दोहे फ़िराक़ गोरखपुरी

दोहे फ़िराक़ गोरखपुरी

 
नया घाव है प्रेम का जो चमके दिन-रात
होनहार बिरवान के चिकने-चिकने पात.

यही जगत की रीत है, यही जगत की नीत
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.

जो न मिटे ऐसा नहीं कोई भी संजोग
होता आया है सदा मिलन के बाद वियोग.

जग के आँसू बन गए निज नयनों के नीर
अब तो अपनी पीर भी जैसे पराई पीर.

कहाँ कमर सीधी करे, कहाँ ठिकाना पाय
तेरा घर जो छोड़ दे, दर-दर ठोकर खाय.

जगत-धुदलके में वही चित्रकार कहलाय
कोहरे को जो काट कर अनुपम चित्र बनाय.

बन के पंछी जिस तरह भूल जाय निज नीड़
हम बालक सम खो गए, थी वो जीवन-भीड़.

याद तेरी एकान्त में यूँ छूती है विचार
जैसे लहर समीर की छुए गात सुकुमार.

मैंने छेड़ा था कहीं दुखते दिल का साज़
गूँज रही है आज तक दर्द भरी आवाज़.


दूर तीरथों में बसे, वो है कैसा राम
मन-मन्दिर की यात्रा,मूरख चारों धाम.

वेद,पुराण और शास्त्रों को मिली न उसकी थाह
मुझसे जो कुछ कह गई , इक बच्चे की निगाह
फ़िराक़ गोरखपुरी (जन्म 28 अगस्त 1896, गोरखपुर - मृत्यु 3 मार्च 1982, नई दिल्ली)
 हिंदी भाषा के एक प्रमुख कवि थे। वे रीतिकाल के अंतिम और छायावाद के पूर्ववर्ती माने जाते हैं।

फ़िराक़ गोरखपुरी का जन्म 28 अगस्त 1896 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी गोरख प्रसाद था। फ़िराक़ गोरखपुरी ने प्रारंभिक शिक्षा गोरखपुर में ही प्राप्त की। इसके बाद वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की।

फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत गद्य लेखन से की। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेखन किया। 1920 में उन्होंने अपनी पहली कविता "आशा" प्रकाशित की। फ़िराक़ गोरखपुरी की प्रमुख रचनाओं में "सरगम", "प्रतिध्वनि", "प्रतिमा", "फ़िराक़-गोरखपुरी की आत्मकथा", "फ़िराक़-गोरखपुरी की समीक्षाएँ", "फ़िराक़-गोरखपुरी की पत्रावली", "फ़िराक़-गोरखपुरी की कहानियाँ", "फ़िराक़-गोरखपुरी की नाटक", "फ़िराक़-गोरखपुरी की गज़लें" आदि शामिल हैं।

फ़िराक़ गोरखपुरी की कविताओं में श्रृंगार, विरह, प्रेम, देशभक्ति आदि विषयों का सुंदर चित्रण मिलता है। उनकी कविताएँ सरल, सुबोध और प्रवाहमयी हैं। फ़िराक़ गोरखपुरी की कविताओं में रीतिकालीन परंपरा और छायावादी नवीनता का सुंदर समन्वय मिलता है।

फ़िराक़ गोरखपुरी को उनकी काव्य-प्रतिभा के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1955 में पद्मभूषण और 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

फ़िराक़ गोरखपुरी का निधन 3 मार्च 1982 को नई दिल्ली में हुआ।

फ़िराक़ गोरखपुरी की साहित्यिक विशेषताएँ

फ़िराक़ गोरखपुरी की साहित्यिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

रसात्मकता - फ़िराक़ गोरखपुरी की कविताएँ अत्यंत रसात्मक हैं। इनमें श्रृंगार रस, विरह रस, प्रेम रस, देशभक्ति रस आदि सभी रसों का सुंदर चित्रण मिलता है।
भाषा - फ़िराक़ गोरखपुरी की भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहमयी है। इनकी कविताओं में ब्रजभाषा, खड़ी बोली और उर्दू का सुंदर मिश्रण मिलता है।
शैली - फ़िराक़ गोरखपुरी की शैली सरल, सहज और स्वाभाविक है। इनकी कविताओं में छंदविधान का भी सुंदर निर्वाह मिलता है।
फ़िराक़ गोरखपुरी का प्रभाव

फ़िराक़ गोरखपुरी की कविताओं का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इनकी कविताओं का अनुकरण अनेक कवियों ने किया है। फ़िराक़ गोरखपुरी को हिंदी साहित्य के एक महान कवि के रूप में माना जाता है।
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