श्री बाँकेबिहारी की आरती

श्री बाँकेबिहारी की आरती

श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ।
कुन्जबिहारी तेरी आरती गाऊँ।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे।
प्यारी बंशी मेरो मन मोहे।
देखि छवि बलिहारी जाऊँ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

चरणों से निकली गंगा प्यारी।
जिसने सारी दुनिया तारी।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

दास अनाथ के नाथ आप हो।
दुःख सुख जीवन प्यारे साथ हो।
हरि चरणों में शीश नवाऊँ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

श्री हरि दास के प्यारे तुम हो।
मेरे मोहन जीवन धन हो।
देखि युगल छवि बलि-बलि जाऊँ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ।
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


 
सुंदर भजन में श्री बाँकेबिहारी के प्रति अटूट भक्ति और प्रेम की भावना प्रदर्शित की गई है। यह आरती श्रीकृष्णजी के दिव्य रूप और उनकी अनंत कृपा की महिमा का गान करती है। मोर मुकुट और मधुर बंसी से सुसज्जित स्वरूप को देखकर भक्त भाव विभोर हो जाता है। उनकी छवि केवल नेत्रों से नहीं, बल्कि हृदय से अनुभव की जाती है।

श्रीकृष्णजी की चरणधारा से ही संसार को पवित्रता प्राप्त होती है। यह भाव दर्शाता है कि उनके चरणों में स्थान पाने से जीवन धन्य हो जाता है। उनका सान्निध्य आत्मा को सुख और शांति प्रदान करता है।

वे अनाथों के नाथ हैं, जो हर भक्त की पुकार सुनते हैं। जीवन में जब भी कोई कठिनाई आती है, तो उनकी कृपा ही आश्रय देती है। हर दुःख और सुख में उनकी उपस्थिति एक अटूट विश्वास का संचार करती है।

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