राग पूरिया धनाश्री परिचय Raag Puriya Dhanashri Bandish Paricyay

राग पूरिया धनाश्री परिचय Raag Puriya Dhanashri Bandish Paricyay


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राग पूरियाधनाश्री परिचय

  • थाट- पूर्वी
  • वादी – संवादी :- गंधार (ग) – निषाद (नि)
  • जाति-सम्पूर्ण-सम्पूर्ण
  • विकृत स्वर -रे-ध कोमल, म तीव्र
  • वर्ज्य स्वर – कोई नहीं
  • गायन समय – संध्याकाल
  • आरोह –  .नि रे ग म’ प, ध प, नि सां |
  • अवरोह – रें नि ध प, म’ ग, म’ रे ग, रे सा|
  • पकड़ –  .नि रे ग, म’ प, ध प, म’ ग, म’ रे ग, म’ ग रे सा|

राग पूरियाधनाश्री की विशेषता

  • पूरियाधनाश्री नाम से ही यह स्पष्ट है कि यह राग पूरिया और धनाश्री रागों के मिश्रण से बना है। पूरिया राग मारवा थाट का राग है, जिसमें ऋषभ और धैवत स्वर कोमल होते हैं। धनाश्री राग काफी थाट का राग है, जिसमें ग और नि स्वर कोमल होते हैं। पूरियाधनाश्री राग में ऋषभ और धैवत स्वर कोमल हैं, जबकि ग और नि स्वर तीव्र हैं। अतः, यह पूर्वी थाट का राग है।
  • पूरियाधनाश्री राग एक सायंकालीन संधिप्रकाश राग है। इसका गायन समय सायंकाल का चौथा प्रहर है।
  • राग का स्वरुप: पूरियाधनाश्री राग एक समप्रकृति राग है। इसका वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षड्ज है।
  • पूरियाधनाश्री राग की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
  • इस राग में मे रे ग तथा रे नि स्वरों की संगति बार-बार दिखाई जाती है।
  • इस राग में पंचम स्वर का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण है।
  • इस राग में गमक, कण और मींड का अधिक प्रयोग होता है।
  • पूरियाधनाश्री राग एक सुंदर और लोकप्रिय राग है। यह राग अपने मधुर स्वर और भावपूर्ण प्रवाह के लिए जाना जाता है।
न्यास के स्वर – सा , ग और प
समप्रकृति राग– पूर्वी और जैताश्री
विशेष स्वर संगतियाँ
1- नि रे ग मं प
2- ( प ) मं ग मं रे ग
3- रें नि ध प , मं ग , म रे ग
इस राग को पूर्वी थाट जन्य माना गया है। इसमें ऋषभ, धैवत कोमल तथा मध्यम तीव्र प्रयोग किया जाता है। वादी पंचम तथा संवादी षडज है । जाति सम्पूर्ण- सम्पूर्ण है। गायन समय सायंकाल, दिन का चौथा प्रहर है।
कोमल रि- ध तीवर नि ग म, है पंचम सुर वादी।
राग धनाश्री
⁠माधव! सुनौ ब्रज को नेम।
बूझि हम षट मास देख्यो गोपिकन को प्रेम॥
हृदय तें नहिं टरत उनके स्याम राम समेत।
अस्रु-सलिल-प्रवाह उर पर अरघ नयनन देत॥
चीर अंचल, कलस कुच, मनो पानि[१] पदुम चढ़ाय।
प्रगट लीला देखि, हरि के कर्म, उठतीं गाय॥
देह गेह-समेत अर्पन कमललोचन-ध्यान।
सूर उनके भजन आगे लगै फीको ज्ञान॥३८३॥

राग धनाश्री
जीवन मुँहचाही[१] को नीको।

दरस परस दिनरात करति हैं कान्ह पियारे पी को॥
नयनन मूँदि मूँदि किन देखौ बँध्यो ज्ञान पोथी को।
आछे सुंदर स्याम मनोहर और जगत सब फीको॥
सुनौ जोग को का लै कीजै जहाँ ज्यान[२] है जी को?
खाटी सही नहीं रुचि मानै सूर खवैया घी को॥२२॥

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