बुद्ध के साथ मनुष्य-जाति का एक नया अध्याय

बुद्ध के साथ मनुष्य-जाति का एक नया अध्याय/बुद्ध पूर्णिमा स्पेशल


बुद्ध के साथ मनुष्य-जाति का एक नया अध्याय/बुद्ध पूर्णिमा स्पेशल Buddh Ke Sath Manushya Bhajan Lyrics

एक पूर्णिमा की रात,
बुद्ध के साथ मनुष्य-जाति का,
एक नया अध्याय शुरू हुआ,
पच्चीस सौ वर्ष पहले बुद्ध ने वह,
कहा जो आज भी सार्थक मालूम पड़ेगा,
और जो आने वाली सदियों तक सार्थक रहेगा।
बुद्ध ने विश्लेषण दिया।
और जैसा सूक्ष्म विश्लेषण उन्होंने किया,
कभी किसी ने न किया था,
और फिर दुबारा कोई न कर पाया।

उन्होंने जीवन की समस्या के,
उत्तर शास्त्र से नहीं दिए,
विश्लेषण की प्रक्रिया से दिए।
बुद्ध धर्म के पहले वैज्ञानिक हैं।
उनके साथ श्रद्धा और,
आस्था की जरूरत नहीं है।
उनके साथ तो समझ पर्याप्त है,
अगर तुम समझने को राजी हो,
तो तुम बुद्ध की नौका,
में सवार हो जाओगे।
अगर श्रद्धा भी आयेगी,
तो समझ की छाया होगी।
लेकिन समझ के पहले,
श्रद्धा की मांग बुद्ध की नहीं है।
बुद्ध यह नहीं कहते कि जो मैं कहता हूं,
भरोसा कर लो।

बुद्ध कहते हैं सोचो विचारों,
विश्लेषण करो खोजो,
पाओ अपने अनुभव से,
तो भरोसा कर लेना,
दुनिया के सारे धर्मों,
ने भरोसे को पहले रखा है,
सिर्फ बुद्ध को छोड़कर।

दुनिया के सारे धर्मों में,
श्रद्धा प्राथमिक है,
फिर ही कदम उठेगा।
बुद्ध ने कहा,
अनुभव प्राथमिक है,
श्रद्धा आनुसांगिक है।

अनुभव होगा तो श्रद्धा होगी,
अनुभव होगा तो आस्था होगी।
इसलिए बुद्ध कहते हैं,
आस्था की कोई जरूरत नहीं है,
अनुभव के साथ अपने से आ जाएगी,
तुम्हें लानी नहीं है,
और तुम्हारी लायी,
हुई आस्था का मूल्य भी क्या हो सकता है?
तुम्हारी लायी आस्था के पीछे भी छिपे होंगे,
तुम्हारे संदेह,
तुम आरोपित भी कर लोगे विश्वास को,
तो भी विश्वास के पीछे अविश्वास खड़ा होगा।

तुम कितनी ही दृढता से भरोसा करना चाहो,
लेकिन तुम्हारी दृढ़ता कांपती रहेगी,
और तुम जानते रहोगे कि जो तुम्हारे,
अनुभव में नहीं उतरा है,
उसे तुम चाहो,
भी तो भी कैसे मान सकते हो?

मान भी लो, तो भी कैसे मान सकते हो?
तुम्हारा ईश्वर कोरा शब्दजाल होगा,
जब तक अनुभव की किरण न उतरी हो।

तुम्हारे मोक्ष की धारणा मात्र शाब्दिक होगी,
जब तक मुक्ति का थोड़ा स्वाद तुम्हें न लगा हो।
बुद्ध ने कहा,
मुझ पर भरोसा मत करना,
मैं जो कहता हूं उस पर इसलिए,
भरोसा मत करना कि मैं कहता हूं,
सोचना विचारना जीना।

तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही हो जाए,
तो ही सही है,
मेरे कहने से क्या सही होगा,
ऐसा हुआ कि बुद्ध एक वृक्ष के नीचे,
एक पूर्णिमा की रात ध्यान कर रहे थे।
शहर से कुछ युवक एक वेश्या को,
लेकर जंगल में आ गए हैं।
नशे में धुत उन्होंने वेश्या को,
नग्न कर दिया है।
वे हंसी-मजाक कर रहे हैं।
वे अपनी क्रीड़ा में लीन हैं।
उनको बेहोश देखकर,
शराब में धुत देखकर वेश्या भाग निकली।

थोड़ी देर बाद जब उन्हें होश आया,
और देखा कि वेश्या तो जा चुकी है,
तो वे उसे खोजने निकले।
कोई और तो न मिला,
राह के किनारे,
वृक्ष के नीचे बुद्ध मिल गए।
तो उन्होंने पूछा कि,
ऐ भिक्षु यहां से तुमने एक,
बहुत सुंदर स्त्री को नग्न जाते देखा?

बुद्ध ने कहा कोई यहां से गया,
कहना मुश्किल है,
कि स्त्री है या पुरुष,
क्योंकि वह भेद तभी तक था,
जब अपनी कामना थी,
अब कौन भेद करता है,
किसको लेना-देना है,
क्या पड़ी है,
कोई गया जरूर,
तय करना मुश्किल है कि,
स्त्री थी या पुरुष था,
और तुम कहते हो,
सुंदर तुम और कठिन सवाल उठाते हो,
सुंदर और असुंदर भी गया।
वह अपने ही मन का खेल था।
हां एक अस्थिपंजर,
मांस-मज्जा से भरा,
गुजरा है जरूर।

कहां गया,
यह कहना मुश्किल है।
क्योंकि मैं आंखों को,
भीतर ले जाने में लगा हूं।
बाहर कौन जा रहा है,
यह देखता रहूं तो भीतर कैसे जाऊं?

तुम मुझे क्षमा करो।
तुम किसी और को खोजो।
वह तुम्हें ठीक-ठीक पता दे सकेगा।
मैं अपना पता खोज रहा हूं,
दूसरों के पते की मुझे,
अब कोई चिंता न रही।

काश काम के बिना तुम स्त्री को देखो,
या पुरुष को देखो क्या पाओगे वहां?
शरीर में तो कुछ भी नहीं है।
और अगर कुछ है तो वह अशरीरी है।
लेकिन काम की आंखें तो,
उसे देख ही न पायेंगी,
उस आत्मा को जो,
इस हड्डी-मांस-मज्जा की,
देह में छिपी है।
उस चैतन्य को,
उस ज्योति को तो काम से भरी,
आंखें तो देख ही न पाएंगी,
तुम देह पर ही भटक रहोगे।

जब काम गिर जाता है,
शरीर ना कुछ हो जाता है;
मिट्टी से उठा,
मिट्टी में वापस लौट जाएगा।
लेकिन जैसे ही शरीर ना कुछ हुआ,
वैसे ही शरीर के भीतर जो छिपा है,
उसकी पहली झलक मिलनी शुरू हो जाती है।
तब न तो तुम स्त्री को पाते हो न पुरुष को,
तुम सब जगह परमात्मा को पाते हो।


बुद्ध के साथ मनुष्य-जाति का एक नया अध्याय शुरू हुआ,- Gujarati Mi


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