साखी चरणदास Sakhi Charan Das Hindi
साखी चरणदास
सतगुरु से मांगूं यही, मोहि गरीबी देहु।
दूर बडप्पन कीजिए, नान्हा ही कर लेहु॥
बचन लगा गुरुदेव का, छुटे राज के ताज।
हीरा मोती नारि सुत सजन गेह गज बाज॥
प्रभु अपने सुख सूं कहेव, साधू मेरी देह।
उनके चरनन की मुझे प्यारी लागै खेह॥
प्रेमी को रिनिया रं यही हमारो सूल।
चारि मुक्ति दइ ब्याज मैं, दे न सकूं अब मूल॥
भक्त हमारो पग धरै, तहां धरूं मैं हाथ।
लारे लागो ही फिरूं, कबं न छोडूं साथ॥
प्रिथवी पावन होत है, सब ही तीरथ आद।
चरनदास हरि यौं कहैं, चरन धरैं जहं साध॥
मन मारे तन बस करै, साधै सकल सरीर।
फिकर फारि कफनी करै, ताको नाम फकीर॥
जग माहीं ऐसे रहो, ज्यों जिव्हा मुख माहिं।
घीव घना भच्छन करै, तो भी चिकनी नाहिं॥
चरनदास यों कहत हैं, सुनियो संत सुजान।
मुक्तिमूल आधीनता, नरक मूल अभिमान॥
सदगुरु शब्दी लागिया नावक का सा तीर।
कसकत है निकसत नहीं, होत प्रेम की पीर॥
दूर बडप्पन कीजिए, नान्हा ही कर लेहु॥
बचन लगा गुरुदेव का, छुटे राज के ताज।
हीरा मोती नारि सुत सजन गेह गज बाज॥
प्रभु अपने सुख सूं कहेव, साधू मेरी देह।
उनके चरनन की मुझे प्यारी लागै खेह॥
प्रेमी को रिनिया रं यही हमारो सूल।
चारि मुक्ति दइ ब्याज मैं, दे न सकूं अब मूल॥
भक्त हमारो पग धरै, तहां धरूं मैं हाथ।
लारे लागो ही फिरूं, कबं न छोडूं साथ॥
प्रिथवी पावन होत है, सब ही तीरथ आद।
चरनदास हरि यौं कहैं, चरन धरैं जहं साध॥
मन मारे तन बस करै, साधै सकल सरीर।
फिकर फारि कफनी करै, ताको नाम फकीर॥
जग माहीं ऐसे रहो, ज्यों जिव्हा मुख माहिं।
घीव घना भच्छन करै, तो भी चिकनी नाहिं॥
चरनदास यों कहत हैं, सुनियो संत सुजान।
मुक्तिमूल आधीनता, नरक मूल अभिमान॥
सदगुरु शब्दी लागिया नावक का सा तीर।
कसकत है निकसत नहीं, होत प्रेम की पीर॥
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