'सूफी' शब्द का अर्थ क्या हैं? (صوفی) कई बार हम सूफी गानों के विषय में सुनते हैं और उनकी रूहानी लय में खो जाते हैं। वैसे तो आप सभी जानते हैं की सूफी ऐसे लोग होते हैं जो अपने रब्ब को अपना माशूक मानते हैं और उसकी इबादत में गाते हैं, झूमते हैं। लेकिन आज जानते हैं की सूफी शब्द का मतलब क्या होता है। 'सूफी' शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के एक शब्द 'शूफ' से हुयी है। सूफ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है एक तरह का गलीचा जो मोटे कपडे (ऊँन ) से बना हुआ होता है।
अक्सर इस गलीचे पर बैठकर मुस्लिम धर्म के लोग बैठ कर इबादत किया करते थे। स्पष्ट है की उन पर बैठकर खुदा के लिए इबादत करने वाले ही सूफी कहलाये। कुछ विचारक इसे यूनानी सोफ़स (sophos, ज्ञान) से सबंधित कहते है और कुछ विद्वान सूफी शब्द को अरबी सफ़ः (पवित्र) से निकला मानते हैं। सूफी पीरों का मुख्य सबंध इस्लाम से ही रहा है। ऐसी मान्यता है की इस्लाम में 'सूफीवाद' (अरबी : الْتَّصَوُّف}; صُوفِيّ} सूफ़ी / सुफ़फ़ी, مُتَصَوِّف मुतसवविफ़) की उत्पत्ति ईरान के शहर 'बसरा' में हुयी थी जो की अपने आप में एक रहसयवादी विचारधारा है। राबिया, अल अदहम, मंसूर हल्लाज जैसे शख़्सियतों को इनका प्रणेता माना जाता है।
'सूफ़ीवाद' इस्लाम का एक पहलू है और सूफ़ीपंथी शिया और सुन्नी दोनो फ़िरक़ों या इस्लाम मज़हब के मानने वाले दूसरे समुदायों में भी हो सकते हैं। 14वीं शताब्दी में एक अरब इतिहासकार इब्न-ए-ख़लदुन ने सूफ़ीवाद को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है, "दौलत, शोहरत, तमाम तरह की दुनियावी लज्ज़तों से खुद को दूर करके अपने रब से लौ लगाना और उसकी इबादत करना ही सूफ़ीवाद है." इब्न-ए-ख़ुलदान की सूफ़ीवाद की ये परिभाषा आज के दौर में भी एकदम सटीक बैठती है। सूफीवाद शिया और सुन्नी की भाँती नहीं है बल्कि यह इस्लाम को किताबी ज्ञान के साथ साथ अपने गुरुओं से सीखने पर जोर देती है। कहा जा सकता है की सूफी वो हैं जो अल्लाह को पाने के लिए धर्म की वास्तविकता यानि मुहब्बत पर ध्यान केन्द्रित किया उस सीधे रास्ते को अपनाया जो सीधे अल्लाह से जा मिलता है।
सूफ़ीवाद का पालन करने वाले संत सूफ़ी संत कहलाते हैं। यह इस्लाम धर्म की उदारवादी शाखा है। सूफी संत, ईश्वर की याद में ऐसे खोए होते हैं कि उनका हर कर्म सिर्फ ईश्वर के लिए होता है और स्वयं के लिए किया गया हर कर्म उनके लिए वर्जित होता है, इसलिए संसार की मोहमाया उन्हें विचलित नहीं कर पाती। सूफी संत एक ईश्वर में विश्वास रखते हैं तथा भौतिक सुख-सुविधाओं को त्याग कर धार्मिक सहिष्णुता और मानव-प्रेम तथा भाईचारे पर विशेष बल देते हैं। राबिया बसरी (जो स्वयं प्रख्यात सूफ़ी हुई हैं) कहती हैं- हेे ईश्वर, अगर मैं नर्क के डर से तेरी इबादत करूं तो मुझे उसी नर्क में डाल दे और अगर मैं स्वर्ग के लालच में इबादत करूं तो मुझे कभी भी स्वर्ग नहीं देना।