सूरदास जी के पद हिंदी में Sordas Ke Pad Hindi Me

सूरदास जी के पद हिंदी में Sordas Ke Pad Hindi Me

सूरदास जी के पद हिंदी में Sordas Ke Pad Hindi Me

 
आछो गात अकारथ गार्‌यो।
करी न प्रीति कमललोचन सों, जनम जनम ज्यों हार्‌यो॥
निसदिन विषय बिलासिन बिलसत फूटि गईं तुअ चार्‌यो।
अब लाग्यो पछितान पाय दुख दीन दई कौ मार्‌यो॥
कामी कृपन कुचील कुदरसन, को न कृपा करि तार्‌यो।
तातें कहत दयालु देव पुनि, काहै सूर बिसार्‌यो॥

ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे।
तुमहिं देखि तन अधिक तपत है, अरु नयननि के तारे॥
अपनो जोग सैंति किन राखत, इहां देत कत डारे।
तुम्हरे हित अपने मुख करिहैं, मीठे तें नहिं खारे॥
हम गिरिधर के नाम गुननि बस, और काहि उर धारे।
सूरदास, हम सबै एकमत तुम सब खोटे कारे॥
 
 अजहूँ चेति अचेत
सबै दिन गए विषय के हेत।
तीनौं पन ऐसैं हीं खोए, केश भए सिर सेत॥
आँखिनि अंध, स्त्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत।
गंगा-जल तजि पियत कूप-जल, हरि-तजि पूजत प्रेत॥
मन-बच-क्रम जौ भजै स्याम कौं, चारि पदारथ देत।
ऐसौ प्रभू छाँडि़ क्यौं भटकै, अजहूँ चेति अचेत॥
राम नाम बिनु क्यौं छूटौगे, चंद गहैं ज्यौं केत।
सूरदास कछु खरच न लागत, राम नाम मुख लेत॥

आनि सँजोग परै
भावी काहू सौं न टरै।
कहँ वह राहु, कहाँ वे रबि-ससि, आनि सँजोग परै॥
मुनि वसिष्ट पंडित अति ज्ञानी, रचि-पचि लगन धरै।
तात-मरन, सिय हरन, राम बन बपु धरि बिपति भरै॥
रावन जीति कोटि तैंतीसा, त्रिभुवन-राज करै।
मृत्युहि बाँधि कूप मैं राखै, भावी बस सो मरै॥
अरजुन के हरि हुते सारथी, सोऊ बन निकरै।
द्रुपद-सुता कौ राजसभा, दुस्सासन चीर हरै॥
हरीचंद-सौ को जग दाता, सो घर नीच भरै।
जो गृह छाँडि़ देस बहु धावै, तऊ वह संग फिरै॥
भावी कैं बस तीन लोक हैं, सुर नर देह धरै।
सूरदास प्रभु रची सु हैहै, को करि सोच मरै॥

आजु हौं एक-एक करि टरिहौं।
के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं।
हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं।
अब हौं उघरि नच्यो चाहत हौं, तुम्हे बिरद बिन करिहौं।
कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि हीरा।
सूर पतित तबहीं उठिहै, प्रभु, जब हँसि दैहौ बीरा।

ऊधौ,तुम हो अति बड़भागी
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी
पुरइनि पात रहत जल भीतर,ता रस देह न दागी
ज्यों जल मांह तेल की गागरि,बूँद न ताकौं लागी
प्रीति-नदी में पाँव न बोरयौ,दृष्टि न रूप परागी
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी

ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी ऐसी भक्ति ।
सरवस त्याग मगन होय नाचे जनम करम गुन गावे ॥ध्रु०॥
कथनी कथे निरंतर मेरी चरन कमल चित लावे ॥
मुख मुरली नयन जलधारा करसे ताल बजावे ॥१॥
जहां जहां चरन देत जन मेरो सकल तिरथ चली आवे ।
उनके पदरज अंग लगावे कोटी जनम सुख पावे ॥२॥
उन मुरति मेरे हृदय बसत है मोरी सूरत लगावे ।
बलि बलि जाऊं श्रीमुख बानी सूरदास बलि जावे ॥३॥

ऐसे संतनकी सेवा । कर मन ऐसे संतनकी सेवा ॥ध्रु०॥
शील संतोख सदा उर जिनके । नाम रामको लेवा ॥१॥
आन भरोसो हृदय नहि जिनके । भजन निरंजन देवा ॥२॥
जीन मुक्त फिरे जगमाही । ज्यु नारद मुनी देवा ॥३॥
जिनके चरन कमलकूं इच्छत । प्रयाग जमुना रेवा ॥४॥
सूरदास कर उनकी संग । मिले निरंजन देवा ॥५॥
 
 अद्भुत एक अनुपम बाग ॥ध्रु०॥
जुगल कमलपर गजवर क्रीडत तापर सिंह करत अनुराग ॥१॥
हरिपर सरवर गिरीवर गिरपर फुले कुंज पराग ॥२॥
रुचित कपोर बसत ताउपर अमृत फल ढाल ॥३॥
फलवर पुहूप पुहुपपर पलव तापर सुक पिक मृगमद काग ॥४॥
खंजन धनुक चंद्रमा राजत ताउपर एक मनीधर नाग ॥५॥
अंग अंग प्रती वोरे वोरे छबि उपमा ताको करत न त्याग ॥६॥
सूरदास प्रभु पिवहूं सुधारस मानो अधरनिके बड भाग ॥७॥

अति सूख सुरत किये ललना संग जात समद मन्मथ सर जोरे ।
राती उनीदे अलसात मरालगती गोकुल चपल रहतकछु थोरे ।
मनहू कमलके को सते प्रीतम ढुंडन रहत छपी रीपु दल दोरे ।
सजल कोप प्रीतमै सुशोभियत संगम छबि तोरपर ढोरे ।
मनु भारते भवरमीन शिशु जात तरल चितवन चित चोरे ।
वरनीत जाय कहालो वरनी प्रेम जलद बेलावल ओरे ।
सूरदास सो कोन प्रिया जिनी हरीके सकल अंग बल तोरे ॥
 
सूरदास हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि थे। उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा के पास रुनकता नामक गाँव में हुआ था। वे बचपन से ही अंधे थे, लेकिन उनकी वाणी में अद्भुत माधुर्य था। सूरदास के पदों में वात्सल्य रस की प्रधानता है। उन्होंने भगवान कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण वर्णन किया है। उनके पदों में कृष्ण की माँ यशोदा, राधा और अन्य गोपियों के प्रेम का भी सुंदर वर्णन मिलता है। सूरदास की रचनाओं ने हिंदी साहित्य को अमूल्य धरोहर प्रदान की है। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध और सुंदर बनाया है। सूरदास हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि थे। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को अमूल्य धरोहर प्रदान की है। सूरदास की रचनाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

भक्ति भाव - सूरदास की रचनाओं में भक्ति भाव की प्रधानता है। वे भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक थे और उनकी रचनाओं में उनकी भक्ति का अद्भुत भाव व्यक्त हुआ है।
वात्सल्य रस - सूरदास की रचनाओं में वात्सल्य रस की प्रधानता है। उन्होंने भगवान कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण वर्णन किया है।
सरलता और सहजता - सूरदास की रचनाएँ सरल और सहज भाषा में लिखी गई हैं। उनकी रचनाओं को पढ़ने या सुनने से मन में एक अद्भुत आनंद और शांति का अनुभव होता है।
प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन - सूरदास की रचनाओं में प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत वर्णन मिलता है। उन्होंने भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते समय प्राकृतिक सौंदर्य को भी बड़ी कुशलता से चित्रित किया है।

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