, इससे मन की सारी चंचलता नष्ट हो गई और अब वह स्थिर अवस्था में है। जीवात्मा समाधि की एक ऐसी अवस्था में पहुंच गई है, जहां मन में सांसारिक विषय वासनाओं के प्रति पूर्णता उदासीनता का भाव आ गया है, अब वह विषयों से मुक्त हो गई है। जीवात्मा का हृदय अलौकिक परमानंद में लीन हो गया है। इंद्रियों के संवेदन की स्थिरता के कारण हंसना-बोलना भी बंद हो गया है, अब वह मौन की अवस्था में है. आशय है की जीवात्मा ज्ञान को पहचान गई है.
 
Meaning in English : In this Doha, Kabir Saheb conveys the message that the Satguru has released the arrow of verbal knowledge, which has penetrated and transcended the individual soul completely. The soul, now referred to as "Hans" (supposedly the higher self), no longer speaks, and it has become silent or introspective. The restlessness of the soul has been subdued by the arrow of knowledge from the Satguru, making it stable. Only the Satguru possesses the tool that can penetrate to the depths within.

शब्दार्थ-
  • भिद्या, भिदा = भेदा = भेद गया।
  • उनमनी = गुमसुम
  • हथियार—शब्द वाण।
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