दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ भजन

दिवाने मन  भजन बिना दुख पैहौ भजन

दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥
पहिला जनम भूत का पै हौ सात जनम पछिताहौ।
कॉंटा पर का पानी पैहौ प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥

दूजा जनम सुवा का पैहौ बाग बसेरा लैहौ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ २॥

बाजीगर के बानर हो हौ लकडिन नाच नचैहौ।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ मॉंगे भीख न पैहौ॥ ३॥

तेली के घर बैला होहौ ऑंखिन ढॉंपि ढॅंपैहौ।
कोस पचास घरै मॉं चलिहौ बाहर होन न पैहौ॥ ४॥

पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ बिन तोलन बोझ लदैहौ।
बैठे से तो उठन न पैहौ खुरच खुरच मरि जैहौ॥ ५॥

धोबी घर गदहा होहौ कटी घास नहिं पैंहौ।
लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुॅंचैंहौ॥ ६॥

पंछिन मॉं तो कौवा होहौ करर करर गुहरैहौ।
उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहौ॥ ७॥

सत्तनाम की हेर न करिहौ मन ही मन पछितैहौ।
कहै कबीर सुनो भै साधो नरक नसेनी पैहौ॥ ८॥

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मन की बेचैनी ऐसी है, जैसे कोई पथिक बिना मंजिल भटक रहा हो। बिना भजन के जीवन सूना है, हर कदम पर दुख की छाया मँडराती है। पहला जन्म भूत का हो, तो सात जन्म तक पछतावा ही हाथ लगे, जैसे काँटों पर पड़ा पानी प्यासे को और तरसाए।

दूसरे जन्म में सुग्गा बनकर भी क्या सुख? पंख टूटे, आधा-अधूरा उड़ान, और प्राण हवा में ही छूट जाए। बाजीगर का बंदर बनकर नाचने की मजबूरी, ऊँच-नीच की ठोकरें, फिर भी भीख न मिले। तेली का बैल बन, आँखों पर पट्टी, कोसों चलकर भी कहीं न पहुँचे। ऊँट बन बोझ ढोए, न उठ सके, न रुक सके, बस खुरच-खुरच मिट जाए।

धोबी का गधा बन घास को तरसे, बोझ लादकर भी मन न भरे। कौआ बन मलिन थल में चोंच मारे, करर-करर की पुकार में जीवन बीते। सतनाम की राह न देखी, तो मन पछतावे में डूबा रहे। कबीर चेताते हैं—साधो, बिना भजन के नरक की सीढ़ी चढ़नी पड़े, जैसे दीया बिना तेल के बुझने को हो।
 
मन बिना भजन के भटकता है, जैसे प्यासा काँटों पर बूँद ढूंढकर भी मर जाता है। सात जन्मों का चक्र दुख देता है—भूत, सुवा, बानर, बैल, ऊँट, गधा, कौआ—हर रूप में माया के बंधन काटते हैं। भूत बनकर पछताना, सुवे के टूटे पंखों से अधूरी उड़ान, बानर की तरह नाचकर भीख न पाना, बैल की तरह अंधे बोझ में जकड़ना—सब मन की अज्ञानता का फल है।

गधे-सी जिंदगी लादकर थकना, कौए-सी मैली चोंच से गंदगी चुनना—यह सब बिना सतनाम के जीवन है। कबीर कहते हैं, हे साधो, भजन बिना मन नरक की सीढ़ी पर चढ़ता है। जैसे दीया बिना तेल के बुझ जाता है, वैसे ही मन बिना भक्ति के दुख में डूबता है। सच्चा भक्त वही, जो सतनाम में रमकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होता है।

दीवाने मन भजन बिना दुख पहियों कबीर भजन

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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