ये धरती अम्बर सारा श्री कालेश्वर
ये धरती अम्बर सारा श्री कालेश्वर ने संवारा
ये धरती अम्बर सारा श्री कालेश्वर ने सवारा,अब हम ये कहे देवा से के तेरे सिवा कोई नहीं,
तर जाता है जीवन उसका मिलता बाबा का ज सहारा,
अब हम ये कहे देवा से की तेरे सिवा कोई नहीं,
तेरे मंदिर में घंटा वाजे शीश ऊपर छतर है साजे,
तेरा संधुरी रंग ये बाबा सारे भक्तो को खूब भाये,
सबके पालक है तू महा दानी तेरी महिमा की लाखो कहानी,
मेरे दाता तू साथ निभाता इस जगत में न तेरा कोई सानी,
क्या पर्वत क्या समंदर सब तेरी दया पे निर्भर,
अब हम ये कहे देवा से के तेरे सिवा कोई नहीं,
हे बाबा मिलने तुजे सब तेरे दरबार चले,
तेरी करुणापा कर हम सब के घर बार चले,
कल क्या होगा हम न जाने हम तो बस इतना माने,
बिन तेरी दया के बाबा सब अपने लगे बेगाने,
नैनो में वासा लेना चरणों में जगह देना हमको,
अब हम ये कहे देवा से के तेरे सिवा कोई नहीं,
हमे बाबा नहीं भूलना छोड़ दूर हमें ना जाना,
भूल भक्तो की नादानियाँ सदा कल को बीच बसना,
जब जीवन की ये शाम ढले हमें तेरी कमी नहीं
खले उस दिन इतना करना,
मंतर मुकति का मोक्ष मिले,
जीवन अब न सफल जो जाये हम सब भव सागर तर जाये,
अब हम ये कहे देवा से के तेरे सिवा कोई नहीं,
भगवान् शिव समस्त श्रस्टि के पालनहार हैं और अपने भक्तों पर सदैव ही दया करते हैं। भगवान् शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है ऐसा इसलिए क्यों की जब देवताओं और असुरों में समुद्र मंथन , जो की दूध के सागर , क्षीर सागर में हुया था, के दौरान अमृत को लेकर झगड़ा हो रहा था तब समुद्र में से "कालकूट" जहर निकला जिसके प्रभाव से श्रष्टि की दासों दिशाएँ जलने लगी. उसके प्रभाव से सुर असुर ऋषि मुनि सभी जलने लगे।
उस समय भगवान् शिव ने विष्णु जी को याद करके विष को अपने शंख में भरकर पी लिया। भगवान् विष्णु जी ने विष को शिव जी के कंठ में ही रोक दिया लेकिन विष के प्रभाव से शिव जी के कंठ नीला हो गया और इसी कारन भगवान् शिव जी को नीलकंठ के नाम से भी पुकारा जाता है।
सुंदर भजन में श्री कालेश्वर के प्रति अनन्य भक्ति और उनकी असीम कृपा का उद्गार झलकता है, जो भक्त के मन को विश्वास और शांति से भर देता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि श्री कालेश्वर ही इस सृष्टि के रचयिता और पालक हैं, जिनकी शरण में जीवन का हर संकट पार हो जाता है।
धरती और अम्बर को संवारने वाले श्री कालेश्वर की महिमा अनंत है, और उनकी कृपा से ही भक्त का जीवन तार जाता है। यह उद्गार मन को यह विश्वास दिलाता है कि उनके सहारे के बिना कोई और आश्रय नहीं। जैसे कोई थका हुआ पथिक किसी विशाल वृक्ष की छाँव में सुकून पाता है, वैसे ही भक्त उनके दरबार में हर दुख से मुक्ति पाता है।
मंदिर में घंटों की ध्वनि, संधुरी रंग और छत्र की शोभा भक्त के हृदय में भक्ति की लहरें जगाती है। यह भाव उस सत्य को दर्शाता है कि श्री कालेश्वर की महिमा हर भक्त के लिए प्रिय और प्रेरक है। उनकी दया और दानशीलता की कहानियाँ अनगिनत हैं, जो यह सिखाती हैं कि वे हर प्राणी के सच्चे पालक हैं। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु के मार्गदर्शन से उन्नति करता है, वैसे ही भक्त उनकी कृपा से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है।
सुंदर भजन में श्री कालेश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा और उनकी अनंत कृपा का उद्गार प्रकट होता है, जो भक्त के मन को अटल विश्वास और शांति से भर देता है। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि श्री कालेश्वर ही सृष्टि के रचयिता और हर प्राणी के पालक हैं, जिनकी शरण में जीवन का हर संकट पार हो जाता है।
इस धरती और अम्बर को संवारने वाले श्री कालेश्वर की महिमा अनगिनत है। उनकी कृपा से भक्त का जीवन तार जाता है, जैसे कोई नाविक तूफान में किनारे का सहारा पाता है। यह उद्गार मन को यह विश्वास दिलाता है कि उनके बिना कोई और आश्रय नहीं, और उनकी दया ही जीवन का आधार है।
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Author - Saroj Jangir
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