जय रघुनन्दन जय सियाराम भजन Jai Raghu Nandan Jai Siya

जय रघुनन्दन जय सियाराम भजन Jai Raghu Nandan Jai Siya Raam

 
जय रघुनन्दन जय सियाराम भजन Jai Raghu Nandan Jai Siya Ram

श्री रामचंद्र आश्रित पारिजातः
समस्त काल्यान गुना विरामः
सीता मुखम गुरूचनचरीकः
निरंतरम मंगल मातनुत
आ आ आ आ आ
आ आ आ
आ आ आ
आ आ आ आ आ
आ आ आ आ आ
आ आ आ आ आ
जय रघुनंदन
जय सियाराम
जय रघुनंदन
जय सियाराम
हे दुःख भंजन
तुम्हे प्रणाम
हे दुःख भंजन तुम्हे प्रणाम
जय रघुनंदन
जय सियाराम
जय रघुनंदन
जय सियाराम
भ्रात भ्रात को हे परमेश्वर
स्नेह तुम्ही सिखलाते
आ आ आ आ
आ आ आ आ आ
आ आ आ
आ आ आ आ आ आ आ
भ्रात भ्रात को हे परमेश्वर
स्नेह तुम्ही सिखलाते
नर नारी के प्रेम की ज्योती
जग में तुम्ही जलाते
हो नैया के
केवन हारे
जपू मैं तुम्हरो नाम
जय रघुनंदन
जय सियाराम
जय रघुनंदन
जय सियाराम
तुम ही दया के सागर प्रभू जी
तुम ही पालन हारे
चैन तुम्ही से
पाये बेकल
मनवा सांझ सकारे
जो भी तुमरी
आस लगाए
जो भी तुमरी
आस लगाए
बने उसी के काम
जय रघुनंदन
जय सियाराम
जय रघुनंदन
जय सियाराम
जय रघुनन्दन जय सियाराम
 

जय रघुनन्दन जय सियाराम भजन jai Raghu Nandan Jai Siya Ram

मनसे जपले तू सीताराम
तू ही दयालु तू ही कृपालु
सब के स्वामी हे भगवान
तेरी महिमा सब से न्यारी
तू ही पालक हे मोरे राम
तू ही ईश्वर तू जगदीश्वर
अंतर्मन में तेरा धाम
जग के स्वामी अंतर्यामी
तू ही उद्धारक हे मोरे राम
सीताराम राम .....

श्री राम नाम का महत्त्व : राम से बढ़कर है राम का नाम। राम राम की महिमा शब्दातीत है। राम नाम के बल पर श्री हनुमान लंका को जला आये। जिसने राम नाम को आधार बनाया है उसका जीवन सुगम हो गया है। श्रीरामरक्षास्तोत्रम् दोहावली में श्री राम की महिमा बताई गयी है।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥

राम! राम! राम!’ इस प्रकार जप करते हुए परम मनोहर श्रीरामनाम में ही निरंतर रमण किया करता हूँ।
सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान हैं राम का नाम । 

महामंत्र जोइ जपत महेसू।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ।
प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥

राम चरित मानस में कहा गया है की राम का नाम सबसे पहले पूजा जाता है। इसे भगवान् श्री शिव जपते हैं और राम नाम के कारन ही काशी मुक्ति का कारन हैं।

कशी को इसी कारन मुक्ति का आधार माना जाता है। श्री गणेश भगवन राम नाम की महिमा जानते हैं यही कारण है की उनका पूजन सबसे पहले किया जाता है।
 
रे मन सब सों निरस ह्वै सरस राम सों होहि।
भलो सिखावन देत है निसि दिन तुलसी तोहि॥ 
 
मन तू संसार की विषय वासना और विकारों से प्रीति तोड़ कर श्री राम नाम का जाप कर उनसे प्रेम कर। तुलसीदास जी तुझे रात दिन राम नाम की महिमा की ही शिक्षा देते हैं। 

राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास॥

जो व्यक्ति राम नाम का जाप नहीं करता है, महत्त्व नहीं समझता है और बिना राम नाम का सहारा लेकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है उसकी स्थिति तो उस व्यक्ति की तरह से ही है जो बारिश की बूंदों को पकड़कर आकाश में चढ़ना चाहता है जो की असंभव है। बिना नाम के आधार लिए मुक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती हैं।

नाम गरीबनिवाज को राज देत जन जानि।
तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ की बानि॥

तुलसी दास जी का कहना है की श्री राम कृपालु और दयावान हैं। श्री राम दीनबंधु हैं और सबको आशीर्वाद देते हैं। जो भी श्री राम की स्तुति करता है वो उसे मोक्ष और मुक्ति तक दे देते हैं लेकिन यह मन है जो विचलित हो जाता है और व्यक्ति मन के बताये मार्ग पर चल पड़ता है जो की कूड़े के ढेर से दाना चुगने के समान है। मन विषय विकारों का घर है यही सारे विकार रहते हैं। 

यह व्यक्ति को सद्मार्ग पर नहीं चलने देता हैं। इसकी ओछी आदत है की श्री राम के आशीर्वाद को छोड़कर वो विषय विकारों में पड़ा रहता है जो की कूड़े के ढेर से दाना चुगने के सामान है।

सगुन ध्यान रुचि सरस नहिं निर्गुन मन ते दूरि।
तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि॥

ईश्वर सगुण है या फिर निर्गुण। सगुन का ध्यान करने पर प्रीति युक्त रुचि नहीं होती है और निर्गुण का ध्यान करने पर मन से दूरी आ जाती है , समझ में नहीं आता है। ऐसी दशा में श्री राम नाम संजीवनी जड़ी के सामान है जिसका सुमिरन नित्य किया जाना चाहिए। निर्गुण और सगुन को छोड़कर श्री राम नाम का जाप ही संजीवनी हैं।

राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥

राम नाम की महिमा अपार है। राम का नाम नृसिंह भगवान है और कलियुग हिरण्यकशिपु के जैसा है। इसके बीच में प्रह्लाद है जो की राम नाम के सहारे पर शत्रुओं को मारकर भी सुरक्षित रहता है। राम नाम के जाप करने वाले का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता है।

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥

राम नाम का दीपक जीभ रूपी दहलीज पर रखो उसी से उजियारा होगा। जीवन में यदि सत्य का प्राकाः प्राप्त करना है तो राम नाम के दीपक को जलाओं। बिना राम के नाम के जीवन में चारों और अँधेरा रहता है।
राम नाम के सहारे ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। 

हियं निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम|
मनहुं पुरट संपुट लसत तुलसी ललित ललाम||
नामु राम को कलपतरू कलि कल्यान निवासु|
जो सुमिरत भयो भांग तें तुलसी तुलसीदास||
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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