इस भजन का मूल सन्देश यह है कि हमें अपने जीवन का सदुपयोग करना चाहिए और ईश्वर की भक्ति में अपना समय बिताना चाहिए। यह दुनिया अस्थायी है और हम यहां हमेशा के लिए नहीं रहेंगे। हमें अपने जीवन का उपयोग दूसरों की मदद करने और सत्य की तलाश करने के लिए करना चाहिए।
साई की नगरीया जाना है रे बन्दे लिरिक्स
साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जाना है रे बंदे साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जग नाहीं अपना, बेग़ाना है रे बंदे जाना है रे बंदे जाना, जाना है रे बंदे जाना, साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जाना है रे बंदे।
पत्ता टूटा डारि से, ले गयी पवन उड़ाय, अब के बिछुड़े ना मिलें, दूर पड़ेंगे जाय, माली आवत देखी के, कलियन करी पुकार, फूले फूले चुन लिए काली हमारी बार। साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जाना है रे बंदे।
चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय, दोई पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोय, लूट सके तो लूट ले, सत्य नाम की लूट, पाछे फिर पछतायेगा, प्राण जाहीं जब छूट, साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जाना है रे बंदे।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय, इक दिन ऐसा होयगा, मैं रौंदूंगी तोय, लकड़ी कहे लुहार से, तू मत जारह मोहिं, एक दिन ऐसा हो यगा, मैं जारुंगी तोहि, साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जाना है रे बंदे।
बंदे तू कर बंदगी, तौ पावै दीदार, अवसर मानुस जन्म का, बहुरि ना बारंबार, कबीरा सोया क्या करै, जाग ना जपै मुरारि, एक दिना है सोवना, लंबे पाँव पसारि, साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जाना है रे बंदे।
कबीर एक निराकार, सर्वव्यापी और सर्वव्यापी ईश्वर में विश्वास करते थे।
कबीर ने हठधर्मिता और धार्मिक रूढ़िवादिता को खारिज कर दिया।
उन्होंने आंतरिक शुद्धता, करुणा और विनम्रता के महत्व पर जोर दिया।
कबीर का मानना था कि ईश्वर को सीधे भक्ति, प्रेम और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है।
उन्होंने ईश्वर, प्रेम और आध्यात्मिकता के बारे में कई प्रसिद्ध पंक्तियाँ और कविताएँ लिखीं।
कबीर का दर्शन विभिन्न धर्मों और जातियों के प्रति अपनी सार्वभौमिक अपील और सहिष्णुता के लिए जाना जाता है।
ईश्वर पर कबीर का विचार परमात्मा की एकता और सार्वभौमिकता पर जोर देता है। उनका मानना था कि ईश्वर किसी विशेष धर्म या संप्रदाय से परे है और ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को केवल व्यक्तिगत अनुभव और बोध के माध्यम से ही समझा जा सकता है।
कबीर के अनुसार, ईश्वर प्रत्येक जीव में और सृष्टि के सभी पहलुओं में मौजूद है। उनका मानना था कि ईश्वर की पूजा करने का सच्चा तरीका भक्ति और प्रेम के माध्यम से है, और मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर के साथ विलय करना है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर का वास्तविक स्वरूप प्रेम है और यह प्रेम और भक्ति के माध्यम से है कि व्यक्ति मुक्ति प्राप्त कर सकता है और ईश्वर के साथ विलीन हो सकता है। संक्षेप में, ईश्वर पर कबीर का विचार ईश्वर की सार्वभौमिकता और ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को समझने में व्यक्तिगत अनुभव और प्राप्ति के महत्व पर जोर देता है। जीवन के बाद क्या होगा इस पर कबीर की शिक्षाएँ आत्मा की अवधारणा और मुक्ति या परमात्मा के साथ विलय के अंतिम लक्ष्य के आसपास केंद्रित हैं। कबीर के अनुसार, आत्मा अजर अमर है, और मृत्यु के बाद, वह दूसरे लोक में जाती है, जो उसके कर्मों और कर्मों से निर्धारित होती है। उनका मानना था कि जन्म और मृत्यु के चक्र को तोड़कर, अपने वास्तविक स्वरूप को महसूस करके और परमात्मा के साथ विलय करके आत्मा मुक्ति प्राप्त कर सकती है।
साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे जाना है रे बंदे साई की नगरीया, जाना है रे बन्दे