राहु स्त्रोतम राहु गृह के दोष को शांत करने का एक अनूठा जाप मंत्र है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार राहु स्त्रोतम के जाप से राहु देवता प्रशन्न होते है और मनवांछित कामना के पूर्ण होने का आशीर्वाद देते हैं। हिन्दू ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रहों में से राहु आखिरी एक गृह है। यह गृह लम्बे समय अंतराल के बाद अपनी स्थिति में परिवर्तन करता है। कुंडली में राहु की स्थिति के अनुसार राहु शुभ और अशुभ परिणाम डाल सकता है।
नौ ग्रहों में सबसे अधिक नकारात्मक फल देने वाला असुर गृह माना जाता है राहु को। राहु एक ऐसा गृह है जो दूसरों को कष्ट देकर उनके बनते कार्य बिगाड़कर प्रशन्न होता है। यदि राहु नीच स्थान पर बैठा हो तो किसी को समूल नष्ट करने की ताकत रखता है। बात राहु के सकारात्मक प्रभाव की करे तो व्यक्ति राजनैतिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है, उसका व्यक्तित्वा प्रभावशाली होता है और अन्य लोग उसकी बातों का अनुसरण करते हैं।
समाज में प्रशिधि प्राप्त होती है और सामाजिक कद बढ़ता है। राहु के दोष को दूर हटाने के लिए लिए राहु स्त्रोतम का पाठ अवश्य करे साथ जी "हनुमान चालीसा" का पाठ करे। अष्ट धातु का कड़ा और नीले रंग के वस्त्र पहनने चहिये साथ ही सफ़ेद चंदन टीका लगाना लाभदायक होता है। राहु दैत्य जाति के शुद्र जाति में देवी सिंहिका माता एवं पिता प्रेषित के घर जन्म लिया था। राहु को अमृतपान करने के कारण अमृतत्व की प्राप्ति हुई थी। लेकिन अमृत की बूंदों को प्राप्त करने के समय विष्णु जी के सुदर्शन चक्र के प्रहार से दो भागों में राहू बंट गए थे।
सिर का भाग राहु ग्रह के रूप में अमर हुआ। राहु अशुभ ग्रहों जैसे मंगल, शनि आदि का उत्प्रेरक होता है और शनि के साथ बैठकर शनि के प्रभाव को भी दोगुना कर देता है।
राहु स्तोत्रम के लाभ Rahu Stotra Ke Laabh/Fayde
राहु स्त्रोतम के जाप से राहु दोष दूर होता है। राहु स्त्रोत के जाप से राहु अन्तर्दशा शांत होती है और मनवांछित परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। वस्तुतः राहु जिस गृह के साथ बैठा होता है उसकी शक्ति अपने में ले लेता है। साथ में जो भी गृह होता है उसके सुभ फल लेकर राहु, ग्रहण की दशा का निर्माण करता है। राहु स्त्रोतम का पाठ सांय के समय स्नान करके राहु देव की मूर्ति के सामने बैठकर जाना लाभदायी होता है।
राहु कवचं स्तोत्रं अर्थ सहित एवं लाभ (Rahu Kavacham Stotra with meaning and benefits):
राहु दैत्य जाति के शुद्र जाति में जन्म लिया था, उनकी माता देवी सिंहिका और पिता प्रेषित थे। राहु ने देवों के साथ मिलकर अमृत पीने की कोशिश की थी, परंतु उनकी पारश्रमिक पूर्वक उद्यत्तता ने अमृत की प्राप्ति की थी। हालांकि उन्होंने अमृत पीने के दौरान भगवान विष्णु के चक्र के प्रहार से उनका शरीर दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया था। राहु का सिर अमर हो गया और वह ग्रह के रूप में बन गए। सूर्य और चंद्रमा ने उनके व्यक्तिगतता को बताने से इनकी शत्रुता बढ़ गई, जिससे ग्रहण की प्रक्रिया के दौरान राहु का दुष्प्रभाव पैदा होता है।
राहु कवचं स्तोत्रं के पाठ से यह माना जाता है कि यह अनुष्ठान करने से निम्नलिखित लाभ हैं:
राहु ग्रह के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
जातक की कुंडली में राहु की दशा या अन्तरदशा के समय इसका पाठ करने से सांसारिक संघर्षों का समाधान संभव होता है।
यह स्तोत्र जातक को मानसिक शांति और आत्म-समर्पण की प्राप्ति में मदद करता है।
भय, आतंक, और अवांछित दुखों को दूर करने में सहायक होता है।
यह स्तोत्र जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
राहु स्तोत्र: लाभ, अर्थ और पाठ विधि
राहु स्तोत्र एक प्रभावशाली स्तोत्र है, जो राहु के नकारात्मक प्रभावों से बचाने और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने के लिए जाना जाता है। राहु, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक छाया ग्रह है, जो जीवन में कठिनाइयाँ, बाधाएँ और मानसिक अशांति ला सकता है। इस स्तोत्र का पाठ राहु के अशुभ प्रभावों को कम करने और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने में सहायक है। आइए, राहु स्तोत्र को समझें और इसके पाठ के लाभों के बारे में जानें।
राहु स्तोत्र (संस्कृत और अर्थ) श्लोक 1: राहुर्दानव मन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दनः । अर्धकायः सदाक्रोधी चन्द्रादित्यविमर्दनः ॥
अर्थ: राहु को दानवों का मंत्री कहा गया है और वह सिंहिका (उनकी माता) का प्रिय पुत्र है। राहु का शरीर आधा है और वह हमेशा क्रोधित रहता है। चंद्रमा और सूर्य पर ग्रहण डालने की शक्ति राहु में है।
अर्थ: राहु रौद्र स्वभाव का है और भगवान रुद्र (शिव) को प्रिय है। वह ग्रहों का राजा है और अमृत पान कर अमर हुआ है। राहु का चंद्रमा और सूर्य को ग्रहण करने का स्वभाव उसे और भी विशेष बनाता है।
अर्थ: जो व्यक्ति राहु स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी सभी पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं। उसे स्वस्थ शरीर, उत्तम संतान, धन, धान्य और पशुधन की प्राप्ति होती है।
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