उत्तर काण्ड-19 Tulsi Das Ram Charit Mans Hindi Utter Kand in Hindi तुलसी दास राम चरित मानस उत्तर काण्ड

एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी।।
मानक रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए।।
जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।
बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।।
राम कृपाँ नासहि सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संयोगा।।
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी।।
एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं।।
जानिअ तब मन बिरुज गोसाँई। जब उर बल बिराग अधिकाई।।
सुमति छुधा बाढ़इ नित नई। बिषय आस दुर्बलता गई।।
बिमल ग्यान जल जब सो नहाई। तब रह राम भगति उर छाई।।
सिव अज सुक सनकादिक नारद। जे मुनि ब्रह्म बिचार बिसारद।।
सब कर मत खगनायक एहा। करिअ राम पद पंकज नेहा।।
श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाहीं। रघुपति भगति बिना सुख नाहीं।।
कमठ पीठ जामहिं बरु बारा। बंध्या सुत बरु काहुहि मारा।।
फूलहिं नभ बरु बहुबिधि फूला। जीव न लह सुख हरि प्रतिकूला।।
तृषा जाइ बरु मृगजल पाना। बरु जामहिं सस सीस बिषाना।।
अंधकारु बरु रबिहि नसावै। राम बिमुख न जीव सुख पावै।।
हिम ते अनल प्रगट बरु होई। बिमुख राम सुख पाव न कोई।।
दो0=बारि मथें घृत होइ बरु सिकता ते बरु तेल।



बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल।।122(क)।।
मसकहि करइ बिंरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन।
अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन।।122(ख)।।
श्लोक- विनिच्श्रितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे।
हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते।।122(ग)।।
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कहेउँ नाथ हरि चरित अनूपा। ब्यास समास स्वमति अनुरुपा।।
श्रुति सिद्धांत इहइ उरगारी। राम भजिअ सब काज बिसारी।।
प्रभु रघुपति तजि सेइअ काही। मोहि से सठ पर ममता जाही।।
तुम्ह बिग्यानरूप नहिं मोहा। नाथ कीन्हि मो पर अति छोहा।।
पूछिहुँ राम कथा अति पावनि। सुक सनकादि संभु मन भावनि।।
सत संगति दुर्लभ संसारा। निमिष दंड भरि एकउ बारा।।
देखु गरुड़ निज हृदयँ बिचारी। मैं रघुबीर भजन अधिकारी।।
सकुनाधम सब भाँति अपावन। प्रभु मोहि कीन्ह बिदित जग पावन।।
दो0-आजु धन्य मैं धन्य अति जद्यपि सब बिधि हीन।
निज जन जानि राम मोहि संत समागम दीन।।123(क)।।
नाथ जथामति भाषेउँ राखेउँ नहिं कछु गोइ।
चरित सिंधु रघुनायक थाह कि पावइ कोइ।।123।।
उत्तर कांड : रामायण का अंतिम भाग यानि उत्तरकाण्ड में कुल एक सौ ग्यारह सर्ग तथा तीन हजार चार सौ बत्तीस श्लोकों से युक्त है । उत्तरकाण्ड में रावण के पितामह, रावण के पराक्रम की चर्चा, सीता का पूर्वजन्म, देवी वेदवती को रावण का श्राप, रावण-बालि का युद्ध, सीता का त्याग, सीता का वाल्मीकि आश्रम में आगमन, लवणासुर वध, अश्वमेध यज्ञ का वर्णन भी विस्तार से किया गया है। 

उत्तरकाण्ड में ही शिव-पार्वती के बीच हुए एक सुन्दर संवाद का भी सुन्दर तरीके से वर्णन है। उत्तरकाण्ड की महिमा के बारे में बृहद्धर्मपुराण में वर्णित है की उत्तरकाण्ड का पाठ करने से आनंदमय जीवन व सुखद यात्रा के लिए किया जाता है। रामायण का सार है उत्तरकाण्ड। उत्तर कांड में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सभी लक्षणों का वर्णन किया गया है। उत्तरकाण्ड राम कथा का उपसंहार है। इसमें वर्णित है की सीता, लक्ष्मण और समस्त वानर सेना के साथ राम अयोध्या वापस पहुँचे। राम का अयोध्या में भव्य स्वागत हुआ, भरत के साथ सर्वजनों में आनन्द व्याप्त हो गया। वेदों और शिव की स्तुति के साथ राम का राज्याभिषेक समारोह हुआ। वानरों की विदाई दी गई। राम ने प्रजा को उपदेश दिया और प्रजा ने कृतज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुत्र हुये तथा रामराज्य एक आदर्श बन गया। उत्तर कांड में निम्न घटनाओं का विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। 
  • सर्वप्रथा मंगलाचरण।
  • भरत विरह तथा भरत-हनुमान मिलन, अयोध्या में आनंद और उत्सव।
  • अयोध्या में श्री राम का स्वागत, श्री राम का भरत से मिलाप।
  • श्री राम का राज्याभिषेक, वेदस्तुति और शिवस्तुति
  • अयोध्या से वानरों की और निषाद की विदाई
  • अयोध्या में रामराज्य का वर्णन
  • श्री राम को पुत्रोत्पति, अयोध्याजी की रमणीयता, सनकादिका आगमन और संवाद।
  • हनुमान्‌जी के द्वारा भरत का प्रश्न और श्री रामजी का उनको उपदेश।
  • श्री राम के द्वारा प्रजा को दिया गया उपदेश (श्री रामगीता), पुरवासियों की कृतज्ञता
  • श्री राम-वशिष्ठ संवाद, श्री रामजी का भाइयों सहित अमराई में जाना
  • नारदजी का आना और स्तुति करके ब्रह्मलोक को लौट जाना
  • शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह, गरुड़जी का काकभुशुण्डि से रामकथा और राम महिमा सुनना
  • काकभुशुण्डि का अपनी पूर्व जन्म कथा और कलि महिमा कहना
  • गुरुजी का अपमान एवं शिवजी के शाप की बात सुनना
  • रुद्राष्टक
  • गुरुजी का शिवजी से अपराध क्षमापन, शापानुग्रह और काकभुशुण्डि की आगे की कथा
  • काकभुशुण्डिजी का लोमशजी के पास जाना और शाप तथा अनुग्रह पाना
  • ज्ञान-भक्ति-निरुपण, ज्ञान-दीपक और भक्ति की महान्‌ महिमा
  • गरुड़जी के सात प्रश्न तथा काकभुशुण्डि के उत्तर
  • भजन महिमा
  • रामायण माहात्म्य, तुलसी विनय और फलस्तुति
  • रामायणजी की आरती
तुलसीदास का जीवन परिचय :
तुलसीदास ने रामचरितमानस के लिए जाने जाते हैं। तुलसीदास जी भक्ति काल के सगुण भक्ति धारा राम भक्ति खा के प्रमुख कवि थे। रामचरितमानस महाकवि तुलसीदास के द्वारा ही लिखा गया है। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास का जन्म 1532 मैं (अभुक्ता मूल नक्षत्र) हुआ था तुलसीदास का जन्म राजापुरा बांदा उत्तर प्रदेश में हुआ था और उस समय मुगलों का राज था। अकबर उस समय के शासक थे। तुलसी दास जी जन्म के समय पहला शब्द उनके मुँह से राम निकला था। 

मूल रूप से तुलसीदास सूर्यपरिन ब्राह्मण थे तुलसीदास जी के माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम शुक्ला था।बचपन से ही तुलसीदास जी का मन में राम भक्ति में लगता था। कुछ लोग तुलसीदास जी को वाल्मीकि का पुनर्जन्म मानते है तुलसीदास को भक्तों समाज सुधारक और कभी तीनों रूपों में जाना जाता है


मान्यता है की तुलसीदास जी ने बचपन में ही घर त्याग दिया और नरहरि ने उन्हें गोद ले लिया जहाँ उनके सानिध्य में शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। उनके गुरु का नाम नरहरि (नरहर्यानंद ) था जो की रामशैल के रहने वाले थे। नरहरि ने ही उनका नाम तुलसीदास रखा। अयोध्या में यज्ञोपती संस्कार के बाद उन्होंने तुलसीदास को शास्त्र और वेदों की विधिवत शिक्षा दी।
तुलसीदास बाल्य काल से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने बचपन में ही संस्कृत सीख ली और चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। तुलसीदास ने काशी में वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। तुलसीदास जी ने लगभग १५७४ के आस पास लेखन कार्य शुरू किया। उनकी बहुत सी रचनाये हैं जिनमे राम चरित मानस सर्वाधिक लोक प्रिय है। राम चरित मानस में चौपाई के माध्यम से भगवान् श्री राम की महिमा और चरित्र का विस्तार से वर्णन है।  श्री राम चरित मानस तत्व ज्ञानियों के लिए ही नहीं अपितु आम जन तक अपनी पहुंच बना पाया।

तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली (बुद्धिमती) से हुआ था और उनकी पत्नी का नाम दीन बंधु पाठक था। तुलसीदास जी के आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति मेंइनकी पत्नी का एक किस्सा है। तुलसीदास ने अपनी पत्नी के प्रेम में इस कदर खोये थे की एक रात उन्होंने नदी पार करके उनसे मिलने का मानस बनाया। उनके रत्नावली के घर पर चढ़ने के लिए सांप को रस्सी समझ कर उसके सहारे ऊपर चढ़ गए। इस पर उनकी पत्नी ने उन्हें उलाहना देते हुए समझाया की इतना प्यार यदि ईश्वर में लगाया होता तो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता। यह घटना तुलसीदास जी को अंदर तक हिला गयी और उन्होंने भक्ति को ही अपना ध्येय बना लिया, उनके ज्ञान के चक्षु खुल गए। तुलसीदास को उनकी पत्नी ने कहा “अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ! नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत। सही मायनों में तुलसीदास जी को ज्ञान प्राप्त हुआ की भक्ति मार्ग ब्रह्मचर्य का पालन करके ही किया जा सकता है।
राम चरित मानस के अलावा उनकी कृतियों में दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्णावली, विनयपत्रिका प्रमुख हैं तथा लघु रचनाओं में वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, जानकी मंगल, रामलला नहछू, पार्वती मंगल और संकट मोचनप्रमुख हैं। तुलसीदास जी की रचनाये अवधि और ब्रज भाषा में रचित हैं। तुलसीदास की मृत्यु सन् 1623 में सावन के महीने में (जुलाई या अगस्त) गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर हुआ।

रचनाएँ

  • रामललानहछू
  • वैराग्य-संदीपनी
  • बरवै रामायण
  • कलिधर्माधर्म निरुपण
  • कवित्त रामायण
  • छप्पय रामायण
  • कुंडलिया रामायण
  • छंदावली रामायण
  • सतसई
  • जानकी-मंगल
  • पार्वती-मंगल
  • श्रीकृष्ण-गीतावली
  • झूलना
  • रोला रामायण
  • राम शलाका
  • कवितावली
  • दोहावली
  • रामाज्ञाप्रश्न
  • गीतावली
  • विनयपत्रिका
  • संकट मोचन
तुलसीदास जी के काव्य के बारे में : तुलसीदास जी के काव्य की भाषा अवधि और ब्रज है। सगुन भक्ति धारा के अग्रणी कवी तुलसीदास आम बोल चाल की भाषा को ही चुना। भाषा और शब्दों का संतुलन ही तुलसीदास के काव्य की विशेषता हैं जो अपना सन्देश पहुँचाने में सफल है। तुलसीदास के समय संस्कृत का बोल बाला था और प्रमुख कृतियां उसी भाषा में लिखी जाती थी, लेकिन उन्होंने अवधि भाषा में अपने काव्य को लिखा। उनकी रचनाओं को जो जन समर्थन मिला उसका कारन आम बोल चाल की भाषा ही था। प्रचलित मुहावरे, लोकोपतियाँ और देसज शब्दों का प्रयोग भी प्रमुख विशेषता है। इसके अलावा उन्होंने अरबी और फारसी शब्दों का भी खूब प्रयोग किया जैसे गुलाम, हराम, जाहिल। इसके अलावा फारसी के शब्दों को भी प्रयोग दिखाई पड़ता है जैसे गरीब, दगाबाज, मसीत, निबाह और खजाना आदि। अलंकारों का प्रयोग भी समुचित मात्रा में किया गया है। एक विशेष बात की तुलसीदास ने अपने सन्देश पर ध्यान दिया ना की शब्दों की कलाबाजी और पांडित्य प्रदर्शन।
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