पितृ दोष को शांत करने के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ करें और सभी परेशानियों का समाधान करें। श्राद्ध के दिन इस स्त्रोत का पाठ करना लाभकारी होता है।
पितृ स्तोत्र वह पवित्र स्तोत्र है जिसे पढ़ने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में पितरों का विशेष महत्व है। पितृ पक्ष में उनका पूजन और तर्पण करने से वंश की उन्नति, सुख-शांति और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है। यह स्तोत्र पितरों की महिमा का वर्णन करता है और उनकी कृपा पाने का माध्यम है।
इस लेख में हम पितृ स्तोत्र के श्लोकों को सरल भाषा में समझेंगे, उनके अर्थ को जानेंगे और उनके पाठ के लाभों पर चर्चा करेंगे।
पितृ स्तोत्र में उन दिव्य पितरों का गुणगान किया गया है, जो ब्रह्मांड के निर्माण, संचालन और संरक्षण में भागीदार हैं। वे अमूर्त, तेजस्वी, दिव्य दृष्टि वाले और सभी लोकों के पूजनीय हैं। पितरों का स्मरण करने से मनुष्य अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सफलता की ओर बढ़ सकता है।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।अर्थ: जो पितर अमूर्त हैं, लेकिन सभी के द्वारा पूजित हैं और तेजस्वी हैं। जो ध्यानमग्न रहते हैं और दिव्य दृष्टि रखते हैं, उन पितरों को मैं सदा प्रणाम करता हूँ।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।अर्थ: जो पितर इंद्र आदि देवताओं, दक्ष, मरीचि और सप्तर्षियों के भी नेता हैं और हमारी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं, उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।अर्थ: जो पितर मनु, सूर्य और चंद्रमा के भी नेता हैं और समुद्र में निवास करते हैं, उन सभी पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।अर्थ: जो पितर नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश, द्युलोक और पृथ्वी के भी नेता हैं, उन्हें मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।अर्थ: जो पितर देवर्षियों के जन्मदाता हैं, समस्त लोकों द्वारा वंदित हैं और सदा अक्षय फल प्रदान करते हैं, उन्हें मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।अर्थ: जो पितर प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण और योगेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित हैं, उन्हें मैं हमेशा प्रणाम करता हूँ।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।अर्थ: सातों लोकों के सात पितृगणों को मेरा प्रणाम है। मैं योग दृष्टिसंपन्न स्वयंभू ब्रह्माजी को नमन करता हूँ।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।अर्थ: जो पितृगण चंद्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित हैं और योगमूर्ति धारण करते हैं, उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही मैं चंद्रमा (सोम) को भी नमन करता हूँ, जो इस जगत के पिता हैं।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।अर्थ: जो पितर अग्नि के रूप में हैं और यह समस्त विश्व अग्नि और सोममय है, उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।
अर्थ: जो पितर चंद्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में हैं, जो जगतस्वरूप और ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सभी योगी पितरों को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। हे पितरों, आप मुझ पर प्रसन्न हों।
पितृ स्तोत्र के लाभ
- पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पितरों की कृपा मिलती है और जीवन में शांति और सुख आता है।
- जो लोग संतान की कामना करते हैं, उनके लिए यह पाठ अत्यंत लाभकारी है।
- पितरों की पूजा से पूर्वजों के प्रति दोष समाप्त होते हैं।
- यह स्तोत्र पढ़ने से अक्षय पुण्य और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
- पितरों की कृपा से परिवार में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है।
पाठ विधि
- पाठ से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूर्वजों की तस्वीर या प्रतीकात्मक स्थान के पास दीपक जलाएं।
- शांत चित्त और समर्पण के भाव से पाठ करें।
- किसी शुद्ध आसन पर बैठकर पाठ करें।
- पितृ पक्ष या हर रविवार/अमावस्या को इसका पाठ करें।
पितृ स्तोत्र जीवन में पितरों की कृपा पाने का एक सरल और प्रभावी माध्यम है। यह पाठ व्यक्ति को पितरों की अनुकंपा दिलाकर जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाता है। नियमित रूप से इसका अभ्यास करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। "पितरों का आशीर्वाद पाकर जीवन को सफल बनाएं।"