राह कौन सी जाऊँ मैं अटल बिहारी
राह कौन-सी जाऊँ मैं अटल बिहारी
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी केवल एक कुशल राजनेता ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील कवि भी रहे हैं। उनकी कविताएँ देशभक्ति, संघर्ष और आत्ममंथन की गहरी अनुभूति से भरी होती हैं। "राह कौन-सी जाऊँ मैं" भी एक ऐसी ही कविता है, जो जीवन के द्वंद्व, निर्णय की कठिनाइयों और मार्गदर्शन की खोज को रोचक तरीके से पेश करती है। इस कविता में जीवन के द्वंद को चित्रित किया गया है।विशेष है की श्री अटल बिहारी 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी जी ने तीन बार देश के प्रधानमंत्री बनें । श्री वाजपेयी जी को सन् 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राजनेता होने के साथ ही वे एक कोमल हृदय के कवि भी रहे हैं।
प्यादे से पिट गया वज़ीर,
चलूँ आख़िरी चाल कि बाज़ी छोड़,
विरक्ति रचाऊँ मैं?
राह कौन-सी जाऊँ मैं?
सपना जन्मा और मर गया,
मधु ऋतु में ही बाग़ झर गया,
तिनके टूटे हुए बटोरूँ या,
नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन-सी जाऊँ मैं?
दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या,
निधि शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन-सी जाऊँ मैं?
(अटल बिहारी वाजपेयी) - जगजीत सिंह.
जो कल थे, वे आज नहीं हैं
जो आज हैं, वे कल नहीं होंगे
होने, न होने का क्रम
इसी तरह चलता रहेगा
हम हैं, हम रहेंगे
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा
सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है
मुझे लगता है कि होना-न-होना
एक ही सत्य के दो आयाम हैं
शेष सब समझ का फेर
बुद्धि के व्यायाम हैं
-(अटल बिहारी वाजपेयी)
चौराहे पर लुटता चीर
चौराहे पर लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वज़ीर
चलूँ आख़िरी चाल के बाज़ी
छोड़ विरक्ति रचाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग़ झर गया
सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग़ झर गया
तिनके बिखरे हुए बटोरूँ
या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
दो दिन मिले उधार में
घाटे के व्यापार में
दो दिन मिले उधार में
घाटे के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब जोड़ूँ या
पूंजी शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
चौराहे पर लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वज़ीर
चलूँ आख़िरी चाल के बाज़ी
छोड़ विरक्ति रचाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
(अटल बिहारी वाजपेयी)
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उनकी कविता "गांधी जी की याद में" और "एकता और अखंडता" भी समाज पर गहरी छाप छोड़ती हैं, क्योंकि इनमें उनके विचारों की स्पष्टता और सामाजिक समरसता का संदेश निहित है। विशेष रूप से "हम सब एक हैं" उनकी एक ऐसी कविता है, जो राष्ट्रीय एकता, अखंडता और देशभक्ति की भावना को अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है।
अटल जी की कविताओं में भावनाओं की गहराई, देशप्रेम और सामाजिक सरोकारों की संवेदनशीलता स्पष्ट रूप से झलकती है। उनकी रचनाएँ न केवल प्रेरणादायक हैं, बल्कि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने का कार्य भी करती हैं।
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Author - Saroj Jangir
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