थिति पाई मन थिर भया सतगुर करी सहाइ हिंदी मीनिंग
थिति पाई मन थिर भया, सतगुर करी सहाइ।
अनिन कथा तनि आचरी, हिरदै त्रिभुवन राई ।।
Thetee Pai Ka Man Shaant Ho Gaya, Sataguru Kaaree Sahaay.
Anin Katha Tanee Aachaary, Hiradai Tribhuvan Raay.
Thiti Payi Man Thir Bhaya Hindi Meaning Kabir Dohe Hindi Meaning
थिति पाई मन थिर भया शब्दार्थ-थिति -प्रतिष्ठा, अनिन - अनन्य, आचरी-चरितार्थ होना।
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग : सतगुरु के आशीर्वाद के कारण (सहायता करने के कारण ) मेरी प्रतिष्ठा परम तत्व (ब्रह्म) के तुल्य हो गयी है। मैं अंतर्मुखी हो गया हूँ और मेरे तन मन और आचरण में अब परमतत्व का ही वास है। मेरे हृदय में उस परम सत्ता का निवास हो गया है जो सतगुरु के सहायता करने से हुयी है। व्यक्ति को सद्गुरु के सानिध्य में ही माया और उसके फैलाये जाल के विषय में ज्ञान हो पाता है, इसीलिए साहेब ने इसे सहायता कहा है क्योंकि व्यक्ति अभी जिस अवस्था में है उससे बहुत आगे का ज्ञान सतगुरु रखता है।
जिन्ह जीव कीन्ह आपु बिस्वासा, नर्क गये तेहि नर्कहि वासा ।
आवत जात न लागे बारा, काल अहेरी सांझ सकारा ।
चौदह विद्या पढि समुझावै, अपने मरन की खबर न पावै ।
जाने जीव को परा अंदेसा, झूठहि आय कहाँ संदेसा ।
संगति छाडि करै असरारा, उबहै मोट नर्क के भारा ।
गुरुद्रोही औ मनमुखी, नारी पुरुष विचार ।
ते नर चौरासी भ्रमै, जब लो ससि दिनकार
जब हम रहल रहल नहिं कोई, हमरे माहि रहल सब कोई ।
कहहू राम कौन तोरि सेवा, सो समुझाय कहहु मोहि देवा ।
फुर फुर कहौं मारु सब कोई, झूठहि झूठा संगति होई ।
आँधर कहे सभै हम देखा, तहँ दिठियार बैठ मुख पेखा ।
यहि बिधि कहों मानु जो कोई, जस मुख तस जौं हृदया होई ।
कहहिं कबीर हंस मुसकाई, हमरे कहल दुष्ट बहु भाई ।
अंबुक रासि समुद्र कि खाई, रवि ससि कोटि तैंतिसो भाई ।
भंवर जाल में आसन माडा, चाहत सुख दुख संग न छाडा ।
दुख को मर्म न काहु पाया, बहुत भांति कै जग भरमाया?
आपुहि बाउर आपु सयाना, हृदय बसत राम नहिं जाना ।
तेही हरि तेहि ठाकुरा, तेही हरि के दास ।
ना यम भया न यामिनी, भामिन चली निरास ।