स्वामी सब संसार के हो सांचे श्री भगवान

स्वामी सब संसार के हो सांचे श्री भगवान

स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान।।
स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान।
सबमें महिमा थांरी देखी कुदरत के कुरबान।।
बिप्र सुदामा को दालद खोयो बाले की पहचान।
दो मुट्ठी तंदुलकी चाबी दीन्हयों द्रव्य महान।
भारत में अर्जुन के आगे आप भया रथवान।
अर्जुन कुलका लोग निहारयां छुट गया तीर कमान।
ना कोई मारे ना कोइ मरतो, तेरो यो अग्यान।
चेतन जीव तो अजर अमर है, यो गीतारों ग्यान।।
मेरे पर प्रभु किरपा कीजौ, बांदी अपणी जान।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल में ध्यान।।


इस सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के दिव्य स्वरूप और उनकी असीम कृपा का भाव प्रकट होता है। यह अनुभूति दर्शाती है कि वह सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं—स्थावर, जंगम, अग्नि, जल, और पृथ्वी, सबमें उनकी महिमा व्याप्त है। उनके हाथों में संपूर्ण ब्रह्मांड की गति है, और उनकी लीला अद्भुत एवं चमत्कारिक है।

श्रीकृष्णजी की कृपा केवल भक्ति में लीन होने से ही प्राप्त होती है। उन्होंने सुदामा के दरिद्रता को हरकर प्रेम की सच्ची पहचान कराई, और अर्जुन के सारथी बनकर धर्म का मार्ग प्रशस्त किया। यह संकेत करता है कि जब भक्त ईश्वर में पूर्ण समर्पण करता है, तो उसे सभी सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती है।

श्रीकृष्णजी के अमृत ज्ञान से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के भ्रम से मुक्त हो जाता है। यह अनुभूति आत्मा की अमरता को दर्शाती है, जहां चेतन जीव सदा अविनाशी रहता है। भक्ति में यह भाव प्रकट होता है कि श्रीकृष्णजी के चरणों में ध्यान लगाने से आत्मा की समस्त पीड़ा समाप्त होती है, और वह शाश्वत आनंद को प्राप्त करता है।

यह भजन भक्ति, ज्ञान और दिव्यता का अद्भुत संगम है, जो व्यक्ति को सांसारिक मोह से ऊपर उठाकर ईश्वर की अनंत कृपा में लीन होने की प्रेरणा प्रदान करता है। यही वह मार्ग है, जहां आत्मा सच्ची शांति और परम सुख का अनुभव करती है। श्रीकृष्णजी का स्मरण और उनकी भक्ति ही जीवन की वास्तविक पूर्णता है।
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