मैं गिरधर के घर जाऊं गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम

मैं गिरधर के घर जाऊं भजन

मैं गिरधर के घर जाऊं।
गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊं॥
रैण पड़ै तबही उठ जाऊं भोर भये उठि आऊं।
रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त।ह्यूं ताहि रिझाऊं॥
जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊं।
मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊं।
जहां बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊं।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊं॥ 
 
Main Giradhar Ke Ghar Jaoon.
Giradhar Mhaanro Saancho Preetam Dekhat Roop Lubhaoon.
Rain Padai Tabahee Uth Jaoon Bhor Bhaye Uthi Aaoon.
Rain Dina Vaake Sang Kheloon Jyoon Ta.hyoon Taahi Rijhaoon.
Jo Pahiraavai Soee Pahiroon Jo De Soee Khaoon.
Meree Unakee Preeti Puraanee Un Bin Pal Na Rahaoon.
Jahaan Baithaaven Titahee Baithoon Bechai To Bik Jaoon.
Meera Ke Prabhu Giradhar Naagar Baar Baar Bali Jaoon. 
 

मैं गिरधर के घर जाऊं

इस भजन में मीरा बाई अपने आराध्य देव कृष्ण के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त करती हैं। वह कहती हैं कि वह कृष्ण के घर जाना चाहती हैं। वह कृष्ण को अपना सच्चा प्रेमी मानती हैं और उनके रूप को देखकर मोहित हो जाती हैं। वह रात-दिन कृष्ण के साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें खुश करना चाहती हैं। वह कृष्ण को जो भी पहनाते हैं, वह पहनती हैं और जो भी खाते हैं, वह खाती हैं। वह कृष्ण के बिना एक पल भी नहीं रह सकतीं। वह कृष्ण के हर आदेश का पालन करती हैं और उन्हें अपना सब कुछ अर्पित कर देती हैं।

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