मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे लिरिक्स Moko Kaha Dhundhe Re Bande Lyrics

इस भजन का मूल सन्देश यह है कि ईश्वर को बाहर नहीं, बल्कि अपने भीतर ही खोजना चाहिए। हमें अपने विश्वास पर काम करना चाहिए और अपने भीतर ईश्वर की खोज करनी चाहिए।

कबीर दास कहते हैं कि ईश्वर को मंदिरों, मस्जिदों, तीर्थस्थलों, या किसी अन्य बाहरी स्थान पर नहीं खोजना चाहिए। वह हमारे भीतर ही है। वह हमारे हर सांस में मौजूद है। अगर हम ईश्वर को खोजना चाहते हैं, तो हमें अपने भीतर झांकना चाहिए। हमें अपने विश्वास पर काम करना चाहिए।

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे लिरिक्स Moko Kaha Dhundhe Re Bande Lyrics, Moko Kaha Dhundhe Main To Tere Paas Me

 
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे लिरिक्स Moko Kaha Dhundhe Re Bande Lyrics

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास मैं,
ना तीरथ में ना मूरत में,
ना एकांत निवास में,
ना मंदिर में ना मस्ज़िद में,
ना काबे कैलाश में,
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास में।

ना मैं जप में ना मैं तप में,
ना मैं व्रत उपास में,
ना मैं क्रिया क्रम में रहता,
ना ही योग संन्यास में,
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास में।

नहीं प्राण में नहीं पिंड में
ना ब्रह्माण्ड आकाश में,
ना मैं त्रिकुटी भवर में,
सब स्वांसो के स्वास में,
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास में।

खोजी होए तुरत मिल जाऊं
एक पल की ही तलाश में,
कहे कबीर सुनो भाई साधो
मैं तो हूँ विशवास में,
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास में।

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास मैं,
ना तीरथ में ना मूरत में,
ना एकांत निवास में,
ना मंदिर में ना मस्ज़िद में,
ना काबे कैलाश में,
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे,
मैं तो तेरे पास में।

"मोको कहां ढूंढ़े रे बंदे" मध्यकालीन भारतीय रहस्यवादी और कवि कबीर साहेब द्वारा रचित एक लोकप्रिय भजन या भक्ति गीत है। गीत सत्य की खोज और जीवन के अर्थ पर एक प्रतिबिंब है।
गीत "मोको कहां ढूंढ़े रे बंदे" का अनुवाद इस तरह किया जा सकता है "तुम मुझे कहां खोजते हो, मेरे दोस्त?" मैं तो तुम्हारे ही पास में हूँ। कबीर श्रोता को संबोधित कर रहे हैं और उन्हें परमात्मा या परम सत्य की अपनी खोज पर विचार करने के लिए कह रहे हैं। कबीर साहेब आगे कहते हैं की वे कहां खोज रहे हैं और सुझाव देते हैं कि वे बाहरी चीजों में या भौतिक खोज के माध्यम से सत्य नहीं पाएंगे। कबीर आगे सुझाव देते हैं कि सत्य को अपने भीतर खोजना है। वह श्रोता को भीतर देखने और भीतर निहित परमात्मा को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करता है। वह आत्म-जागरूकता पैदा करने और सभी चीजों की एकता को पहचानने के महत्व पर जोर देता है। उनका सुझाव है कि मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य इस सत्य को महसूस करना और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करना है।


मुझे कहाँ ढूंढे रे बन्दे ,में तो तेरे पास रे || Mujhe Kahan Dunde Re Bande || Kabir saheb bhajan


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