पपइया म्हारो कबह रो बैर चितारयाँ लिरिक्स

पपइया म्हारो कबह रो बैर चितारयाँ लिरिक्स

पपइया म्हारो कबह रो बैर चितारयाँ
पपइया म्हारो कबह रो बैर चितारयाँ।।टेक।।
म्हा सोवूं छी अपणे भवण माँ पियु पियु करताँ पुकारयाँ।
दाध्या ऊपर लूण लगायाँ, हिवड़ो करवत सारयाँ।
ऊभाँ बेठयाँ बिरछरी डाली, बोला कंठणा सारयाँ।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, हरि चरणां चित धारयाँ।।

(चितारयाँ=याद किया, सोवूँ छी=सोती थी, दाध्या= जला हुआ, लूण=नमक, दाध्या ऊपर लूण लगायाँ= जले पर नमक लगाना,वेदना को और अधिक बढ़ाना, करवत=आरा, सारयाँ=चला दिया, कंठणा सारयाँ=खूब चिल्लाता रहा, धारयाँ=लगा दिया)
 
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पिया मोहि दरसण दीजै हो।
बेर बेर मैं टेरहूं, या किरपा कीजै हो॥
जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो।
मोर असाढ़ा कुरलहे घन चात्रा सोई हो॥
सावण में झड़ लागियो, सखि तीजां खेलै हो।
भादरवै नदियां वहै दूरी जिन मेलै हो॥
सीप स्वाति ही झलती आसोजां सोई हो।
देव काती में पूजहे मेरे तुम होई हो॥
मंगसर ठंड बहोती पड़ै मोहि बेगि सम्हालो हो।
पोस महीं पाला घणा,अबही तुम न्हालो हो॥
महा महीं बसंत पंचमी फागां सब गावै हो।
फागुण फागां खेलहैं बणराय जरावै हो।
चैत चित्त में ऊपजी दरसण तुम दीजै हो।
बैसाख बणराइ फूलवै कोमल कुरलीजै हो॥
काग उड़ावत दिन गया बूझूं पंडित जोसी हो।
मीरा बिरहण व्याकुली दरसण कद होसी हो॥

पिहु की बोलि न बोल पपैय्या॥ध्रु०॥
तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥ पपैय्या०॥१॥
तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥ पपैय्या०॥२॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। कामनी करत कीलोल॥ पपैय्या०॥३॥

प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय॥
जल बिन कमल, चंद बिन रजनी। ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी॥
आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन, बिरह कलेजो खाय॥
दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूं कथत न आवै बैना॥
कहा कहूं कछु कहत न आवै, मिलकर तपत बुझाय॥
क्यूं तरसावो अंतरजामी, आय मिलो किरपाकर स्वामी॥
मीरां दासी जनम जनम की, पड़ी तुम्हारे पाय॥ 

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