जो तु चाहे मुक्त को, छोड़े दे सब आस ।
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास ॥
साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय ।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय ॥
अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान ।
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ॥
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह ।
आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह ॥
लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत ।
लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत ॥
सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह ।
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ॥
भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग ।
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग ॥
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव ।
कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव ॥
प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाय ।
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय ॥
कांचे भाडें से रहे, ज्यों कुम्हार का देह ।
भीतर से रक्षा करे, बाहर चोई देह ॥
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास ॥
साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय ।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय ॥
अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान ।
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ॥
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह ।
आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह ॥
लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत ।
लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत ॥
सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह ।
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ॥
भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग ।
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग ॥
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव ।
कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव ॥
प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाय ।
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय ॥
कांचे भाडें से रहे, ज्यों कुम्हार का देह ।
भीतर से रक्षा करे, बाहर चोई देह ॥
जो तु चाहे मुक्त को, छोड़े दे सब आस।
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास॥
यदि मुक्ति चाहिए, तो सभी इच्छाओं को छोड़ दो और मुक्त अवस्था को अपना लो।
साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय॥
सत्य ही ईश्वर के निकट है। चाहे कोई बाल रखे या मुंडन कराए, सत्य प्रिय है।
अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान।
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान॥
हर कोई अपनी मान्यताओं में बंधा है। भगवान की महिमा इतनी असीम है कि उसे समझना मुश्किल है।
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह।
आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह॥
सच्चा योद्धा युद्ध के मैदान को नहीं छोड़ता, और जीवन-मरण की चिंता नहीं करता।
लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत।
लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत॥
पुराने रास्ते को छोड़ने वाले कायर होते हैं, जबकि सच्चे वीर और श्रेष्ठ वही हैं जो सही मार्ग पर टिके रहते हैं।
सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह।
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह॥
संतों का जीवन आईना है। जो ईश्वर को देखना चाहता है, उन्हें संतों में देख सकता है।
भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग।
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग॥
भूखा व्यक्ति दूसरों को क्या उपदेश देगा? सही योगी वही है जो अपने दोषों को मिटाकर खुद को संपूर्ण बनाता है।
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव।
कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव॥
गुरु के बिना भगवान की सेवा अधूरी है। कबीर कहते हैं, गुरु के अभाव में शुकदेव को भी बैकुंठ से लौटा दिया गया।
प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाय।
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय॥
ईश्वर को पाने के लिए सिर्फ प्रेमभाव चाहिए, चाहे कोई साधु का वेश धारण करे या गृहस्थ में रहे।
कांचे भाडें से रहे, ज्यों कुम्हार का देह।
भीतर से रक्षा करे, बाहर चोई देह॥
कुम्हार का घड़ा बाहर से तो कठोर होता है, लेकिन अंदर से नरम। इंसान को भी ऐसा ही होना चाहिए।
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास॥
यदि मुक्ति चाहिए, तो सभी इच्छाओं को छोड़ दो और मुक्त अवस्था को अपना लो।
साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय॥
सत्य ही ईश्वर के निकट है। चाहे कोई बाल रखे या मुंडन कराए, सत्य प्रिय है।
अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान।
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान॥
हर कोई अपनी मान्यताओं में बंधा है। भगवान की महिमा इतनी असीम है कि उसे समझना मुश्किल है।
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह।
आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह॥
सच्चा योद्धा युद्ध के मैदान को नहीं छोड़ता, और जीवन-मरण की चिंता नहीं करता।
लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत।
लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत॥
पुराने रास्ते को छोड़ने वाले कायर होते हैं, जबकि सच्चे वीर और श्रेष्ठ वही हैं जो सही मार्ग पर टिके रहते हैं।
सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह।
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह॥
संतों का जीवन आईना है। जो ईश्वर को देखना चाहता है, उन्हें संतों में देख सकता है।
भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग।
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग॥
भूखा व्यक्ति दूसरों को क्या उपदेश देगा? सही योगी वही है जो अपने दोषों को मिटाकर खुद को संपूर्ण बनाता है।
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव।
कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव॥
गुरु के बिना भगवान की सेवा अधूरी है। कबीर कहते हैं, गुरु के अभाव में शुकदेव को भी बैकुंठ से लौटा दिया गया।
प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाय।
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय॥
ईश्वर को पाने के लिए सिर्फ प्रेमभाव चाहिए, चाहे कोई साधु का वेश धारण करे या गृहस्थ में रहे।
कांचे भाडें से रहे, ज्यों कुम्हार का देह।
भीतर से रक्षा करे, बाहर चोई देह॥
कुम्हार का घड़ा बाहर से तो कठोर होता है, लेकिन अंदर से नरम। इंसान को भी ऐसा ही होना चाहिए।
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