जब ते मोहि नन्द नन्दन लिरिक्स

जब ते मोहि नन्द नन्दन लिरिक्स

जब ते मोहि नन्द नन्दन दृष्टि पड्यो माई
जब ते मोहि नन्दनन्दन दृष्टि पड्यो माई।
तब से परलोक लोक कछु न सुहाई।
मोहन की चन्द्रकला सीस मुकुट सोहै।
केसर को तिलक भाल तीन लोक मोहै।।
कुण्डल की अलक झलक कपोलन पर छाई।
मानो मीन सरवर तजि मकर मिलन आई।।
कुटिल तिलक भाल चितवन में टोना। 
 खजन अरू मधुप मीन भूले मृग छोना।।
सुन्दर अति नासिका सुग्रीव तीन रेखा।
नटवर प्रभु वेष धरे रूप अति बिसेखा।।
अधर बिम्ब अरूण नैन मधुर मन्द हाँसी।
दसन दमक दाड़ि द्युति अति चपला सी।।
छुद्र घण्टिका किंकनि अनूप धुन सुहाई।
गिरधर के अंग-अंग मीरा बलि जाई।।
(मोहि=मुझको, नन्दनन्दन=कृष्ण,
चन्द्रकला=चाँद जैसी मूर्ति, मीन=मछली,
सरवर=तालाब, कुटिल=टेढ़ा, टोना=जादू,
मधुप=भौंरा, मृग-छोना=हिरन का बच्चा,
नासिका=नाक, सुग्रीव=सुग्रीवा,सुन्दर गर्दन,
बसेखा=विशेष, अधर-बिम्ब=दोनों होंठ,
अरूण=लाल, दसन=दशन,दांत, दाड़िम=
अनार, द्युति=दुति,ज्योति, चपला=बिजली,
छुद्र=छोटी, धुनि=ध्वनि)
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हरि गुन गावत नाचूंगी॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥
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