सतगुरु सवाँन को सगा अर्थ भावार्थ Satguru Sawan Ko Saga Meaning

सतगुरु सवाँन को सगा अर्थ भावार्थ Satguru Sawan Ko Saga Meaning : Kabir Ke Dohe

सतगुरु सवाँन को सगा, सोधी सई न दाति।
हरिजी सवाँन को हितू, हरिजन सईं न जाति॥१॥

Satguru Sawan Ko Saga, Sodhi Sai Na Daati,
Hariji Sawan Ko Hitu, Harijan Sai Na Jaati
 
 
सतगुरु सवाँन को सगा अर्थ भावार्थ Satguru Sawan Ko Saga Meaning


सन्दर्भ—इस दोहे में कबीर साहेब ने सतगुरु का व्यक्तित्व अद्वितीय असाधारण, समादरणीय और अत्यन्त कल्याण कारी  बताया है। सतगुरु ही मुक्ति और भक्ति का भण्डार है और हरिजी और हरिजन से भी श्रेष्ठ है।

भावार्थ—कबीर साहेब कहते हैं की सतगुरु के समान कौन सा है, कौन अपना है, आशय है की कोई नहीं हो सकता है। गुरु के समान कोई भी शोधक नहीं है, गुरु ही सर्वोच्च है। गुरु ही अमोघ, अजस्त्रदाता है। हरिजी अर्थात् भगवान की सदृश कौन हितैषी है, कोई नहीं और हरिजन अर्थात् वैष्णवजन के समान कोई जाति नहीं है, उसके समान कोई कुलीन नहीं होता है।

शब्दार्थ
  • सवाँन = समान, बराबर।
  • को = कौन।
  • सगा = स्वक् = अपना, अभिन्न।
  • सोधी = शोधी—संशोधन करने वाला, शोधक।
  • सईं = समान।
  • दाति = दातृ—दाता, दानी।
  • हितू—हितैषी।
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