सतगुरु कै सदकै करूँ मीनिंग Satguru Ke Sadake Karu Meaning

सतगुरु कै सदकै करूँ मीनिंग Satguru Ke Sadake Karu Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit

सतगुरु कै सदकै करूँ, दिल अपनीं का साँच।
कलिजुग हम सौं लड़ि पड़ा, मुहकम मेरा बाँच॥
या
सतगुर के सदकै करूँ दिल अपणीं का साछ।
कलियुग हम स्यूँ लड़ि पड़या मुहकम मेरा बाछ॥५॥

Satguru Ke Sadake Karu, Dil Apni Ka Sanch,
Kaliyug Hum So Ladi Pada, Muhkam Mera Banch
 
सतगुरु कै सदकै करूँ मीनिंग Satguru Ke Sadake Karu Meaning
 

अर्थ सहित व्याख्या : कबीर साहेब इस दोहे में सन्देश देते हैं की सद्गुरु (सच्चा गुरु ) के प्रति सम्पूर्ण और सत्य आधारित समर्पण रखते हैं, इसके उपरान्त कलियुग के तमाम विकार ऐसे साधक को विचलित, भक्ति से पथ विमुख नहीं कर सकते हैं। ऐसे में साधक ने कलियुग पर विजय प्राप्त कर ली है। इस दोहे का आशय है की सतगुरु सर्वथा प्रशंसनीय है, वंदनीय है। उसकी महती कृपा से शिष्य कलियुग से पराभूत होने से मुक्त हो सकता है।

भावार्थ : साधक अपने हृदय की समस्त सत्यता को साक्षी करके, पूर्ण मनोयोग से मैं सद्गुरु के चरणों में अपने को न्यौछावर करता है। कलियुग ने पूर्ण शक्ति के साथ मेरे प्रति आक्रमण किया, साधक को विमुख करने के लिए अनेकों प्रयत्न किये और तमाम विपत्तियाँ तेज थी, बलशाली थी। ऐसे में सतगुरु की कृपा से ही वह भव सागर से पार हो पाया है।

शब्दार्थ
  • सदकै = सर जो झुकाना, समर्पण हो जाना,
  • बलि जाऊँ, न्यौछावर जाऊ।
  • दिल = हृदय।
  • स्यूँ = से।
  • पड़या = पड़ा।
  • मुहकम = प्रवल, बलशाली।
  • बाछ = वाँछा, अभिलाषा।
© सरोज जांगिड, सीकर राज.
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